Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 31
________________ करता? पद और प्रतिष्ठा पाने के चक्कर में हमारा अपना जीवन घनचक्कर बना जा रहा है। फिर राजनीति..... ! पद की राजनीति ! ओफ्फो ! पूछो ही मत । बड़ा छिछलापन है इस राजनीति में तो! संकल्प भले ही हम राष्ट्र-सेवा का दुहराएँ, लेकिन शायद ही किसी नेता का आचार-व्यवहार ऐसा बोलता हो । देश कितना सुरक्षित है, इसकी उन्हें चिंता नहीं। हाँ, अपनी कुर्सी कितनी सुरक्षित है, इसकी चिंता सताए जा रही है। हमारी संस्कृति के विकास की किसको परवाह है? सब अपनी जेबों को भरने में लगे हैं। समाज और देश के कल्याण की बातें करने वाले कुछ लोग सिवाय स्वार्थी गोरखधंधे के और कुछ नहीं करते। नेता पर ही तो सारी व्यवस्था के दायित्व होते हैं । नेता को तो ऐसा नेतृत्व प्रदान करना चाहिये, जिस पर समाज और देश गौरव कर सके। वह देश को, समाज को खुशहाल बना सके तथा उन्हें समृद्धि की नई दिशाएँ दिखा सके। पद पाने की लालसा अब तो समाज में भी इतनी बढ़ गयी है कि धार्मिक या सामाजिक संस्थाओं में भी चुनावों में खड़े होने की होड़ लगी रहती है। समाज के ये नेता अपनी अहम्-पूर्ति के लिए, अपने पद को बचाने के लिए समाज के दो टुकड़े करने में भी नहीं चूकते। लोग बताते हैं कि अभी दो वर्ष पूर्व एक शहर में किसी सामाजिक संस्था के अध्यक्ष पद को लेकर चनाव हए और इस चनाव में प्रतिष्ठा का ऐसा अहम महा बन गया कि पैसा पानी की तरह बहाया गया। एक अनमान के अनसार उसमें पचास लाख से भी ज्यादा का खर्च हआ और समाज के दो टुकड़े हो गये। पद और प्रतिष्ठा पाने के पीछे अगर धर्म और समाज में कोई विभेद पैदा होता है, तो वह पद त्याज्य है। हमें अपने जीवन को छिछली राजनीति का मुखौटा नहीं पहनाना है। अन्यथा कुर्सी पाने के चक्कर में तुम अपने सारे जीवन-मूल्य गिरा बैठोगे। ऐसा हुआ, एक बार दो नेता पानी के जहाज पर यात्रा कर रहे थे। जहाज में करीब ४०० यात्री और भी थे। एक दिन अचानक जहाज हिलने लगा। सभी परेशान! नाविकों ने देखा कि एक बड़ा-सा मगरमच्छ जहाज को नीचे से धक्का मार रहा है। वह संभवत: भूखा होगा, लेकिन जहाज में इतना भोजन नहीं था कि उसे मगरमच्छ को डाला जा सके। एकाएक किसी यात्री को न जाने क्या सझी! उसने जहाज के डेक पर पडी एक की समद्र में फेंक दी। मगरमच्छ उस कर्मी को साबत ही निगल गया। इसके बावजद उसका जहाज को धक्का मारने का क्रम जारी रहा। जहाज में दो नेता भी सवार थे। लोगों ने सोचा ये हमेशा सेवा के लिए सब कछ न्यौछावर करने की बात करते हैं। आज इन्हें 'मौका' दिया जाये। उन्होंने एक नेता को समुद्र में फेंक दिया। मगरमच्छ उसे साबूत ही निगल गया। मगर उसकी हलचल बंद न हुई। जहाज के यात्रियों ने दूसरे नेता को भी समुद्र में फेंक दिया। पता नहीं, उन दो नेताओं को खाकर मगरमच्छ क्यों शांत हो गया? इधर मल्लाहों ने जाल डालकर उस मगरमच्छ को पकड़ लिया। उसे खींचकर जहाज के डेक पर लाया गया। मल्लाहों ने यह सोचकर कि संभव है इसके पेट में दोनों में से कोई जीवित हो। उन्होंने मगरमच्छ का पेट 32 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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