Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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सूत्रम्
आचार
सातमो उद्देशो ॥७८३॥
छट्टो कहीने हवे सातमो कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध छे. गया उद्देशामां एकत्व भावना भावनार घृति संहनन विगेरेथी। युक्त साधुनुं इंगित मरण बताव्युं, अने अहीं तेज एकत्व भावना प्रतिमाओवडे बतावे छे, एथी अहीं ते प्रतिमाओ बतावे छे, तथा ॥७८३॥ वधारे विशिष्ट संघयणवाळो पादपोपगमन अणशण पण करे, आ संबन्धे आवेला उद्देशानुं आ प्रथम सूत्र छे.
जे भिक्खु अचेले परिसिए तस्सणं भिक्खुस्स एवं भवइ-चाएमि अहं तणफासं अहियासित्तए सीयफास अहियासित्तए, तेउफासं अहियासित्तए दंसमसगफासं अहियासित्तए एगयरे अन्नतरे विरूवरूवे फासे अहियासित्तए, हिरिपडिच्छायणं चऽहं नो संचाएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पेइ कडिबंधणं धारित्तए (सू० २२३ )
जे साधु प्रतिमा धारण करेलो अने विशेष अभिग्रहथी अचेल (वस्त्ररहित) पणे सयममा रहेलो होय, ते भिक्षुने आवो अभिमाय थाय छे, के हुँ घृति संहनन विगेरे युक्त होवाथी वैराग्य भावनाथी भावित अंतःकरणवाळो छु. अने आगम चक्षुवडे ( चारे
गतिनुं ज्ञान होवाथी ) नारकतिर्यचनुं दुःख जाणु छु. अने मार्नु छु के मारे मोक्ष जेवं मोटु फळ लेवान होवाथी तृणनो स्पर्श दि कंइ दुःख देतो नी, तेज प्रमाणे ठन्ड, ताप, डांस, मच्छरनो स्पर्श सहन करवा शक्तिमान छु, तथा एक जातना के जुदी जुदी
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