Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir जोयणसते अण्णमण्णस्स अंतरं कटु चारं चरति तता णं उत्तमकट्ठपत्ते जाव दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहत्ता राई भवति, एस णं दोच्चे छम्मासे एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे एस णं आइच्चे संवच्छरे एस णं आइच्चसंवच्छरस्स पजवसाणे । १५॥ १-४ ॥ __ता केवतियं ते दीवे समुद्दे वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति आहिता०?, तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पं०, एगे एवमाहंसु ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसतं दीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति एगे एव०, एगे पण०-ता एगं जोयणसहस्सं एगं चउत्तीसं जोयणसयं दीवं वा समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति एगे एव०, एगे पुण०-ता एगं जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसतं दीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति एगे एव०, एगे पुण०-ता अवड्ढं दीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति एगे एव०,एगे पुण-ता नो किंचिएगंजोयणसहस्सं एगंतेत्तीसंजोयणसतंदीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति०, तत्थ जे ते एवमाहंसु ता एगं जोयणसहस्सं एगं तेतीसं जोयणसतं दीवं वा समुदं वा उग्गाहित्ता सूरिए चारं| चरति ते एवमाहंसु जता णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकभित्ता चार चरति तया णं जंबुद्दीवं एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीस जोयणसतं ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति तता णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ त्या णं लवणसमुदं एगंजोयणसहस्सं एगंच तेत्तीसंजोयणसयं ॥ श्री सूर्यप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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