Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ यह समझ सके कि धनवैभव और दवा भी मनुष्य को मौत से नहीं बचा सकते। तुम्हारी आयुष्य की डोर कब टूट जाये, कोई पता नहीं है। उस डोली को उठाने का कोई मुहूर्त नहीं निकाला जायेगा। जब तेरी डोली उठा ली जायेगी, बिन मुहूरत के उठा ली जायेगी। हे मुसाफिर, क्यों पसरता है यहाँ, ये किराये से मिला तुझको मकां, कोटडी खाली करा ली जायेगी। इन हकीमों से यह पूछो बोलकर, करते थे दवा किताबें खोलकर, यह दवा हरगिज न खाली जायेगी। बल सिकंदर का यहीं पर रह गया,मरते दम लूटमार फिर यूं कह गया, वह घड़ी हरगिज न टाली जायेगी। अतीत अगर खो गया है, तो उसे विस्मृत करें और वर्तमान और भविष्य को उज्ज्वल बनाने का संकल्प करें। सारी जिन्दगी सुषुप्ति और बेहोशी में बीत गयी है, अब होश को सम्हालें । तुम्हारी ऊर्जा, जिससे तुम सार्थक कृत्य कर सकते थे, निरर्थक बह रही है। मनुष्य इस सृष्टि पर पूर्ण इकाई नहीं है। वह पशु और प्रभु के बीच की कड़ी है। वह अपने जीवन को महावीर का रूप भी दे सकता है और जीवन का महाविनाश भी कर सकता है। पाप और पवित्रता उसके जीवन के दो विकल्प हैं और उन्हें चुनने के लिए वह स्वतन्त्र है। अपने जीवन की दिशा का निर्धारण हमें करना है। ऊर्जा तो प्रवाहमान है। उसे बाँधा न जा सकेगा। या तो वह बहेगी या ऊर्ध्वगामी होगी। अगर उस ऊर्जा को कृष्ण का मार्ग न दिया गया, तो वह कंस का मार्ग पकड़ लेगी; राम का मार्ग न दिया, तो रावण के मार्ग पर चलेगी। ऊर्जा विध्वंसात्मक रुख तभी अपनाती है, जब उसे सृजन का मार्ग न दिया जाये। निश्चित रूप से विज्ञान का जन्म भी ऊर्जा के सार्थक उपयोग के लिए ही हुआ होगा, पर हम उसका कितना सार्थक उपयोग करते हैं यह तो हम ही जानें। जिनका निर्माण विश्व की रक्षा के लिए हुआ था, उनका प्रयोग हम विश्व के विध्वंस के लिए करने की सोच रहे हैं। ___ हमारी आणविक क्षमता इतनी अधिक बढ़ गयी है कि जिसकी कोई हद नहीं। मुझे तो लगता है कि प्रलय के लिए शिव को तीसरे नेत्र के उद्घाटन की आवश्यकता ही नहीं होगी। मनुष्य स्वयं ही इस धरती पर प्रलय मचायेगा। मनुष्य का विनाश मनुष्य ही करेगा। कहते हैं कि सौ डिग्री पर पानी भाप बन जाता है और पच्चीस सौ डिग्री पर लोहा पिघलकर भाप बन जाता है। क्या आपको पता है कि एक हाइड्रोजन बम दस करोड़ डिग्री गर्मी पैदा कर सकता है। पूरे संसार के विनाश के लिए ऐसे सौ बम ही काफी हैं और विश्व में ऐसे हजारों बम बन चुके हैं। शस्त्रास्त्रों की होड़ में विश्व में इतने बमों का निर्माण हो चुका है कि एक बार नहीं सात-सात बार विश्व का विनाश हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में पचास करोड़ डॉलर प्रति घंटा विनाशक अस्त्रों के Jain Education International 25 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112