Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ लोग तो अर्थी को कंधा देते चलते, मगर वह बड़ी शान के साथ घोड़े के ऊपर चलता। लोगों को बहुत बुरा लगता, मगर करें क्या? ऐसे मौके पर कोई कुछ कह भी तो नहीं सकता था। एक दिन ऐसा भी आया कि लोगों को उसे सबक सिखाने का मौका मिल गया। हुया यूं कि उसकी माँ का देहावसान हो गया। गाँव के लोगों को पता चला तो उन्होंने उसे ठीक करने की सोची। सबने सलाह-मशविरा किया और उस समय तो वह किसान हैरान रह गया कि गांव के लोग एक-एक कर घोड़ियों पर बैठकर उसके घर आने लगे थे। कुछ ही देर में वहाँ घोड़ियाँ ही घोड़ियाँ हो गई। वह किसान परेशान । उसके घर में उसकी माँ और वह दो ही सदस्य थे। कहीं कोई रिश्तेदार तक नहीं था। अर्थी को उठाने का वक्त हो गया, मगर उठाए कौन? गांव के लोग तो घोड़ियों पर बैठे थे। उस किसान को अक्ल आ गई। उसने सबसे माफी मांगी और कहा कि आगे से वह अपना व्यवहार बदल लेगा, अभी तो अर्थी उठाओ। यही होता है, जब आदमी के ऊपर आती है, तब उसे दूसरों का दुःख समझ में आता है। इसलिए अपना जीवन सार्थक कर लो। अब भी समय है, चेत जाओ। न जाने फिर ऐसा अवसर हाथ आए, न आए और तुम पछताते रह जाओ। ___ आदमी को जीने के लिए दो-चार जीवन नहीं मिलते। न जाने कितने-कितने पुण्य कृत्यों के फलस्वरूप होता है। हमारे शास्त्र कहते हैं कि चौरासी लाख योनि हैं। उनमें भटकना पडता है। इतनी योनि भटककर पाया गया जीवन अधिकांश मनुष्य यूं ही गँवा देते हैं । यह तो स्वर्णिम अवसर है, जिसका लाभ उठाकर हम मोक्ष के मार्ग पर कदम बढ़ा सकते हैं। मैं यह नहीं कहता कि सब साधु संन्यासी बन जाओ। संसार में रहते हैं तो कर्म तो करने ही पड़ते हैं और करने भी चाहिए, लेकिन ऐसा भी न हो कि केवल खाने, पीने, सोने में ही हमारा जीवन पूरा हो जाए। हमने शास्त्रों में पढ़ा है कि पहले लोग सौ या उससे भी ज्यादा वर्ष तक जीते थे, मगर धीरे-धीरे ऐसा होने लगा कि आदमी का जीवन-समय घटता गया। आज तो हालत यह है कि कुछ पता ही नहीं चलता, आदमी कच्ची उम्र में ही संसार छोड़ जाता है। इसके पीछे कई कारण हैं। आदमी खुद इसके लिए जिम्मेदार है। उसकी बढ़ती हुई आकांक्षाओं के कारण कई विषमताएं उत्पन्न हो गई हैं और इसी से उसकी समस्याएँ बढ़ी हैं। इस नश्वर संसार में स्वयं को छोड़कर अन्य क्या अनश्वर है ? सब कुछ क्षणभंगुर हो रहा है। पता नहीं, कितने सिकन्दर आये हैं इस धरती पर और अखूट धन के स्वामी होकर भी खाली हाथ ही गये हैं। आयुष्य की डोर टट जाने के बाद उसे कौन सांध पाया है? सिकन्दर जब मत्य के निकट था और स्वयं को बचाने की सारी कोशिशें निष्फल हो चुकी थीं, तो उसकी रूह काँप उठी। सिकन्दर ने अपने अंतिम फरमान में कहा था कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी सारी सम्पत्ति कब्रिस्तान में लायी जाये ताकि लोग देख सकें कि, जिस सिकन्दर ने अपने बलबूते पर अपार वैभव पाया था, वह उसे भोग भी न पाया और उससे बच भी न पाया। मेरी अंतिम यात्रा में, मेरे जनाज़े के आगे मेरो सारी सैन्य-शक्ति रहे और इन वैद्यों के कंधे पर ही मेरा जनाजा उठाया जाये, ताकि विश्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112