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सूत्रम् ॥७५७॥
आचा०18
पीडाएलो देखतो नथी, सांभळतो नथी, मुंघतो नथी, विगेरे जाणवं. तेमां आहार विना केवळी पण शरीर ग्लान भाव पामे छे.
तो ते सिवायना बीजा जे स्वभावधीज भंगुर शरीरवाळा छे तेन कहेवू ? ॥७५७॥15 प्र-केवळी विनाना साधुओ अकृतार्थ छे, अने क्षुधा वेदनीयनो सद्भाव छे. तेथी तेओ आहार करे छे अने दया विगेरे
महावतो पाळे छे ए मानवु ठीक छे पण, केवळी तो नियमथी मोक्षमा जनार छे. त्यारे शा माटे शरीरने धारे छे ? अने ते धारण | करवा शुं काम खाय छे ?
उ-तेने पण, चार अघाति कर्मनो सद्भाव छे. तेथी एकांतथी कृतार्थता नथी, अने तेनी खातर शरीर धारे छे ! अने आहा हार विना तेनुं धारण न थाय; तथा तेमने क्षुधावेदनीय कर्मनो सद्भाव छे माटे खाय छे. ते कहे छे:-वेदनीयना सद्भावथी तेना करेला ११ परिसहो पण, केवळी ने ओछा के वधा परिषहो उदयमां आवे छे तेथी केवळी पण खाय के.ए सिद्ध थयुं अने तेथीज आहार विना इन्द्रियोनी ग्लानता छे एम बताव्यु.आ प्रमाणे तत्त्वने जाणनारो परिसहथी पीडातो होय,छतां पण शुं करे ते कहे छे:
ओए दयं दयइ, जे संनिहाणसत्थस्स खेयन्ने से भिक्खू कालन्ने बलन्ने मायन्ने खणन्ने
विणयन्ने समयन्ने परिग्गहं अममायमाणे कालेणुट्टाइ अपडिन्ने दुहओ छित्ता नियाई (सू० २०९) ___ ओज-ते एकलो रागद्वेष रहित बनीने भूख तरसनो परिषह आवे छते पण, दया (कृपा) पाळे (धारण करे) पण परिपहथी। पीडाता दया छोडी न दे. प्र०-क्यो पुरुष दयाने पाळे छे ? उ०-जे लघुकर्मा होय ते. जेनावडे सम्यक् रीते नारकी विगेरे
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