Book Title: Aagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०५)
“भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्ति:)
शतक [३४], वर्ग [-], अंतर् शतक [१], उद्देशक [१], मूलं [ ८५० ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
आयताएं सेढीए उववजमाणे एगसमइएणं विग्गणं उववज्जेज्जा, एगओवंकाए सेडीए उववज्रमाणे दुसमहूएणं विग्गहेणं उबवज्जेजा, दुहओवंकाए सेडीए उववज्रमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उबवजेज्जा, से तेणद्वेणं गोयमा! जाव उववज्जेज्जा । अपनत्तमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिले चरिमंते समोहए समो २ जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पञ्चच्छिमिले चरिमंते पज्जन्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते! कसमइएणं विग्गणं उबवज्जेज्जा ?, गोपमा ! एगसमइएण वा सेसं तं चैव जाब से तेणद्वेणं जाव विग्गहेणं उबवज्जेज्जा, एवं अपजत्तसुमपुढविकाइओ पुरच्छिमिले चरिमंते समोह| हणावेत्ता पचच्छिमिले चरिमंते बादरपुढविकाइएस अपजन्तएस उववाएयबो, ताहे तेसु चैव पज्जन्तएस ४, एवं आडकाइएस चत्तारि आलावगा मुहमेहिं अपजत्तएहिं ताहे पजन्तएहिं वायरेहिं अपजस हिं ताहे पत्तएहिं उबवायवो ४, एवं चैव सुहमते काहिवि अपजत्तएहिं १ ताहे पञ्जन्त्तएहिं उबवाएयबो २, अपज्जन्तसुहमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिले चरिमंते समोहए समोहइत्ता जे भविए मणुस्सखेत्ते अपज्जन्तवादले काइयत्ताए उववचित्तए से णं भंते । कइसमहणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ?, सेसं तं चैव, एवं पज्जत्तवायर उक्काइयस्साए उबवाएयवो ४, बाउक्काइए सुहुमवायरेसु जहा आउकाइएस उबचाओ तहा उवबायको ४, एवं वणरसइकाइएसुवि २०, पत्तसुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रथणप्पभाए पुढबीए एवं पजत्तसुहमपुढविकाइ ओवि पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहणावेसा एएणं चैव कमेणं एएस चैव वीससु
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