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आचा०
॥६९६॥
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छे. आ तेमनी बीजी मूर्खता छे. अथवा, जे शीळवन्तो छे ते उपशांत छे. एवं बीजाए कहे छते, ते कुसाधु बोले के “ ए घणो उपकार करनारा आचार्य विगेरेमां तमारा कहेवा मुजब क्यां शील अने उपशांतता छे ?” आ प्रमाणे बोलता दुराचारी साधुनी बीजी मूर्खता थाय छे. पण, बीजा केटलाक साधुआं वीर्योतराय कर्मना उदयथी जो के पोते पुरुं चारित्र न पाळता होय; छतां पण बजा उत्तम साधुओनी प्रशंसा करता रहने पोते पण बीजाने सारा आचार बतावे छे. ते कहे छे:नियमाणा वेगे आयारगोयर माइक्खंति, नाणभट्टा दसणलूसिणो ( सू० १९० )
अशुभ कर्मना उदयथी सयमथी दूर थाय, अथवा लिंग मुकी दे, अर्थात् केटलाक साधुओ मोहना उदयथी चारित्र न पाळी शके, त्यारे को साधुनो वेष मुकी दे, अथवा वेष राखे तो पण पोते साधुनो जेवो आचार होय, तेवो लोकोने बतावे छे. अने पोतानी निंदा करता कहे छे, के तेवो उत्तम आचार पाळवाने अमे समर्थ नथी, आ कारणथी चारित्र न पाळयुं, तेज तेमनी मूर्खता छे. पण वचन साधुं बोलवाथी बीजी मूर्खता थती नथी, तेओ एवं खोडं नथी बोलता, " के अमे जे करीए छीए तेवोज अमागे आचार छे. " ( पोतानी भूल कबुल करे छे.) वळी आम न बोले के ' हवे आ दुःखम काळना अनुभावधी वळ विगेरे ओ | श्रवाथी मध्यम वर्तन एज कल्याणं कारण छे. हमणा उत्सर्गनो अवसर नथी ( आबुं खोदुं न बोले ) कछु छे के:" नात्यायतं न शिथिलं यथा युञ्जीत सारथिः । तथा भद्रं वहन्त्यश्वा, योगः सर्वत्र पूजितः ||१|| "
न जोरथी, न धीरे, एम सारो डाकनार घोडा विगेरेने हाके ते हाकनारो डाह्यो गणाय, तथा घोडा पण ते प्रमाणे मध्यम चाळे तो ते योग बधे माननीय थाय छे. बळीः
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सूत्रम ||६९६॥