Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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आचा०
॥७२६॥
JERIORSERY
Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit पराक्रम न होय तो अपराक्रम कहेवाय तेवू मरण जेने जंघावळ सर्वथा क्षीण थयेलं होय तेवा उदधि [सागर] नामना ते || आर्य समुद्र मुनि, मरण थयेलुं छे. तेनो वृद्धावाद आ प्रमाणे छे. ते प्रमाणे पादप उपगमन अणसण वडे तेमनु मरण थयेल छे.
सूत्रम जेवी रीते आर्य समुद्रन अपराक्रम मरण छे. तेवू बीजी जग्याए पण जाणवू. (गाथा अर्थ)
तेनो भावार्थ कथाथी जाणवो. आर्य समुद्र नामना आचार्य स्वभावथीज दुर्बळ हता, पछीथी जंघा चळे सर्वथा क्षीण थतां 8/॥७२६॥ शरीरथी बीजो लाभ न जाणीने तेने तजवानी इच्छाथी पोताना गच्छमां रहीने उपाश्रयना एक भागमा आहार रहीत पादप उपM गमन अणसण कर्यु, हवे व्याघातबाळ अणसण कहे छे..
वाघाइयमाएसो अवरद्धो हुन्ज अनतरएणं । तोसलि महिसीइ हओ, एयं वाघाइयं मरणं ॥२६७।। विशेषथी आघात ते सिंह विगेरेए करेलो व्याघात छे एटले शरीरनो नाश थाय छे. तेना वडे जे अणसण समाप्त थाय अथवा व तेवू मरण थाय तो ते व्याघातिम अणसण छे. एटले कोइ साधुने सिंह विगेरेए घेयों होय, अने तेनाथी मरण थाय, ते व्याघातिम
छे तेना माटे वृद्धवाद आ प्रमाणे छे. के तोसली नामना आचार्यने भेंसोए धेर्यो, अने मरण वखते तेमणे चार प्रकारनो आहार त्यागीने अणसण कयु ते व्याघातिम मरण छे. तेनो भावार्थ कथाथी जाणवो ते कहे छे.
ते देशमा भेसो घणी थाय छे. तोसली नामना आचार्यने जंगली भेंसोए घेर्यो, तेमणे पीडातां बीजो उपाय न जोइने चार प्रकारना आहार त्यागवानु अणसण कयु हवे अव्याघातिम अणसण बताववा कहे छे.
अणुपुचिगमाएसो पन्चज्जासुत्तभत्थकरणं च । वीसज्जिो (य) निन्तो, मुक्का तिवहस्स नीयस्स ॥२६८।
कलानावर
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