Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 152
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥७५७॥ आचा०18 पीडाएलो देखतो नथी, सांभळतो नथी, मुंघतो नथी, विगेरे जाणवं. तेमां आहार विना केवळी पण शरीर ग्लान भाव पामे छे. तो ते सिवायना बीजा जे स्वभावधीज भंगुर शरीरवाळा छे तेन कहेवू ? ॥७५७॥15 प्र-केवळी विनाना साधुओ अकृतार्थ छे, अने क्षुधा वेदनीयनो सद्भाव छे. तेथी तेओ आहार करे छे अने दया विगेरे महावतो पाळे छे ए मानवु ठीक छे पण, केवळी तो नियमथी मोक्षमा जनार छे. त्यारे शा माटे शरीरने धारे छे ? अने ते धारण | करवा शुं काम खाय छे ? उ-तेने पण, चार अघाति कर्मनो सद्भाव छे. तेथी एकांतथी कृतार्थता नथी, अने तेनी खातर शरीर धारे छे ! अने आहा हार विना तेनुं धारण न थाय; तथा तेमने क्षुधावेदनीय कर्मनो सद्भाव छे माटे खाय छे. ते कहे छे:-वेदनीयना सद्भावथी तेना करेला ११ परिसहो पण, केवळी ने ओछा के वधा परिषहो उदयमां आवे छे तेथी केवळी पण खाय के.ए सिद्ध थयुं अने तेथीज आहार विना इन्द्रियोनी ग्लानता छे एम बताव्यु.आ प्रमाणे तत्त्वने जाणनारो परिसहथी पीडातो होय,छतां पण शुं करे ते कहे छे: ओए दयं दयइ, जे संनिहाणसत्थस्स खेयन्ने से भिक्खू कालन्ने बलन्ने मायन्ने खणन्ने विणयन्ने समयन्ने परिग्गहं अममायमाणे कालेणुट्टाइ अपडिन्ने दुहओ छित्ता नियाई (सू० २०९) ___ ओज-ते एकलो रागद्वेष रहित बनीने भूख तरसनो परिषह आवे छते पण, दया (कृपा) पाळे (धारण करे) पण परिपहथी। पीडाता दया छोडी न दे. प्र०-क्यो पुरुष दयाने पाळे छे ? उ०-जे लघुकर्मा होय ते. जेनावडे सम्यक् रीते नारकी विगेरे SAXSS4A For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186