Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 43
________________ में स्थिर नहीं हो पाता है इसीलिए वह वर्तमान का अनुपश्यी नहीं हो पाता है। वही व्यक्ति वर्तमान का साक्षी हो सकता है, जो ध्यान में जीता है। ध्यान का अर्थ है मन से मुक्त होना और मन से मुक्ति का अर्थ है अतीत और भविष्य से मुक्ति । अतीत और भविष्य के बीच ध्यान की सघनता में जो क्षण घटता है वह वर्तमान है। जो वर्तमान का अनुपश्यी हो गया, वह ध्यान को उपलब्ध हो गया, उसका मनोदर्पण स्वच्छ हो गया। ___ मन की चंचलता समाप्त होगी तो ध्यान सधने लगेगा। ध्यान में यही बात महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति दृष्टाभाव, साक्षी-भाव में जिये। जो हो रहा है, उससे मेरा कहीं कोई सम्बन्ध नहीं है। यह तो होना ही है। मैं तो साक्षी भाव में हूँ, ऐसी धारणा पर यदि वह दृढ़ रहे तो धीरे-धीरे चित्त की चंचलता के निमित्त समाप्त होते चले जाएँगे। ध्यान इसी का तो नाम है। ___ आप अपने मन की तरंगों को जरा पहचानने की कोशिश करें। ये तरंगें बड़ी सूक्ष्म हैं । आखिर ये तरंगें कहाँ से पैदा हुई ? लाख कोशिश करने के बावजूद उनकी उड़ानें थम क्यों नहीं पाती हैं ? ___ मैंने सुना है, एक राजा को कहानियाँ सुनने का बड़ा शौक़ था। लोग आते और उसे कहानियाँ सुनाकर चले जाते। आखिर कहानियों का भी अकाल पड़ने लगा। अंत में राजा ने घोषणा कर दी कि यदि कोई ऐसी कहानी सुनाएगा, जिसका अंत ही नहीं हो तो ऐसे आदमी को एक लाख स्वर्ण-मुद्राएँ दी जाएँगी। लोगों ने प्रयास किया, मगर किसी की कहानी एक घंटे में खत्म हो जाती तो, किसी की दो घंटों में । कई पंडित-ज्ञानी आए, पर जब रामायण और महाभारत की कहानी भी खत्म हो जाती है, और तो और, जीवन की कहानी भी समाप्त हो जाती है, तो कल्पनाओं की कहानी की भला कितनी उम्र? एक दिन दस वर्ष का एक बालक राज-दरबार में आया। उसने राजा से कहा कि 'मैं ऐसी कहानी सुनाऊँगा जिसकी समाप्ति नहीं होगी, लेकिन मेरी एक शर्त है।' राजा ने पूछा कि वह शर्त क्या है ?' बालक ने कहा कि 'जब तक मेरी कहानी खत्म नहीं हो जाती, आप सिंहासन से नहीं उठेंगे।' राजा ने सोचा कि आखिर दस वर्ष का बच्चा है, कितनी देर कहानी सुनाएगा, ज्यादा से ज्यादा दो-तीन घंटे।' उन्होंने शर्त मान ली। बच्चे ने कहानी शुरू की। उसने कहा, 'एक बहुत बड़ा बगीचा था। बगीचे में सैकड़ों पेड़ थे और पेड़ों पर लाखों डालियाँ थीं। इन डालियों पर असंख्य पत्ते थे। एक दिन इस बगीचे में हजारों हजार टिड्डियाँ आईं। इन टिड्डियों ने पत्ते खाने शुरू किए। एक टिड्डी ने पत्ते खाकर अपना पेट भरा और उड़ गई फुर्रर्र..... । दूसरी टिड्डी ने भोजन किया और वह भी उड़ गई फुर्रर्र..... । तीसरी, चौथी, पांचवी.....।' करीब घंटे भर तक बालक यूं ही कहता रहा और संख्या करीब तीन सौ तक पहुँची। बालक ने यही वाक्य कहने का क्रम जारी रखा। शाम हो गई, मगर तब तक मुश्किल से मात्र आठ सौ टिड्डियाँ ही उड़ पाईं। अब राजा परेशान । कहानी खत्म होने तक वह सिंहासन से उठ भी नहीं सकता था। तंग आकर उसने कहा- 'अरे बालक, यूं तो तेरी कहानी कभी खत्म ही न होगी।' बालक ने कहा-'आपने ठीक सोचा, जब तक ये अरबों टिड्डियां भोजन कर उड़ नहीं जाएँगी, तब तक कहानी समाप्त नहीं होगी। इसके बाद भी यदि और टिड्डियाँ आ गईं, तो कहानी और आगे बढ़ेगी।' राजा ने हार मान ली। सचमुच यह वह कहानी है जिसका समापन शायद सम्भव न हो। 44 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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