Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation
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तब भी तुम राम का नाम नहीं जप रहे हो तो उस समय क्या जपोगे, जब साँसें टूटने को होंगी?
अंतिम समय राम का नाम जपने के भुलावे में रहने वाले लोग चूक रहे हैं। उस समय तो विरले लोगों को ही 'राम' याद आता है। अधिकांश लोग तो अपने परिजनों की याद ही करते हैं । मेरा बेटा कहाँ है, मेरी माँ कहाँ है, पत्नी कहाँ है ? आदमी सबके बारे में पूछ लेगा मगर वह खुद कहाँ है, इसकी उसे चिंता नहीं होगी। जगत का चक्र है ही ऐसा । मरते समय भी संसार में उलझाव! भला कैसे होगा हमारे जीवन का उद्धार ! ____ मोक्ष पाना है तो जीवन की मूल्यवत्ता को समझो। जीवन के सार को ग्रहण करो, अन्यथा होगा यह कि जीवन भर चाह तो करते रहोगे कि स्वर्ग में जाना है, मगर पहुँचोगे नरक में। लोग दोहरा जीवन जीते हैं । वे नाम तो राम का लेते हैं, मगर कृत्य रावण के करते हैं । नाम कृष्ण का लेते हैं और आचरण कंस का करते हैं।
यही तो हमारे जीवन का दोहरापन है। जब तक यह समाप्त नहीं होगा, हम जीवन की आसक्ति को नहीं पहचान पाएँगे। हमने ये जो मुखौटे लगा रखे हैं, उन्हें उतारना होगा। जब तक असली, असली और नकली, नकली न साबित हो जाए, तब तक हम जीवन में मोक्ष का मार्ग आत्मसात् नहीं कर पाएँगे।
हम यदि नर से नारायण बनना चाहते हैं, आत्मा को परमात्मा के रूप में ढालना चाहते हैं तो हमें जीवन की वास्तविकताओं को समझना होगा। हमने जीवन की हकीकत को खो दिया तो जो कुछ भी हाथ लगेगा, वह कार्बन कॉपी होगा क्योंकि मल तो हमारे हाथ से निकल जाएगा। हकीकत तो यह है कि हमारा जीवन मल कॉपी नहीं है, जो कुछ भी है, वह मन, विचार और शरीर की उपलब्धि है। इसके अलावा कहीं कोई उपलब्धि नहीं है।
यह जानते हुए भी कि माटी का यह शरीर एक दिन माटी में ही मिल जाना है, हम नहीं चेत रहे हैं तो यह एक गंभीर बात है। हमें चिंतन करना होगा और अन्तत: जीवन की राह पर सही ढंग से चलना शुरू करना ही होगा, अन्यथा जीवन और अध्यात्म का केवल नाम लेकर हम अपना जीवन नहीं सुधार सकेंगे। हमें जीवन का सम्राट बनना है या भिखारी, यह हमारे ही हाथ में है, हमारे ही कर्मों पर निर्भर है। बाहर से कोई हमारा भला करने नहीं आएगा। जागिये, जब जागे, तभी सवेरा होता है, इस उक्ति को वास्तविकता के धरातल पर लाकर हम ईमानदारी से भरा जीवन जी सकते हैं।
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