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RECERCOISSECRE
www.kcbatirth.org प्रत्याक्यानपरिज्ञावडे त्यागे हे, नेणेज आरंभो सारीरीते जाणेला समजवा. आचा०ला प०-जे आरंभोनो परिज्ञाता छे, ते बीजुं शुं करे ? ते कहे छे.
सुत्रम ते महा मुनी पूर्वे बतावेला उत्तम गुणवाळो छे, ते क्रोध मान माया लोभने त्यागीने मोहनीय कर्म तोडे; ('त्यागीने' ए अ॥७१६।। व्यय प्रथम लेवानुं कारण ए छे के ते क्रोध विगेरे चारे कमायो बधा भेद सहित त्यागवाना छे. अने क्रोधने प्रथम लेवानुं कारण
सा॥७१६॥ ल| तेना संबन्ध मान साथे छे. एटले मानीने क्रोध थाय छे. तथा लोभने माटे माया थाय, माटे प्रथम माया लीधी छे. अने बधा
दोषांना आश्रय तथा सौथी मोटो अने छेवट सुधी रहेता होवाथी लोभने छेलो लीधी छे.
____ अथवा क्षपणा ते कर्मनी निर्जरामां ते प्रमाणे क्रम छे. 'चकार' निश्चयथी जुदी जुदी अपेक्षा माटे समुच्य अर्थमां छे) तेथी। नए प्रमाणे क्रोध विगेरे मोहने त्यागनारो संसार संतति (भवभ्रमण) थी तुट्ट (छुटेलो) तीर्थकर विगेरेए वर्णव्यो छे. एबुं सुधर्मास्वामि कहे छे. अथवा हवे पछीनुं पण तेओ कहे छे, ते बतावे छे.
कायस्स वियाघाए एस संगामसीसे वियाहिए सेहु पारंगमे मुणी, अविहम्माणे फलगावयही कालोवणीए कंखिज कालं जाव सरोरभेउत्तिबेमि धूताध्ययनम् (सू० १९६) ६-५॥
औदारिक विगेरे त्रण शरीर अथवा चार घाति कर्मनो नाश करवा माटे ते मुनी संग्रामना मथाळे उभेलो वर्णव्यो छे. अथवा ५ चि धातुनो अर्थ एकटुं करवानो के ते एकटु थाय छे. ते कायने आयुष्यना क्षय सुधी घात करनारो बने, [कायानो ममत्व मूकील
वरना
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