Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 103
________________ किसी में भी उसे रोकने की हिम्मत नहीं हुई। दुनिया में सारे रिश्ते स्वार्थ से जुड़े हैं। अंतिम यात्रा में साथ देने वाला कोई नहीं है। यह यात्रा तो अकेले ही करनी होगी। कल ही मेरे पास एक व्यक्ति का पत्र आया है। वे मृत्यु से काफी भयभीत रहते हैं। उन्होंने स्वप्न में स्वयं को मरते हुए देख लिया होगा, सो अब वे न सो पाते हैं, न पूरा भोजन कर पाते हैं। खाना खाने बैठते हैं और वह स्वप्न याद आते ही, हाथ का कौर छूट जाता है। हकीकत में मृत्यु में भय नहीं छिपा है। भय तो हमारे चित्त में छिपा रहता है। अब वे लिख रहे हैं कि 'मैं मृत्यु से हर समय भयभीत रहता हूँ। क्या ऐसा कोई उपाय है जिसके कारण मैं, मौत पर विजय पा सकूँ?' अब उनको क्या जवाब दिया जाये? तुम मौत से डरते भी हो और उस पर विजय भी पाना चाहते हो, पर विजय कभी कायरपन से थोड़े ही मिलेगी। और मुझे तो लगता है मृत्यु तुम्हारे मौत का कारण नहीं बनेगी, यह भय ही मृत्यु का निमित्त बन जायेगा। प्रायः मनुष्य मृत्यु से नहीं मरता, भय से मरता है। अंधेरे में अगर रस्सी को ही सर्प बता दो तो आदमी के होश उड़ जायेंगे। इसीलिए तो कहते हैं, 'साधना-मार्ग में अभयचित साधक ही आगे बढ़ पाएगा।' मैंने सुना है, एक फक़ीर गाँव के बाहर अपनी कुटिया में रहता था। एक दिन फक़ीर कुटिया के बाहर बैठा था। देखा कि मृत्यु देवी उधर से गुजर रही थी। फक़ीर ने मौत को आगे जाते देखकर आवाज दी, 'किधर जा रही हो देवी?' मृत्यु मुस्कुराई। वह बोली, 'इस गाँव में अस्सी व्यक्तियों की मृत्यु आज है। मैं उन्हें लेने जा रही हूँ।' फकीर ने कहा, 'सो तो ठीक है, पर एक ध्यान रखना कि अस्सी से ज्यादा को मत मारना, क्योंकि तुम्हारा भरोसा नहीं है क्योंकि तुम कब किस को मार दो, गिरा दो? मृत्यु ने फकीर को आश्वासन दिया और चली गई। दूसरे दिन फकीर जब गाँव में गया तो पता चला कि गाँव में कोई आठ सौ व्यक्ति मर चुके थे। फकीर आश्चर्यचकित हुआ कि क्या मृत्यु मुझसे झूठ बोली थी? दूसरे दिन जब मृत्यु उधर से गुजरी तो फकीर ने क्रोधित होते हुए कहा कि, 'मुझे नहीं मालूम था कि तुम मुझसे भी झूठ बोलोगी। पता है, तुमने कहा था कि अस्सी को मारूंगी और गांव में आठ सौ मर गये।' उसने कहा, 'क्षमा करें फकीर साहब ! मैंने तो अस्सी को ही मारा था, शेष तो भय के कारण मर गये।' ___ एक और घटना मुझे याद आ रही है। एक बार एक आदमी एक सराय में रुका। रात को उसने उस सराय में भोजन किया और सुबह उठकर चलता बना। कोई दस माह बाद उसी मार्ग से वापस गुजरा तो उसी सराय में ठहरा । सराय का मालिक उसे देखकर विस्मित हुआ। उसने पूछा, 'क्या आप सकुशल हैं ? वह तो काफी घबरा गया था। उसने पूछा, 'क्यों क्या हो गया था?' सराय के मालिक ने कहा, 'भाई साहब! जिस रात आप यहाँ ठहरे थे, आपने जो भोजन किया था, जो खाना बना था, उसमें एक सांप गिर गया था। चार आदमियों ने उसे खाया और वे चारों मर गये। आप तो जल्दी उठकर चले गये। आपके लिए हम काफी चिंतित थे। सोचने लगे 'न जाने 104 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org


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