Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 25
________________ जो इच्छा हो एक-एक निर्माण और संरक्षण में खर्च हो रहा है । यानि प्रतिदिन बारह अरब डॉलर ! इतनी राशि अगर मनुष्य के कल्याण के लिए खर्च की जाती, तो विश्व का रूप आज और ही कुछ होता। विक्षिप्तता आज हमें चारों ओर से घेरती जा रही है। हमारी महत्त्वाकांक्षाएँ बेलगाम होती जा रही हैं और परिणामतः हमारे अपने प्रबंधन ही हमारी मृत्यु के निमित्त बन रहे हैं । सुरक्षा के नाम पर विश्व मृत्यु के करीब पहुँच रहा है । मात्र अहिंसा पर दिये गये भाषण इस विक्षिप्तता को नहीं तोड़ सकते हैं । जब तक भीतर के पशु को विनष्ट कर प्रभुता को उपलब्ध नहीं कर लिया जाता है, तब तक विनाश की योजनाएँ चलती ही रहेंगी। कहते हैं, एक बार भगवान ने अमेरिका, रूस और ब्रिटेन के प्रतिनिधि बुलवाए। उन्हें कहा कि 'तुम्हारे देशों ने विश्व में सर्वाधिक प्रगति की है। मैं तम तीनों के विकास से प्रसन्न हँ। तम्हारी जो इच्छा हो ए वरदान मांग सकते हो।' अमेरिका का प्रतिनिधि बोला, 'हे ईश्वर ! मैं आपसे यह वरदान माँगता हूँ कि यह सारी धरती रहे, पर रूस का नामोनिशान न रहे। इसे समाप्त कर दिया जाये।' ईश्वर ने रूस के प्रतिनिधि की ओर देखा। उसने कहा, 'मैं आपसे वरदान माँगता हूँ कि यह सारी धरती रहे, पर अमेरिका का नामोनिशान न रहे।' ईश्वर ने फिर ब्रिटेन के प्रतिनिधि की ओर देखा। उसने कहा, 'भगवान ! मेरी कोई खास इच्छा नहीं है । बस आप इन दोनों की इच्छा-पूर्ति कर दीजिये, ब्रिटेन के लिए यही वरदान होगा।' देखी मनुष्य की चालाकी ! वह एक-दूसरे का विनाश चाहता है, दूसरा पहले का विनाश चाहता है। तीसरा दोनों का। सब एक-दूसरे के विनाश में लगे हैं । विनाश की लीला बहुत हो गयी। जीवन के विकास की लीला भी रचाने की चेष्टा हो। ज्ञान-विज्ञान का सार्थक उपयोग करो। आज तुम किसी और को मिटा डालोगे, कल कोई तुम्हें मिटा जाएगा। मिटने का ही सिलसिला चलता रहेगा। सृजन हो, सार्थक पहलुओं पर हमारा दृष्टिकोण हो। अज्ञान और मूर्छा से बाहर निकलकर आओ। जीवन का हर कदम सार्थक हो, ज्योत से ज्योत जगाओ। तमस् चाहे अपना हो या पराया, तमस् मिटे, ज्योत जगे, तो ही कोई बात बने। मेरा तो एक ही संदेश है कि मूर्छा तोड़ो, समर्पित भाव से कर्म करो, अनासक्ति से जीओ। इस संदेश का सदा स्मरण रखो, बोध रखो। फिर कोई खतरा नहीं है। तुम खुद प्रखर हो उठोगे। 'कर्मण्येवाधिकारस्ते'- तुम कर्म करो, सत्कर्म ! फल अपने आप तुम्हारे हाथ में होगा। Jain Education International For Pers26 www.jainelibrary.org Private Use Only

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