Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 126
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie आचा सूत्रम् ॥७३१॥ ७३१॥ 2SSARAS वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंच्छणं वा नो पादेजा नों निमंतिजा नो कुजा वेयावडियं पर आढायमाणे तिबेमि (सू० १९७) मुधर्मास्वामि कहे छे. जे-में भगवान पासे सांभळ्यु; ते कई छ, अने हवे कहेवातुं पण भगवाननु वचन छे. एटले समनोज्ञ, & अथवा अमनोज्ञ होय; एटले, दृष्टि (सम्यग्दर्शन,) तथा लिंगथी समनोज्ञ एटले उत्तम श्रद्धावाळो होय; पण, भोजन विगेरेमा त्यागी न होय, अने अमनोज्ञ ते चौद्ध मत विगेरेना साधुने चार प्रकारना आहार विगेरेनी निमंत्रणा न करे; ते कहे छे. अशन [भोजन ते, भात विगेरेनुं छे, अने पाणी ते, द्राख विगेरेनुं छे, अने थोडा टेका रुप नाळीयेर (कोपरु) विगेरे छे, अने स्वाद माटे कपुर, लवंग, विगेरे छे. तेज प्रमाणे वस्त्र, पात्र, कंबल, रजोहरण, आ वां पोताना उपकरण कुसाधुने वापरवा न आपे. तेज प्रमाणे 8 तेमनी वैयावच्य न करे; अने घणां आदरवाळो बनीने तेमने तेवी वस्तुन आमंत्रण न करे। तेम थोडी घणी बयावच्य पण न करे. हवे, पछीनुं पण हुं कहुं छु.. धुवं चेयं जाणिज्जा असणं वा जाव पायपुछणं वा लभिया नो लभिया भुंजिया नो भुंजिया पंथं विउत्ता विउक्कम्म विभत्तं धम्म जोसेमाणे समेमाणे चलेमाणे पाइजा वा निमंतिज वा कुज्जा वेयावडियं परं अणाढायमाणे तिबेमि (सू० १९८) ते बौद्ध विगेरे मतना कुशीळवाळा साधुओ अशन विगेरे बतावीने एबुं बोले के,आ निश्चय जाणो के, अमारा मठमां रोज तमे | RECORGES For Private and Personal Use Only

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