Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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-ॐ
आचा० X (उज्जड घरमां) रहे; अथवा, पर्वतनी गुफामां अथवा झाड नीचे अथवा, कुंभारनां स्थानमा अथवा, गामनी बहार कोइ पण जग्याए
सूत्रम् मतं साधु कोइ. वखत विहार करे; तेने घरनो मालिक आवीने साधुनी जग्यामां जइने बोले. जे बोले ते बतावे छे. ॥७४७॥
मसाण विगेरे स्थानमा परिक्रमण निगेरे क्रियाने करता साधु पासे कोइ त्यां पडेला उभो रहेल कोइ माणस स्वभावथी भद्रक 8/॥७४७॥ जीव अथवा समकीत बारी श्रावक गृहस्थ होय, ते साधुना आचारमा अजाण होय; ते साधुने उद्देशीने कहे. आ आपेलो आहार X MI खानारा छे. आरंभ छोडेला छे. अनुकंपा लाववा योग्य छे अने एटलुं छतां, तेओ सत्य शुचिवाळा (स्नान रहित) छे. माटे, एमने | | आपेलं अक्षय फळ आपनार छे माटे, हुं तेमने दान आपोश. एम विचारीने साधु पासे आवे अने बोले. हे अयुष्मन् ! हे साधु ! हुं संसारसमुद्र तरवानी इच्छावाळो तमारे माटे भोजन, पाणी खादिम, तथा स्वादिम वस्तु लावू; अथवा वस्त्र, पात्रां, कांबळ, जाहरण, विगेरे बनावीने लावू, अर्थात् आम कहीने ते गृहस्थ शुं करे ? ते कहे छे. पंचेन्द्रिय जेओ श्वास ले छे, ते पाणीओ छे. तथा त्रणे काळमां थया, थाय छे अने थशे. ते भूत छे, तथा जीवता हता, जीवे छे, अने जीवशे; ते जीवो छे. तथा सुख दुःखमा सक्त छे | ते सत्त्वो छे. तेमनो आरंभ करीने लावे; तेमां भोजन विगेरेना आरंभमां पाणीनुं उपमर्दन अवश्य थवानुं छे. आ गृहस्थोनु कहेलं 81 बधुं अथवा थोडुं, कोइ साधु स्वीकारी ले. माटे खुलासो करे छे. आ अविशुद्धि कोटि लीधी छे ते बतावे छे.
आहा कम्मुद्देसिभ मीसज्जा वायरा य पाहुडिआ। पूइअ अज्झोयरगो उग्गमकोडी अ छन्भेआ॥१॥ अधाकर्मी उद्देशीक मिथ, अने बादर भाभृतिक पूति अने अध्व पूरक, उमद्कोटी आ छ भेदो ते, अविशुद्धि कोटि छे. - (आ दशकालिक मूत्रनी पांचमा अध्ययननी नियुक्तिनी गाथा छे. तेमां मूचव्यु के, जे कार्यमां जीवोने साक्षात हणे; ते
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