Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 99
________________ मृत्यु जीवन की वास्तविक समाप्ति नहीं है, अपितु केवल चोले का परिवर्तन है। न जाने हमने अब तक कितने चोले बदले हैं और कितने चोले बदलेंगे । मृत्यु बार-बार आती है और जीवन का रूपांतरण कर जाती है। कभी कोई चोला तो कभी कोई । कभी गाय का, कभी गधे का, तो कभी चींटी का। इंसान का चोला तो पता नहीं कितने जन्मों के बाद एक बार मिलता है। मृत्यु के रूप भी अनेक हैं । यह किसी को निर्वाण के रूप में मिल सकती है तो किसी को केवल मृत्यु के रूप में। इसलिए मृत्यु की चिंता मत करो। जीवन के अस्थायी समाप्तीकरण की चिंता मत करो। अपने आपको सुधारने की चिंता करो । आपने अपने जीवन का रहन-सहन बदल लिया, जीवन में स्थायी रूपांतरण ले आए तो आपको मृत्यु का भय नहीं सता सकेगा। तब मौत आपको नहीं मार पाएगी। दुनिया में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो रोते हुए पैदा होता है, झींकते हुए जीता है और असंतुष्ट ही मर जाता है । आप जरा जीवन का लेखा-जोखा करें तो आप पाएँगे कि सारी जिन्दगी रोते-रोते ही बीत गई। हर इंसान किसी-न-किसी समस्या को लेकर परेशान है। किसी के औलाद नहीं है, इसलिए रो रहा है, तो कोई अपनी औलाद बिगड़ने के कारण रो रहा है। रोते हुए आया हुआ आदमी रोते-रोते जिन्दगी पूरी कर रहा है 1 रोते हुए आए मगर हँसते हुए जाओ तो उल्लेखनीय बात होगी। मौत ऐसी हो कि दुनिया भले ही हमारे पीछे रोये, पर हम हँसते हुए अहोभाव के साथ जायें। कबीर कहते हैं 'हम हँसें, जग रोए', यह मत सोचना कि मैं जिन्दगी के अंतिम समय में अपना सुधार कर लूँगा। तुम नहीं सुधार पाओगे क्योंकि जो समय बीत गया, उसे लौटाना तुम्हारे हाथ में नहीं है। जो जवानी चली गई, वह लौट कर नहीं आ सकती । बीत गई सो बात गई । हमने अब तक जन्म और मृत्यु को महत्त्व दिया है, पर जीवन को हम महत्त्व नहीं दे पाये हैं। हम महापुरुषों की जन्म-तिथि या निर्वाण-तिथि महोत्सवपूर्वक मनाते हैं, पर इन दोनों से भी ज्यादा मूल्यवान जीवन होता है । महापुरुषों की जन्म और मृत्यु इसलिए महान् होती है क्योंकि उनका जीवन महान् होता है। इसलिए जीवन के रहस्य को पहचानने की कोशिश करो। जीवन का जो पल निरर्थक बीत रहा है, वह वास्तव में जीवन की मृत्यु ही है । वही व्यक्ति मृत्यु को निर्वाण में रूपांतरित कर सकता है जिसने जीवन को जीवन की दृष्टि से जीया है । जीवन की दृष्टि से मनुष्य जीवन का शुभारंभ है। मनुष्य के पहले भी तुम्हारी आत्मा का जीवन था, पर उसकी कोई उल्लेखनीय मूल्यवत्ता नहीं थी। पर जिसे हम जीवन कह सकें उसकी शुरुआत तो मनुष्य ही होती है। भले ही यह काया का मंदिर मिट्टी का हो, पर मंदिर के भीतर बैठा हुआ देवता माटी का नहीं है । इस चेतना के सहारे हम जीवन में छिपी उज्ज्वल संभावनाओं का उद्घाटन कर सकते हैं। पता है, एक मनुष्य में, उसके जीवन में कितनी ऊर्जा होती है? कितनी सम्भावनाएँ छिपी रहती हैं, पर वे सब हमारे अज्ञान के कारण दबी-की-दबी रह जाती हैं । हमारे भीतर एक बुद्ध बनने की सम्भावना थी, अरिहंत और वीतराग बनने की संभावना थी, एक दार्शनिक और चिंतक बनने की सम्भावना थी, पर हमने उन सब को दबा कर रख दिया । सच्चाई तो यह है कि हमें यह महसूस भी नहीं हो पाया कि हम कोई मनुष्य हैं। पशुओं की तरह पूरी जिंदगी जी और उपलब्धि के नाम पर हमें Jain Education International 100 For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org

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