Book Title: Aagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1832
________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [७८९ -७९२] दीप अनुक्रम [९४४ -९४८..] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्ति:) शतक [२५], वर्ग [-] अंतर् शतक [-] उद्देशक [७], मूलं [७८९-७९२ ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः हीनाधिकत्वे च षट्स्थानपतितत्वं स्यादत एवाह-'छट्टाणवडिए'त्ति ॥ उपयोगद्वारे- सामायिक संयतादीनां पुलाकवदुपयोगद्वयं भवति, सूक्ष्मसम्पराय संयतस्य तु विशेषोपदर्शनार्थमाह-'नवरं सुहमसंपराइए' इत्यादि, सूक्ष्मसम्परायः साकारोपयुक्तस्तथास्वभावत्वादिति । लेश्याद्वारे यथाख्यातसंयतः स्नातकसमान उक्तः, स्नातकश्च सलेश्यो वा स्थादलेश्यो वा, यदि सलेश्यस्तदा परमशुक्ललेश्यः स्यादित्येवमुक्तः, यथाख्यात संयतस्य तु निर्ग्रन्थत्वापेक्षया निर्विशेषेणापि शुकुलेश्या स्यादतोऽस्य विशेषस्याभिधानार्थमाह-'नवरं जई'त्यादि । परिणामद्वारे सामाइयसंजए णं भंते! किं वमाणपरिणामे होजा हीयमाणपरिणामे अवट्ठियपरिणामे १, गोषमा ! वहुमाणपरिणामे जहा पुलाए, एवं जाब परिहारविसुद्धिए, सुमसंपराय पुच्छा, गोयमा ! बहुमाणपरिणामे वा होज्जा हीयमाणपरिणामे वा होजा नो अवद्वियपरिणामे होला, अक्वाए जहा नियंठे । सामाइयसंजए णं भंते! केवतियं कालं बहुमाणपरिणामे होज्जा ?, गोयमा ! जह० एवं समयं जहा पुलाए, एवं जाय परिहारविमुद्धिचि, मुहमपरागसंजय णं भंते! केवतियं कालं वहुमाणपरिणामे होजा !, गोयमा ! जहनेणं एक समयं उक्कोसेणं अंतोमुद्दत्तं केवतियं कालं हीयमाणपरिणामे एवं चैव, अहक्खायसंजए णं भंते! केवतिय कालं चमाणपरिणामे होजा १, गोयमा ! जहनेणं अंतोमुद्दत्तं उफोसेणचि अंतोमुहुत्तं, केबतियं काल अबद्विय परिणामे होला ?, गोयमा ! जत्रेणं एवं समयं उकोसेणं देणा पुछकोडी २० ॥ (सूत्रं ७९३ ) 'सुमपराये' इत्यादौ, 'वहुमाणपरिणामे वा होजा हीयमाणपरिणामे वा होज्या नो अवद्वियपरिणामे होज 'ति Education Internation For Park Lise Only संयत, तस्य स्वरुपम्, सामायिकसंयत आदि पञ्च भेदाः, संयतस्य विविध वक्तव्यता ~ 1831~

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