Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 149
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥७५४॥ www.kobatirth.org आहार, वस्त्र पात्र विगेरे चार प्रकारनुं द्रव्य आपे, तथा ते आपवा माटे निमंत्रणा करे, अथवा पेशल वैयावच्च करे अर्थात् अंगमर्दन (चोळ चांप) विगेरे पण करे, पण एथी विरुद्ध आचारवाळा जे गृहस्थों कुतीर्थिओ पासत्थाओ असंविग्र असमनोज्ञ साधुओ होय, तेमने आपे नहि, परंतु समनोज्ञनेज पोते आपे, तथा अतिशे आदर सत्कार करीने तथा ते वस्तु माटे सीदातो होय, अथवा तपेलो होय, तो तेनी योग्य रीते वैयावच्च करे, आथी एम बताव्युं, के गृहस्थ तथा कुशीलीया साधुनी वैयावच्च न करवी, आहार | विगेरे न आपवा. पण आटलं विशेष छे, के गृहस्थ पासे जे कल्पनीय छे ते लेवुं अने अकल्पनीयनोज निषेध छे, पण असमनोज्ञ साधु पाथी तो सर्वथा लेवानो निषेध कर्यो. आमदाणे सुधर्मास्वामी कहे छे. विमोक्ष अध्ययनमां बीजो उद्देशो समाप्त थयो. -ale श्री जो उद्देशो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीजो का पछी भोजो उद्देशो कहे छे. तेनो आ प्रमाणे संबंध छे. गया उद्देशामां अकल्पनीय आहार विगेरेनो निषेध कह्यो. तथा तेना निषेधथी अपमान मानीने कोइ कोप करीने मारवा तैयार थाय, तेने दान केवी रीते देवु ते यथावस्थित दान विधिन प्ररूपणा साधुए करवी, तेम आ उद्देशामां पण आहार विगेरे निमित्त माटे घरमा पेठेला साधुनुं अंग ठंड विगेरेथी कंपतुं देखीने गृहस्थने उलदुं समजाय के आ साधु काम चेष्टादिना कारणे धूजे छे, तेवा गृहस्थने यथावस्थित स्वरूप बतावीने गीतार्थ साधुए तेनी खोटी शंका दूर करवी. आ प्रमाणे आवा संबंधे आवेला उद्देशानुं सूत्रानुगममां सूत्र उच्चारखं जोइए ते कहे छे. मज्झिमेणां वयसावि एगे संबुज्झमाणा समुट्ठिया, सुच्चा मेहावी वयणं पंडियाणं निसामिया For Private and Personal Use Only सूत्रम ।।७५४।।

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