Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ है, वह समवायांग के अध्ययन-क्रम से पृथक्ता लिये हुए हैं / तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययनों का क्रम इस प्रकार हैआचारांग नियुक्ति समवायांग' 1. सत्थपरिणा 1. सत्थपरिणा 2. लोगविजय 2. लोकविजय 3. सीमोसणिज्ज 3. सीयोसणिज्ज 4. सम्मत्त 4. सम्मत्त 5. लोगसार 5. पावंती 6. धुत 6. धुत 7. महापरिण्णा 7. विमोहायण 8. विमोक्ख 8. उवहाणसुय 9. उवहाणसुय 9. महापरिणा प्राचार्य उमास्वाति ने प्रशमरतिप्रकरण में समवायांग के क्रम का ही अनुसरण किया है। पांचवें अध्ययन के दो नाम प्राप्त होते हैं लोकसार और पार्वती / प्राचारांग-वृत्ति से यह परिज्ञात होता है कि उन्हें ये दोनों नाम मान्य थे। प्राचारांग नियुक्ति में महापरिक्षा अध्ययन को सातवां अध्ययन माना है / और चूर्णिकार तथा वृत्तिकार इन दोनों ने भी प्राचारांग नियुक्ति के मत को मान्य किया है। परन्तु स्थानांग समवायांग और प्रशमरतिप्रकरण' में महापरिज्ञा अध्ययन को सातवाँ न मानकर नवम अध्ययन माना है। अावश्यकनियुक्ति तथा प्रभावकचरित प्रादि ग्रन्थों के आधार से यह स्पष्ट है कि वजस्वामी ने महापरिज्ञा अध्ययन से ही प्राकाशगामिनीविद्या प्राप्त की थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि वजस्वामी के समय तक महापरिज्ञा अध्ययन विद्यमान था। किन्तु प्राचारांग वत्तिकार के समय महापरिज्ञा अध्ययन नहीं था। विज्ञों का अभिमत है कि चाणकार के समय महापरिज्ञा अध्ययन अवश्य रहा होगा पर उसके पठन-पाठन का क्रम बन्द कर दिया गया होगा। प्राचारांग निर्यक्ति में प्राठवें अध्ययन का नाम "विमोक्खो" है तो समायाँग में उसका नाम "विमोहायतन" है। प्राचारांग में चार स्थलों पर "विमोहायतन" शब्द व्यवहृत हुआ है। जिससे प्रस्तुत अध्ययन का नाम "विमोहायतन' रखा है या विमोक्ष की चर्चा होने से विमोक्ष कहा गया हो। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में चार चूलायें हैं उनमें प्रथम और द्वितीय चूला में सात-सात अध्ययन हैं, तृतीय और चतुर्थ चला में एक-एक अध्ययन हैं। चणिकार की दृष्टि से रुवसत्तिक्कय यह द्वितीय चूला का चतुर्थ अध्ययन है; और सद्दसत्तिक्कय यह पांचवां अध्ययन है। आचारांग सूत्र की प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों में और प्राचारांग की शीलांकवत्ति में तथा प्रशमरति ग्रन्थ में सद्दसत्तिक्कय के पश्चात् रुवसत्तिक्कय / इस प्रकार का क्रम सम्प्राप्त होता है। 1. आचारांग नियुक्ति-गाथा-३१, 32 पृष्ठ 9 2. समवायांग सूत्र प्रकीर्णक, समवाय सूत्र--८९ 3. प्राचारांग वत्ति पृष्ठ 196 / 4. प्राचारांग नियुक्ति गाथा 31-30 पृष्ठ 9 / 5. प्राचारांग चूर्णी। 6. स्थानांग सूत्र 9 / 7. समवायांग सूत्र 89 / 8. प्रशमरति प्रकरण 114-117 / [27] For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org