Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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Acharya Shet Kalashsagarseri Gyanmand
णं सा मंडलवता अडतालीसं एगट्ठिभागा जोयणस्स एगं च जोयणसयसहस्सं छच्च सद्धे जोयणसते आयामविक्खंभेणं तिनि जोयणसयसहस्साई अट्ठारस सहस्साई तिण्णि य पण्णरसुत्तरे जोयणसते परिक्खेवेणं तदा णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति, एस णं पढमे छम्मासे एस णं पढमस्स छम्मासस्स पजवसाणे, से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासंअयभाणे पढमंसिअहोरत्तंसिबाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णंसूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तता णं सा मंडलवता अडतालीसं एगहिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं एगं जोयणसयसहस्सं छच्च चउपपणे जोयणसते छव्वीसंच एगद्विभागे जोयणस्स आयामविक्खंभेणं तिन्नि जोयणसतसहस्साई अद्वारस सहस्साई दोण्णि य सत्ताणउते जोयणसते परिक्खेवेणं पं०, तता णं राइदिए तहेव, से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तता णं सा मंडलवता अडयालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं एगं जोयणसतसहस्सं छच्च अडयाले जोयणसए बावण्णं च एगद्विभागे जोयणस्स आयामविक्खंभेणं तिण्णि जोयणसतसहस्साई अट्ठारस सहस्साई दोण्णि अणासीते जोयणसते परिक्खेवेणं पं०, दिवसराई तहेव, एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तताणंतरातो तदाणंतरं मंडलातो मंडल संक्रममाणे २ पंच जोयणाई पणतीसं च एगढिभागे जोयणस्स एगमेगे मंडले विक्खंभवुढिणिवुड्ढेमाणे २ अट्ठारस जोयणाई परिरयवुड्ढिणिवुड्डेमाणे २ सव्वब्अंतरं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति, ता जता श्री सूर्यप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित ||
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