Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 138
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा गाममां पण थाय अने अरण्यमां पण थाय पण धर्मनु निमित्त के धर्मनो आधार गाम के अरण्य नथी, जेथी भगवाने रहेवासने सूत्रम् आश्रयी के बीजी रीतनो आश्रय लइने धर्म बताव्यो नथी, तेमनुं कहे, ए छे के प्रथम जीवादि तत्वन ज्ञान मेळवयु अने सम्यग ॥७४३॥ अनुष्ठान करवां के सर्व जीवोने अभयदान मळे ते धर्म छे. ते धर्मने तमे बरोबर जाणो एवं भगवान महावीरे का छे. प्र०-भग-16॥७४३॥ 18/ वान केवा छे ? उ०-मनन ते बधा पदार्थोनुं परिज्ञान छे तेज मति छे अने ते मतिवाळा (केवळज्ञानी) भगवाने कहुं छे. ०-केवो धर्म कह्यो छे ? उ.-याम ते महावतो छ तेमां त्रण बताव्या छे. जीव हिंसा जुठ अने परिग्रह ते त्रणेनो त्याग ते याम छे. ते परिग्रहमां अदत्तादान अने मैथुन समाच्या छे माटे पांचने बदले त्रण संख्या कही छे. अथवा याम ते नय (उमर) | नी अवस्था छे. जेमके आठ वरसथी त्रोस अने त्यारथी साठ सुधी बीजी अने त्यारपछी त्रीजी एमां दिक्षा लेवाने अयोग्य एवा तद्दन नाना आठ वरसनी अंदरना अने छेकज बुढानो समावेश न कर्यो. (जुदा काठ्या) अथवा जेनावडे संप्तार भ्रमण विगेरे दूर थाय ते याम ते ज्ञानदर्शन चारित्र छे. एम यामनी त्रण प्रकारे त्रणनी संख्यानो अर्थ को. (एटले महावत पाळवां त्रण अवस्थामां 12 धर्म करवो. अने रत्नत्रय ज्ञान विगेरे प्राप्त करवां) हा जो आ प्रमाणे छे तो शुं करवं. ते त्रण अवस्थामां अथवा ज्ञान विगेरेमा आर्य देशमा उत्पन्न ययेला अथवा पाप धर्मो दूर करनारा बोध पामेला चारित्र पाळवा तैयार थयेला साधुओ छे. तेओ केवा छे.? ते बतावे छे. जेओ क्रोध विगेरे दूर करीने शांत थयेला छे अने पाप कर्ममा जेो वासना राखता नथी तेज उत्तम साधुओ (मोक्षना अधिकारीओ) छे. प्र०-तेो कइ जग्याए पाप कर्ममा वासना रहित छे.? ते बतावे छे.! CASSAGE ACCORE. For Private and Personal Use Only

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