Book Title: Adarsh Kanya Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 5
________________ दूसरी कलम से भारतीय-सस्कृति के मूल स्वर को ध्वान पूर्वक सुना जाए, तो स्पष्ट सुनाई देगा कि नारी पूज्य है, भगवती है, आराध्य है और अन्नपूर्णा है। मानव-संस्कृति का वह मूल' बोज है। और मानवता का वह मूलबीज है और मानवता का मूलाधार भी। आज की नारो आत्मा की जड़ों में फिर से उसी ध्रव धारणा को अंकुरित और पल्लवित करने के लिए ही आदर्शबन्या नामक प्रस्तुत लघु-निबन्ध पुस्तक तैयार की गई है। यह पुस्तक आज बहुत वर्ष पहले प्रकाशित की गई थी। तब से अब तक इसके बारह संस्करण हो चुके हैं। इस कालावधि ने निबन्धों को कुछ धूमिल-सा कर दिया था। और कुछ-कुछ खरदुगपन भी पैदा कर दिया था। अत: उन्हें इनः सवारा सजाया गया है। प्रस्तुत प्रकाशन को कन्याओं के लिए उपयोगी बनाने का जितना प्रयास किया जा सकता था, किया है। फिर भी प्रकाशन कैसा है, यह पाठकों के निर्णय की चीज है, और सबसे बड़ी चीज है, उन बहनों के पसन्द की, जिनके लिए यह सब कुछ किया है। ओमप्रकाश जैन मन्त्री सम्मति ज्ञान पीठ लोहामण्डी, आगया-2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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