________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचा० कर्म आसाधु खपावे छे, तेटलुंज आया समयमां थोडा काळमां कर्म क्षय करी नाखे छे ते बतावे छे. 'सोऽपि' वेहानस विगेरेथी मर-18
सूत्रम् नारो पण फक्त भक्त परिज्ञा विगेरे करनारो नहि पण आ साधु वेहानस विगेरे मरणमां ('रिश्रति कारएति') विशेष प्रकारे अन्त-12 ॥७६७॥ क्रिया करनारो ते व्यन्तिकारक छे तेवाने तेवा समयमा वेहानसादि मरण उत्सर्गज मार्ग छे. कारणके, आयु अकाळ मरण जे
॥७६७॥ 3 अपवाद रुप छे, तेना वडे मरेला अनन्ता सिद्धो पूर्वे थया अने थशे. उपसंहार करवा कहे छे के, आ उपर बतावेलु है वेहानस विगेरे मरण मोह दूर थयेला साधुओनी कर्त्तव्यताथी आयतन [आश्रय छे अने अपाय दूर करतुं होवाथी हित छे.
जन्मांतरमां पण सुख आपनार होवाथी सुख छे. तथा काळ आवेलो होवाथी क्षम (युक्त) छे. तथा, कर्म क्षय करनार होवाथी 3 निःश्रेयस छे. तथा, पुण्यनो अनुगम उपार्जन करवाथी आनुगमिक छे, आ प्रमाणे सुधर्मास्वामी कहे छे:--
चोथो उद्देशो समाप्त.
SRORSCORRESS
पांचमो उद्देशो ___ चोथो उद्देशो कहीने हवे पांचमो कहे छे. तेनो आ प्रमाणे संबन्ध छे गया उद्देशामा गार्धपृष्ट विगेरे बाळमरण बताच्यु पण 2 आ उद्देशामां तो तेथी उलटुं भक्तपरिज्ञानामनुं मरण ग्लान भाव पामेला साधुए स्वीकार ते कहे छे. तेथी आ संबन्धे आवेला उद्देशानुं आ प्रथम सूत्र छे.
ॐॐॐॐॐॐ
For Private and Personal Use Only