Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 171
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७७६॥ www.kobatirth.org हणुयं संचारिजा आसाएमाणे, दाहिणाओ वामं हणुयं नो संचारिजा आसाएमाणे, से अणासायमाणे लाघवियं आगममाणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ, जमेयं भगवया पवेइयं तमेवं अभिसमिच्चा सबओ सबत्ताए समत्तमेव अ (सम) भिजाणीया ( सू० २२० ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्व बतावेलो साधु अथवा साध्वी अशन विगेरे आहार उद्गम उत्पादन एषणाथी शुद्ध अने प्रत्युत्पन्न ते ग्रहण एषणा शुद्ध एटले १६ गृहस्थ दान देनारना तथा सोळ लेनारना तथा दश बन्नेना भेगा मळी कुल ४२ दोषथी रहित आहार लावीने गोचरी करतां जे पांच दोष अंगार धूम विगेरे छे तेने वर्जीने आहार करे, ते अंगार अने धूम रागद्वेषना कारणे थाय छे, ते सरस नीरस आहार आवे तो रागद्वेष थाय छे, अने कारणनो अभाव थतां कार्यनो पण अभाव छे, एम. जाणीने रसनी उपलब्धि [स्वाद ] नुं निमित्त त्यजवानुं बतावे छे. ते साधु आहार करतां डावी बाजुथी जमणी बाजु स्वाद लेवा माटे भोजन विगेरे न लइ जाय तेज प्रमाणे स्वाद लेवा जमणी बाजुथी डावी बाजु न लइ जाय कारणके संसारना स्वादथी रसनी प्राप्तिमां रागद्वेषनुं निमित्त छे, अने तेथीज अंगार, तथा धूम दोष लागे छे, जेथी उत्तम साधु साध्वीए जे कइ स्वादिष्ट होय तेनो स्वाद न करवो बीजी प्रतिमां “आढायमाणे" पाठ छे, तेनो अर्थ आ छे, के "आहारमां आदरवाळो मूर्च्छावाळो गृद्ध बनीने आहारने आम तेम न फेरवे" (च) मांडवी जमणीमां न फेरवनुं, तेम बीजे पण स्वाद वो नहि ते बतावे छे. 'स' ते साधु चारे | मकारना आहारने वापतो रागद्वेष छोडीने खाय, तेज प्रमाणे कोइ निमित्तथी डावी जमणी बाजु आहार फेरववो पडे तो पण पोते For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥७७६॥

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