Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 98
________________ कुम्हलाता तो है ही। _ 'जन्मे सो निश्चय मरे, कौन अमर हो आय'- जिसने जन्म लिया, उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है। महावीर के निर्वाण के समय इन्द्र ने स्वयं उपस्थित होकर कहा था कि 'प्रभो ! हो सके तो आप अपने जीवन को कुछ क्षणों के लिए बढ़ा लें, क्योंकि आपका देहांत ऐसे ग्रह में हो रहा है जिसका प्रभाव, आने वाली शिष्य-परंपरा पर पड़े बिना नहीं रह सकेगा।' लेकिन महावीर ने कहा – 'इन्द्र-! न एवं भूवम्, न एवं भव्वम्, न एवं भविस्सहि । न ऐसा हुआ, न हो सकता है और न होगा। कोई भी व्यक्ति अपनी जिन्दगी को न घटा सकता है और न बढ़ा सकता है। नियत है यहाँ सब कुछ-जीवन भी और मृत्यु भी। किसे पता है आने वाला कल जीवन बनकर आयेगा या मृत्यु बनकर।वास की डोर कब टूटेगी, क्या तुम जानते हो?' श्वासों का क्या ठिकाना रुक जाये चलते-चलते, प्राणों की रोशनी भी, बुझ जाये जलते-जलते। मनुष्य को इस बात की भी खबर नहीं है कि जो साँस वह भीतर ले रहा है, उसे बाहर भी निकाल पाएगा या नहीं। रात को सोते समय भी निश्चित नहीं होता कि सुबह सलामत उठ पाएँगे या नहीं। सुबह घर से निकलते हैं, पर शाम को हम लौटेंगे या नहीं, इसकी क्या गारंटी है ? आकाश में उड़ रही जीवन की पतंग, जाने कब कट जाए और उसकी डोर हवा में ही रह जाए। जीवन क्षणभंगुर है, पानी का बुलबुला है। जिन्दगी नाम है रवानी का, क्या थमेगा बहाव पानी का, जिन्दगी नाम है बेतआल्लुक का, एक हिस्सा कहानी का। वास्तव में जिन्दगी एक कहानी का हिस्सा है। बहते पानी की रवानी का नाम है जिन्दगी। इसलिए यह सोचकर चिंतित मत होना कि मरना है। एक दिन तो सभी को मरना है। अमर कोई नहीं है। यह मत सोचना कि दुनिया मर रही है किन्तु मैं थोड़े ही मरूँगा। साँस रहने तक ही जीवन रहता है, बाद में अपार-वैभव भी आपको जीवन नहीं दे सकते। __ संसार में ऐसे अनेक लोग हैं जो चमत्कारों में विश्वास रखते हैं। कोई कबूतर को चिड़िया बना देता है, कोई नजरों का इन्द्रजाल खड़ा कर देता है। लेकिन यकीन मानो, ये सब मिथ्या हैं। कोई भी व्यक्ति मृत्यु को जीवन नहीं बना सकता। इसलिए कहता हूँ, जब मौत आए तो उससे आँखें मत चुराना, उसका स्वागत करना। कुछ लोग बड़ी शेखी बघारते हैं कि हम मौत से नहीं डरते, लेकिन जब मौत आती है तो उससे नजरें चुराने लगते हैं। मेरे प्रभु! मौत हमारी शत्रु नहीं, मित्र है। उससे कतराना मत, उसका तो स्वागत ही करना। हमें कोई व्यक्ति नए कपड़े पहनाता है तो क्या वह हमारा दुश्मन हो जाएगा? इसी तरह कोई हमें जीर्णशीर्ण मकान से निकालकर महल में ले जाता है तो क्या वह हमारा शत्रु हो सकता है ? जीवन की समाप्ति भी ऐसी ही है। मत्य हमारे शरीर रूपी चोले को उतार देती है। आत्मा फिर किसी नए शरीर की ओर निकल पडती है। 99 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112