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आचा०
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धोता त्थाई धारिज्जा, अपलिओत्रमाणे गामंतरेसु ओमचेलिए, एयं खु सामग्गियं ( सू० २११ )
अह प्रतिमा धारी अथवा जिनकल्पी जे अछिद्र हाथ (लब्धि) वाळो मुनि जाणवो; कारणके, तेनेज पात्र निर्योग युक्त पात्र, तथा कल्पत्र (वनी) आवी ओघ उपधि होय छे, तेने औपग्रहिक (संथारीडं विगेरे) उपाधि होती नथी; तेमां ठंडमां शिशिर विगेरे ऋतुमा क्षौमि (सून) वे कपडा (२||) हाथ लांबा पहोळां होय छे, अने श्रीजुं उननुं होय छे, तेवा मुनिने ठंड विशेष होय तो पण, ते साधु बीजुं कपड़े इच्छतो नथी ते बतावे छे. जे भिक्षु त्रण कपडांथी निर्वाह करनारो छे, ते ठंडमां एक कपड़े ओढे छे. जो उन्ड वधारे लागे, अने सहन न थाय तो, बीजुं ओढे, ते बन्नेथी पण, घणी उन्डना लीधे न सहाय तो, त्रीजुं उननुं कपड़े पण ते बन्ने उपर ओढे छे. उनना कपडाने बहारना भागमां सर्वथा राखवं; अंदर तो, मूत्रनुज राखवं. ए त्रण वस्त्रो केवां छे ? ते बतावे छे. 'पात्र चतुर्थैः' पडता आहारने न पडवा दे ते पात्र छे, अने ते पात्र ना लेवाथी पात्रनो निर्योग सात प्रकारनो पण लीधो जावो कारण के तेन विना पात्र लेवाय नहीं. ते आ प्रमाणे छे:
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पत्तं पत्ताबन्धो, पायट्टवणं च पायकेसरिआ । पडलाइ रत्ताणं च गोच्छओ पायणिज्जोगो ॥ १ ॥
[१] पात्र [२] पात्रानुं बन्ध [३] पात्रानु स्थापन (४) पात्र केशरिका (पंजणी) (५) पडला (६) रज खाण [७] गुच्छो आ सात पात्रानो निर्योग छे. आ प्रमाणे सात प्रकारनो पात्र निर्योग तथा कल्प त्रण, तथा रजोहरण [ ओघो] मुखवत्रिका (मुहपत्ति)
सूत्रम
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