________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा० ॥६३८॥
www.kobatirth.org
शब्दथी कहेवाय तेम नथी, एम नहीं पण उत्प्रेक्षणीय पण नथी ते पण बतावे छे,
ज्यां पदार्थनो संबन्ध होय त्यां तेना अध्यवसायना अस्तित्वमां उह तके थाय, पण ज्यां ते नथी त्यां शब्दोनी प्रवृत्ति केवी | रीते थाय ? प्र० - शा माटे त्यां तर्कनो अभाव छे ? ते कहे छे 'मनन' करवुं ते मति छे अर्थात् ते मननो व्यापार छे. अने पदाथेनी चिंता [विचार] नी चार प्रकारनी औत्पादिका विगेरे बुद्धि छे. त्यां तेनो ग्राहक नथी. (प्रयोजन नथी) कारण ते मोक्ष अबस्थामा वधा विकल्पोनो अभाव छे, [त्यां विकल्प थइ शकतो नथी] त्यां मोक्षमां जे जीवो जाय तेओने कोइ पण जातना कर्मानो अंश छे के अथवा अकर्म बनीने जाय छे, ? तेनो उत्तर कर्म सहित जे जीवो छे तेमनुं त्यां गमन नथी, एवं बतावे छे. 'ओजः' एकलोज अर्थात् संपूर्ण मलरूप कलंकथी रहित त्यां सिद्ध भगवंत छे, वळी तेमने ओदारिक शरीर विगेरेनु अथवा कर्मनु प्रतिष्ठान नथी, माटे तेओ अप्रतिष्ठान छे. एटले मोक्ष अप्रतिष्ठान छे, ते मोक्षने जाणवामां 'खेदज्ञ' (निपुण) छे. अथवा अप्रतिष्ठान नामनो नरक छे. त्यां तेमने लोकनाडी पर्यंतनुं परिज्ञान छे, तेना आवेदनवडे वधा लोकनी खेदज्ञता बतावेली छे [सर्वे जीवोनु ते दुःख सुख जाणे छे] सर्व स्वरतुं निवर्तन जे अभिप्राय डे कां छे ते अभिप्रायने हवे प्रकट करे छे. ते परमपदनो अभ्यासी लोकांते कोशना छठ्ठा भागे (कोश ) जे क्षेत्र छे, तेमां रहेल छे, तेमने अनंत ज्ञान तथा दर्शन छे, ते संस्थाने आश्रयी पोते दीर्घ न थाय, न ह्रस्व थाय, न गोलाकारे न त्रिकोण, न चतुष्कोण, न गोळा जेवो, तेमज वर्णरहित ते काळो नीलो लोहित (लाल) हारिद्र (पोळा) घोळो कोइपण जातनो रंग तेमने नथी, तेम सुरभि के दुरभि गंधनथी, तेम तीखो कडवो कपायलो खाटो मधुर रस नथी, तेमज कर्कश [खरबचडो] मृदु गुरु शीत उष्ण स्निग्ध लूखो कोइपण जातनो स्पर्श नथी, तथा उष्ण शब्दथी कापोत विगेरे लेश्यापण नथी,
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रम
॥६३८॥