Book Title: Adhyatma ka Amrut
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 38
________________ बदल जाती। इसलिए बन्धन-मुक्ति अनिवार्य है। अशुभ से शुभ अच्छा, पर साधना तो शुद्धत्व की उपलब्धि में ही है। अशुभ-शुभ दोनों से मुक्ति ही चेतना की उपलब्धि है। शुद्धत्व को उपलब्ध करने के लिए आवश्यक है शून्यत्व। अमृत की उपलब्धि के लिए पहले जहर-मुक्ति तो आवश्यक है। अगर भीतर का पात्र जहर-सना होगा तो अमृत भी वहाँ जाकर जहर बन जायेगा। मनुष्य के चित्त में, विचारों में पता नहीं कितना कचरा भरा है, इसीलिए तो मनुष्य तनाव में जी रहा है। तनाव-मुक्ति के लिए मौन होकर, सांस पर ध्यान रखते हुए अपने चित्त की गतिविधि को देखें। अपने चित्त के यातायात का निरीक्षण करो। सिर्फ साक्षी बनकर, तटस्थ बनकर। न निंदा, न प्रशंसा, न मूल्यांकन। साक्षी भाव में उपस्थिति के बाद शरीर बदलता है, मन बदलता है, भावनाएँ बदलती हैं, केवल साक्षी वैसा ही रहता है। ध्यान के निरन्तर अभ्यास से विचारों के बादल छंटने लगते हैं और आत्मा का नीला आकाश उदि व्यक्ति को अन्तर्-आकाश का अनुभव होगा तो शरीर, मन, हृदय-इस समूह से पार जाने का स्वाद मिलेगा। जीवन में एक अद्भुत शांति, हर्षोल्लास और परितृप्ति की अनुभूति होगी। बिना आंतरिक शून्यता के सत् की उपलब्धि संभव नहीं है। हम स्वयं को आनंद से सराबोर करने के लिए पहले अपने भीतर का कचरा हटायें, गंदगी साफ करें, निर्मलीकरण करें। आंतरिक रिक्तता, उसकी स्वच्छता होगी वैसे-वैसे ताजगी, आनंद उमड़ता रहेगा। और जिस दिन भीतर से आनन्द उमड़ पड़ेगा, उस दिन लगेगा जिसे मैंने रिक्त किया, वह सरोवर लबालब भर गया है, अन्तर्-आनन्द से। साधना के पथ पर,फिर से कदम बढ़ाइये। अपने को पहले,बिल्कुल खाली बनाइये ॥ कितने भरे हैं अन्दर, कुछ न समाता। अद्भुत कुछ घटने वाला, घटने न पाता। शून्य करने का कुछ-कुछ श्रम तो उठाइये॥ कूप ऊपर का पानी, लेना न चाहता। अन्तर्-के झरनों से, वह खुद भर जाता। ___ व्यर्थ के विकल्पों में गोते न खाइये ।। शक्कर भरी हो, चाहे धूल भरी हो। सोने की सांकल हो, या लोहा जड़ी हो। शुभाशुभ दोनों त्याज्य, शुद्ध बन जाइये ।। हमें अध्यात्म के मार्ग में एक बार दुबारा कदम उठाना पड़ेगा। अब तक कहीं परम्परागत पथ मिला था, अब हमने अपना पथ स्वयं चीन्हा है, खोजा है। भीतर की विकृतियों/वृत्तियों को बाहर निकालोगे, शून्यत्व की उपलब्धि के लिए तो एक बारगी लगेगा जैसे सब कुछ खाली-खाली हो गया है। मेरे प्रभु! कमरा खाली नहीं होगा, कमरा सिर्फ साफ-सुथरा हो जायेगा। पहले इधर-उधर सामान बिखरा था, वह व्यवस्थित हो गया है। कमरा पहली बार ऐसा हुआ है, जिसे हम कमरा कह सकें। अंतर हृदय की निर्मलता और शुद्धि हमें मुक्ति के करीब ले जाएगी। 39 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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