Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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स
मालाबने, अने तेनुं कारण तेमा कपायो कांतो शांत होय हे, कांतो क्षय होय छे, तेवी पोते परिनिवृत शीतीभूत (ठंडा स्वभावनो) छे, पण &
। तवा गुणवाळो न होय, ते मिथ्याटि जीव पेशल धर्मने पामतो नथी, ते बताने. (इति अव्यय हेतुना अर्थमां छे) जेथी मिथ्या | ॥७१५:म दृष्टिर्नु विपरीत दर्शन होवाथी संग (मेम) वाळो मोक्षमा न जाय, तेथी तेना माता पिता पुत्र स्त्री संबंधी अथवा धन धान्य विगेरथी
॥७१५॥ थता संग विपाक ने तमे जुभो ! विवेकथी हृदयमा विचारो! मूत्रथीज संग कहे छे, ते संगवाळा नरो वाद्य अभ्यंतर ग्रन्थथी गुंथायेला गृद्ध थयेला ग्रन्थना संगमां इच्छित न यतां खेद पामता छता संग्रह निमग्न इच्छा मदन कामयी आकांत (अवष्टब्ध, खुचेला) बनेला मोक्षमा जता नथी.
प्र-जो एम छे तो शुं करवु ? उ०-जे कामथी आसक्त (प्रेमी) चित्त थइने सगां तथ धन धान्य विगेरेमा मूळ पामेला काम संबंधी शरीर मन विगेरेनां दाखोथी पीडायेला ठे, नाथी हे शिष्य ! लखा देखाता संग दर करवा रुप संयमथी त्रास नही पामीश, संयम अनुष्ठानथी कंटाळतो नहि, कारणके संयमना दु:ख करतां प्रभूत (अतिशे) दुःख भोगवनारा संसार संगी जीवो छे.
प्र०-क्या साधुने संयमथी न डरवानो संभव छ ? उ०-जे महामुनिए सारी रीते संसार मोक्षनां पूर्वे कहेलां कारणो जाण्यां छे, तेने आ संग रुप आरंभो अविगान (एक सरखा) पणे बधा माणसे आचरेल छे, अने ते प्रत्यक्ष होवाथी इदम् [आ) शब्दवडे P बताच्या छे, ते आरंभो सर्वे प्रकारे जाणीता छे.
-ते आरंभो केवा छे ? उ०-जेमां ग्रन्थना गुंथायेला विषण्ण चित्तवाला काम [इच्छा] ओना भारथी फसायेला मागिसो हिंसक बनेला अज्ञान मोहना उदयथी पाप करतां त्रास पामता नथी, पण जे उपर बतावेला आरंभोने ज्ञ परिज्ञावडे जाणीने
।
उपवस्वस्तछ
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