Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra wimm.kobatimorg Acharya Seni Kailashsagarsen Gyamandir मुहत्ताणमद्धम डलसंठिई । के ते चित्रं परियरइ, अंतरं किं चरंति य ॥६॥ उग्गाहइ केवइयं, केवतियं च विकंपइ । मंडलाण य संठाणे, विक्खंभो अट्ठ पाहुडा ॥७॥४॥ छप्पंच य सत्तेव य् अट्ठ तिन्नि य हवंति पडिक्त्ती । पढमस्स पाहुडस्स उ हवंति एयाउ पडिवत्ती ॥८॥५॥ पडिवत्तीओ उदए, तहा अत्थमणेसु यो भियघाए कण्णकला, मुहुत्ताण गतीति य ॥९॥ निक्खममाणे सिग्घगई पविसंते मंदगई इय ।चुलसीइसयं पुरिसाणं, तेसिंच पडिवत्तीओ ॥१०॥ उदयम्मि अट्ट भणिया भेदग्धाए दुवे य पडिवत्ती । चत्तारि मुहत्तगईए हुंति तइयंमि पडिवत्ती ॥११॥६] आवलिय मुहुत्तागे एवंभागा य जोगस्सा । कुलाई पुत्रमासी य, सनिवाए य संठिई | ॥१२॥ तार (य)गं च नेता य १०, चंदग्गत्ति यावरे । देवताण य अज्झयणे, मुहुत्ताणं नामया इय ॥१३॥ दिवसा राइ वुत्ता य, तिहि गोत्ता भोयणाणि य । आइच्च्चार मासा य, पंच संवच्छरा इय २० ॥१४॥ जोइसस्स य दाराई, नक्खत्तविजएऽविय २२१ दसमे पाहुडे एए, बावीसं पाहुडपाहुडा ॥१५॥७ ता कहं ते वद्धोवद्धी महत्ताणं आहितेति वदेजा ?, ता अट्ठ एकूणवीसे मुहत्तसते सत्तावीसं च सत्तद्विभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेजा ८॥ ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरातो मंडलातो सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति सव्वबाहिरातो य मंडलातो सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति एस णं अद्धा केवतियं रातिंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ?, ता तिण्णि छावढे रातिंदियसए रातिंदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ९१ ता एताए अद्धाए सूरिए कति मंडलाई चरति ?, ता चुलसीयं मंडलसतं चरति, बासीति मंडलसतं दुक्खुत्तो चरति, तं०- णिक्खममाणे चेव पवेसमाणे चेव, दुवे य खलु ॥ श्री सूर्यप्रजप्त्युपाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित || For Private And Personal

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