Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 112
________________ जीवन और जगत के कर्तव्यों को निभाते हुए बीच एक गहरा अन्तर् | दुनिया में इस तरह जीना है सम्बन्ध है। जीवन जगत का कि काँटों में भी फूल खिल प्रतिबिम्ब है और जगत जीवन का आयें, अंधेरे में भी रोशनी का रहनुमा विस्तार है। मनुष्य यदि जगत की साकार हो उठे। जीवन तो बस कोरे आपाधापी में ही स्वयं को खो दे तो कागज की तरह है। उस पर जैसे रंग यह मनुष्य का 'संसार' हुआ। जगत में भर दें, जो चित्र उकेर दें, कागज पर जीकर भी अगर वह कीचड़ में खिलते वैसा ही उभर आएगा। जीवन के कमल की तरह ऊपर उठ आये तो यह कागज पर क्रॉस तो लोग कर ही रहे उसका 'अध्यात्म' हुआ। हैं, हम अगर इन्द्रधनुष उकेर लें तो ___ जीवन का आधार उसकी अपनी यह सार्थक पहल होगी। आत्मा है। जीवन के जर्रे-जर्रे में प्रस्तुत पुस्तक 'अध्यात्म का आत्मा का निवास और प्रकाश है। अमृत' महोपाध्याय श्री ललितप्रभ आत्मा ही वह धुरी है जो जीवन को सागर जी की वह अनुपम कृति है एक बार नहीं सौ बार मृत्यु से गुजर जिसमें जीवन-जगत् के आन्तरिक जाने के बावजूद सतत सनातन बनाए रहस्यों को उद्घाटित किया गया है, रखती है। सच तो यह है कि अध्यात्म अध्यात्म के अनछुए पहलुओं पर आत्मा के ही आभामंडल का नाम है। प्रकाश डाला गया है। दिखने में ये जीवन को अगर सार्थक करना है सीधे-सादे प्रवचन हैं, पर इनकी तो हमें जगत् में रहकर भी वीतद्वेष, गहराई हर व्यक्ति को सीधे अपने वीतराग-भाव से जीना है। हमें अपने अन्तर्मन में उतारती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only AR.ainelibrary.org 40/

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