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आचा०
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द्वावेव पुरुषौ लोके, क्षरश्वाक्षर एव च । क्षरः सर्वाणि भूतानि, कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥ १ ॥
बेज पुरुषो लोकमां पूर्वे हता, एक क्षर ( नाशवंत ) बीजो अक्षर [अनाशवंत ] तेमां क्षरमां सर्व भूतो छे. अने अक्षर ते कूटस्थ कहेवाय छे. आ प्रमाणे परमार्थने नहीं जाणनारा लोक छे. विगेरे स्वीकारवा वडे विवाद करता जुदी जुदी वाणी काढे छे तेज प्रमाणे आत्माने पण जुदी जुदी रीते बतावे छे जेमके सारुं कर्यु, ते सुकृत माने अथवा दुष्कृत माने एम क्रियावादीओ माने छे. | एटले कोइ बोले के सर्व संगनो त्याग करवाथी महाव्रत ग्रहण कर्यु, ते सारं कर्यु. तथा बीजा बोले छेके हे भाइ ! आ सरळ मृगलोचनवाळी स्त्रीने पुत्र उत्पन्न कर्या विना तें त्यागी, ते खोटुं कर्यु. तथा जे दीक्षा लेवा तैयार थयो होय, तेने कहे, के आ कल्याण छे. तेनेज बीजो कहे के आ तो पाखंडीओना जाळमां फसाएलो कलीब के! गृहाथम पाळवाने असमर्थ छे ! विना पुत्रे दीक्षा लीधी | तेथी पापरूप छे तथा आ साधु छे, असाधु 'छे एम पोतानी मतिए कल्पना करी इच्छानुसार बोले छे तथा सिद्धि छे अथवा सिद्धि नथी, अथवा नरक छे अथवा नधी ए प्रमाणे बीजुं पण पोताना आग्रह प्रमाणे पकडी विवाद करे छे ते बतावे छे के आ पूर्वे बनावेलं लोक विगेरेने आश्रयी जुदुं जुदुं माननारा ते विप्रतिपन्न वादीओ छे ते कहे छे.
इच्छंति कृत्रिमं सृष्टि-वादिनः सर्व मेव मितिलिङ्गम् । कृत्स्नं लोकं माहेश्वरादयः सादि पर्यन्तम् ॥ १ ॥ सृष्टिना वादीओ माहेश्वर विगेरे बधुंज मितिलिंग अने कृत्रिम माने छे, अने वधा लोकने सादि पर्यंत माने छे.
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नारीश्वरजं केचित् केचित् सोमानिसंभवलोकं । द्रव्यादि षड्विकल्पं, जगदेतत्केचिदिच्छन्ति ॥ २ ॥ तथा इश्वरथी उत्पन्न थएलुं माने छे, केटलाक मतवाळा सोमाशिथी लोक उत्पन्न थयेलुं माने छे तथा द्रव्यगुण विगेरे
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सूत्रम्
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