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आवा० ॥७११॥
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धरो पांच महाव्रतनो धर्म बतावे (जेम केशी गणधरना शिष्योने गौतमस्वामिना शिष्योनो मेळाप थयो, अने बन्नेमा शंका थतां बन्ना गुरुओ भेगा थतां गौतमस्वामिए केशीगणधरने पंच महाव्रतनो धर्म समजाव्यो. अने तेमणे स्वीकार्यो.)
अथवा पोताना शिष्यो जेओ विनयथी सांभळवा उभा थया होय तेमने नवं तत्व जाणवा माटे धर्म संभळावे, अथवा दीक्षा न लीघेला श्रावक विगेरे जेओ धर्म सांभळवानी इच्छावाळा बनी गुरु विगेरेनी सेवा (वैयावच्य ) करता होय; तेमने संसारथी पार उतारवा गुरु धर्म कहे छे. मः - केवो धर्म कहे ? उः शमन [शांति अहिंसा] तेवा जीव दयाना धर्मने कहे; तथा जीव रक्षा करवा विरति समजावे. आ विरतिना सूचनथी जुठ विगेरेनी विरति जाणवी. एटले, पांचे महात्रत समजावे; तथा उपशम क्रोधना जयनुं स्वरूप बतावे; तेथी उत्तर गुणोनो पण उपदेश करे एम जाणवु तथा निर्वृत्ति (निर्माण) मोक्षनुं स्वरुप बतावे. के, मूळ गुण अने उत्तर गुण बरोबर पाळवाथी आ लोकमां बहु मान, अपूर्व शांति, अने पर भवमां स्वर्गनुं सुख, अने छेवटे मोक्ष मळे छे..
तथा शोच एटले बधी उपाधीथी रहित पवित्र व्रतनुं धारबु, तथा मायानी वक्रता त्यागवाथी आर्जव छे, तथा मान स्तब्धपणुं त्यागवाथी कोमळता छे, तथा बाह्य अभ्यंतर ग्रन्थ त्यागवाथी लाघव छे, ते केवी रीते कहे छे. ते बतावे छे यथावस्थित वस्तु जेवी रीते आगममां कही होय तेवी रीते ओलंघ्या विना कहे छे. प्रः- कोने कहे छे ? उ:-दश प्रकारना प्राणने धारनारा प्राणीओ ते सामान्यथी संज्ञी पंचेन्द्रियोने कहे छे. तथा मुक्ति गमन योग्य जे भव्यपणे भूत [ रहेला] छे, तेमने कहे छे. तथा संयम जीवितवडे जीवे छे. अने जीववानी इच्छावाळा जीवो छे. तथा तिर्यच नर, अमर, जेओ संसारमां दुःख पामता रहेला छे. अने दयाने पात्र छे, तेवा बधा सत्वोने धर्म कहे छे. अथवा प्राणी भूत जीव सत्व ए चारे एक अर्थवाळा छे. तेवा जीवोने तेमनी योग्यता प्रमाणे
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सूत्रम्
॥७११।