Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 50
________________ वहाँ पाँच हजार दिये, अमुक उपाश्रय में इक्कीस हजार दिये, वहाँ मंदिर में इक्कावन हजार दिये या अमुक तपस्याएँ की- अब दान और तपस्या भी प्रदर्शन के लिए हो गये। इसकी तो सूची छपवा रहे हो कि तुमने कहाँकहाँ दान दिया, पर तुमने क्या कभी वह सूची भी छपवायी है कि तुमने कौन-कौन से पाप करके धन का उपार्जन किया है। मेरे प्रभु ! अहंभाव को छोड़ो। पुण्य प्रदर्शन करने के लिए नहीं, अपितु जीने के लिए है। चाहे मुनि हो या गृहस्थ, अगर धार्मिक होने का अहंकार है, धार्मिकता से प्रतिष्ठा पाने की तमन्ना है, तो यह खतरनाक है । इसीलिए तो मैं भीतर रूपांतरण पर जोर देता हूँ । अगर व्यक्ति का बोध जग जाये तो उसका विकास उसे विनम्रता देता है । इतना ही नहीं कि हम धार्मिक हैं इसका हमें अहंकार है, अपितु जिस धर्म से तुम जुड़े हो भले ही वह चाहे जो हो, उससे भी तुम्हारा अहंकार जुड़ा है। धर्म से भले ही तुम्हें सरोकार न हो, पर तुम स्वयं उस धर्म से जुड़े हो इसलिए उसे ही श्रेष्ठ मानोगे। और अगर दूसरा कोई व्यक्ति उस धर्म के बारे में कोई गलत बात कह रहा है, भले ही वह सही हो पर तुम बौखला जाओगे। अगर तुम बौद्ध हो और तुम्हारे सामने यदि कोई महावीर को गालियाँ दे रहा है, तो तुम्हें कोई दिक्कत न होगी। अगर तुम जैन हो और तुम्हारे सामने यदि कोई बुद्ध को बुद्ध भी कह दे तो भी तुम्हें कोई दिक्कत न होगी। तुम्हें महावीर, मुहम्मद, कृष्ण- क्राइस्ट किसी से कोई मकसद नहीं है। हाँ ! जिससे तुम जुड़े हो, जिसे तुमने अपना मान लिया है, यदि उसके बारे में किसी ने दो कटु शब्द कह दिये तो तुम उत्तेजित हो जाओगे, क्योंकि उससे तुम्हारे अहंकार को चोट लग रही है। भगवान के लिए कड़वे शब्द कह दिये, इसलिए तुम उत्तेजित नहीं हुए। उत्तेजना इसलिए आयी क्योंकि वे 'तुम्हारे' भगवान हैं। अगर कोई भगवान के लिए कड़वे शब्द कहे और तुम्हें खेद हो तब तो बात जमेगी, पर अगर ऐसा है तो बुद्ध भी भगवान है अत: उनके बारे में कटु शब्द कहे जाने पर तुम्हें उत्तेजित होना चाहिये था, भले ही तुम जैन हो । धर्म के नाम पर लड़ने मरने वाले लाखों मिल जाएंगे पर धर्म को ईमानदारी से जीने वाले लोग कितने हैं ! अगर तुम किसी जैन के सामने महावीर की निंदा करो, वह क्रोधित हो उठेगा। बौद्ध के सामने बुद्ध की, हिन्दू के सामने राम-कृष्ण की, ईसाई के सामने ईसा की, मुसलमान के सामने मुहम्मद की, सिख के सामने नानक की निंदा करके तो देखो वह पत्थर मारने को तैयार हो जायेगा। हाँ ! यदि तुम उनकी प्रशंसा करो तो वह भी प्रसन्न होगा। उसे तब कोई एतराज नहीं होगा, वह थोड़ा बहुत प्रसन्न ही होगा, अगर उसके धर्म के सिवाय किसी दूसरे धर्म के भगवान की निंदा भी करोगे तो भी। लोगों ने बड़े सूक्ष्म अहंकार पाल रखे हैं। विश्व में जितने साम्प्रदायिक युद्ध हुए हैं उनमें अहंकार ने ही निमित्त का काम किया है अन्यथा धर्म के लिए आदमी लड़ता थोड़े ही है । अगर धर्म के लिए इंसान लड़ता तो 'इस्लाम खतरे में है ' होने पर हिन्दू भी उसकी रक्षा के लिए लड़ता और हिन्दू धर्म खतरे में होने पर मुसलमान' भी उसकी रक्षा के लिए लड़ता। फिर बलात् धर्म परिवर्तन नहीं करवाये जाते अपितु जो व्यक्ति जिस धर्म का अनुयायी है, उसे उसी में प्रगति करने का प्रोत्साहन दिया जाता। मेरे प्रभु ! लड़ाइयाँ कभी मंदिर-मस्जिद के पीछे नहीं हुई, लड़ाइयाँ तुम्हारे अहंकार के परस्पर टकराने के कारण हुई हैं। तुम मस्जिद इसलिए गिराना चाहते हो Jain Education International For Persor 51. Private Use Only www.jainelibrary.org

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