Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 102
________________ होगा यह कि उम्र भर परिवार के लिए पाप कमा कर भी अपने लिए कुछ भी नहीं कमा पाओगे। अपने बंधुओं की सुख-सुविधा के लिए पाप करते हो। ज़रा उनसे पूछना कि जब तुम्हें इन पापों की सज़ा मिलेगी तो क्या वे उसे भुगतने को तैयार होंगे? पाप करने से पहले सोच लेना। जो पत्नी आपसे कहती है कि बिना आपके मैं मर जाऊँगी, उसकी बात का विश्वास मत करना क्योंकि कभी किसी के लिए कोई नहीं मरता। आदमी कहता है कि दुनिया ने मुझे बाँध रखा है, यह बात गलत है। असल में तो आदमी ने अपने आप को दुनिया से बाँध रखा है। वह खुद उससे छूटना नहीं चाहता। बंधन तो खुद उसने बांध रखे हैं। कोई व्यक्ति खंभे को पकड़कर खड़ा हो जाए और कहने लगे कि खंभे ने मुझे बाँध रखा है तो यह गलत होगा। आदमी खुद उस खंभे को नहीं छोड़ना चाहता। इसी तरह दुनिया ने आपको नहीं बल्कि आपने दुनिया को बाँध रखा है। संन्यास के मार्ग पर निकलो तो सभी से मुक्त होकर निकलो। ऐसा मत सोचो कि तुम चले गए तो दुनिया समाप्त हो जाएगी। दुनिया का काम तो ऐसे ही चलेगा। ___ एक युवक प्रतिदिन एक साधु के पास जाया करता था। एक दिन साधु ने पूछ लिया कि 'तुम इतने दिन से मेरे पास आ रहे हो, प्रवचन भी सुन रहे हो, लेकिन क्या इन प्रवचनों को तुमने अपने जीवन में भी उतारने का प्रयास किया है कभी? युवक बोला-'महाराज ! असल में मैं भी आपकी तरह साधु बनना चाहता हूँ, सांसारिक जीवन त्यागना चाहता हूँ, लेकिन एक मुसीबत है । मैं जब भी साधु बनने की बात कहता हूँ, मेरी माँ कुएँ में कूद कर आत्महत्या करने की धमकी देती है। पिता जी फाँसी पर लटकने की बात करते हैं।' साधु ने बड़े ध्यान से युवक की बात सुनी और उसके कान में कुछ कहा। युवक अपने घर गया और बीच आँगन में मुर्दे की तरह लेट गया। उसे साँस रोकने की विद्या आती थी, जिससे उसने अपनी साँस रोक ली। घर वालों ने यह सब देखा तो डॉक्टरों को बुलवाया। डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। ___परिवार में रोना-धोना शुरू हो गया। पत्नी ने चूड़ियाँ तोड़ दी और वह एक कोने में बैठकर सुबकने लगी। माँ-बाप भी रोने लगे। सगे-सम्बन्धी अर्थी का सामान ले आए। उसे बाँध कर जैसे ही ले जाने लगे, वह साधु वहाँ आ पहुँचा । बोला, 'ये क्या कर रहे हो?' लोगों ने बताया कि आपका चेला इस दुनियाँ में नहीं रहा।' साधु ने अर्थी खुलवाई, युवक की हाथ की नाड़ी देखी। थोड़ी देर बाद बोला- 'यह युवक जावित हो सकता है, मगर इसके लिए एक शर्त है।' युवक के परिजनों ने व्यग्र होकर पूछा- 'कैसी शर्त?' साधु बोला'इसके स्थान पर कोई अन्य मरने को तैयार हो जाए तो यह युवक जी सकता है।' इतना सुनना था कि लोग बगलें झाँकने लगे। साधु एक-एक से पूछने लगा। युवक का पिता, माँ, बहन, भाई यहाँ तक कि धर्मपत्नी भी इसके लिए तैयार नहीं हुई। मरे हुए आदमी के पीछे रोया जा सकता है, पर मरा नहीं जा सकता। साधु ने अर्थी पर सोए युवक के गाल पर चांटा मारकर कहा, 'चल उठ ! तेरे लिए कोई मरने को तैयार नहीं है। तू तो कहता था कि मैं साधु बन गया तो पूरा परिवार मर जाएगा। देख! तू मर गया तो भी तुम्हारे लिए एक व्यक्ति भी मरने को तैयार नहीं है।' इतना कहकर साधु रवाना हो गया और वह युवक साधु के पीछे हो लिया। 103 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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