Book Title: Aagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 1946
________________ आगम (०५) "भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [३६], वर्ग [-], अंतर्-शतक [१-१२], उद्देशक [१-११], मूलं [८६०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: न उवव० सम्मदिही वा मिच्छविट्ठी वा नो सम्मामिच्छादिट्ठी नाणी वा अन्नाणी वा नो मणयोगी वय योगी वा कायजोगी वा, ते णं भंते! कडजुम्मश्दिया कालओ केव०१, गोयमा! जहन्नेणं एक समय टाउकोसेणं संखेनं कालं ठिती जहन्नेणं एक समयं उकोसेणं बारस संबच्छराई, आहारो नियम छडिसितिन्नि। समुग्धाया सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो, एवं सोलससुवि जुम्मेसु । सेवं भंते ! २त्ति ॥ दियमहाजुम्मसए| | पढमो उद्देसओ सम्मतो ॥ ३६॥१॥ पढमसमयकडम्मर दिया णं भंते! कओ उवय.?, एवं जहा एगि-18 | दियमहाजुम्माणं पढमसमयउद्देसए दस नाणत्ताई ताई चेव दस इहवि, एक्कारसम इमं नाण-त्रो मणयोगीWनो वइयोगी काययोगी सेसं जहा दियाणं चेव पदमुद्देसए । सेवं भंते ! २त्ति ॥ एवं एएवि जहा एगिदि-|| | यमहाजुम्मेसु एकारस उद्देसगा तहेव भाणियबा नवरं चउत्थछटुंअट्टमदसमेसु सम्मत्तनाणाणि न भवंति. 31 जहेब एगिदिएसु पढमो तइओ पंचमो य एकगमा सेसा अट्ट एकगमा । पढम बेइंदियमहाजुम्मसयं सम्मत *॥१॥ कण्हलेस्सकडजुम्मश्वेइंदिया णं भंते! कओ उववति', एवं चेव कण्हलेस्सेसुधि एकारसउद्दे| सगसंजुत्तं सयं, नवरं लेस्सा संचिट्टणा ठिती जहा एगिदियकण्हलेस्साणं ॥ बितियं दियसयं सम्मत्तं ॥२॥ एवं नीललेस्सेहिदि सयं । ततियं सयं सम्मत्तं ॥३॥ एवं काउलेस्सेहिवि, सय ४ सम्मत्तं ॥ भवसिद्धियकड*जुम्मरपेइंदिया णं भंते!, एवं भवसिद्धियसपावि चत्तारि तेणेव पुर्वगमएणं नेयवा नवरं सवे पाणा० णो तिणहे समढे, सेसं तहेव ओहियसयाणि चत्तारि। सेवं भंते सेवं भंते!त्ति ॥ छत्तीसमसए अहम सवं सम्मत्तं ~ 1945~

Loading...

Page Navigation
1 ... 1944 1945 1946 1947 1948 1949 1950 1951 1952 1953 1954 1955 1956 1957 1958 1959 1960 1961 1962 1963 1964 1965 1966 1967