Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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ओगाहित्ता चारं चरइ त्या णं उत्तमकट्ठपत्ता उझोसिया अद्वारसमुहुत्ता राई भवति जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, एवं चोत्तीसेऽवि, पणतीसेऽवि एवं चेव भाणियव्वं, तत्थ जे ते एवमासु ता अवड्ढे दीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति ते एवमा०-जता णं सूरिए सव्वलंतरं मंडलं उक्संकभित्ता चारं चरति तता णं अवड्ढे जंबुद्दीवं ओगाहित्ता चारं चरति तता णं उत्मकट्ठपत्ते उकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवति, एवं सव्वबाहिरएवि, णवरं अवड्ढे लवणसमुई, तता णं राइंदियं तहेव, तत्थ जे ते एव०-ता णो किञ्चि दीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति ते एवमाहंसुता जता णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तता णं णो किंचि दीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चार चरति तता णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति तहेव, एवं सव्वबाहिरए मंडले, णवरं णो किंचि लवणसमुई ओगाहित्ता चारं चरति, रातिदियं तहेव, एगे एव०१६। वयं पुण एवं वदामो-ता जया णं सूरिए सव्वब्तरं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति तता णं जंबुद्दीवं असीतं जोयणसतं ओगाहित्ता चारं चरति तदा णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवति, एवं सव्वबाहिरेविणवरं लवणसमुई तिणि तीसे जोयणसते ओगाहित्ता चारं चरति, तताणं उत्तमकट्ठपत्ता उकोसिया अद्वारसमुहुत्ता राई भवइ जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति, गाथाओ भाणितव्वाओ ॥१७॥१-५॥
ता केवतियं ते एगमेगेणं रातिदिएणं विकंपइत्ता २ सूरिए चार चरति आहितेति वदेज्जा?, तत्थ खलु इमाओ सत्त पडिवत्तीओ " શ્રી સૂર્યપ્રણયુપામ |
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पू. सागरजी म. संशोधित
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