Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandr | तिनि छावढे एगट्ठिभागमुहुत्तसते स्यणिखेत्तस्स निवुड्ढित्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढित्ता चारं चरति तया णं उत्तमकट्टपत्ते उकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, एस णं दोच्चे छम्मासे एस णं दुच्चस्स छम्मासस्स प्रज्जवसाणे, एसणं आदिच्चे संवच्छरे एसणं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे, इति खलु तस्सेवं आदिच्चस्स संवच्छरस्स सई अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति सई अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति सई दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति सई दुवालसमुहुत्ता राती भवति, पढमे छम्मासे अस्थि अट्ठारसमुहुत्ता राई नस्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे अस्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे नस्थि दुवालसमुहुत्ता राई, दोच्चे वा छम्मासे अस्थि अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवति णत्थि अद्वारसमुहुत्ता राई अस्थि दुवालसमुहुत्ता राई नस्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति, पढमे वा छम्मासे दोच्चे वा छम्मासे णस्थि पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवति णत्थि पण्णरसमुहुत्ता राई भवति, नन्नत्य रातिंदियाणं वड्ढोवड्ढीए मुहुत्ताण वा चयोवचएणंणण्णत्थ वा अणुवायगईए, पुव्वेण दुन्नि भागागाधाओ भाणितव्याओ ११॥ पढमस्स पाहुडस्स पढमं पाहुडपाहुडं १-१॥ __ता कह ते अद्धमंडलसंठिती आहिताति वदेज्जा ?, तत्थ खलु इमे दुवे अद्धमंडलसंठिति पं० २०-दाहिणा चेव अद्धमंडलसंगिति उत्तरा चेव अद्धमंडलसंठिती, ता कहं ते दाहिणअद्धमंडलसंठिती आहिताति वदेजा?, ता अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुदाणं जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वब्तरं दाहिणं अद्धमंडलसंठितिं उवसंकभित्ता चारं चरति तदा णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए ॥ श्री सूर्यप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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