Book Title: Aagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1921
________________ आगम (०५) व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥ ९५८ ॥ “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः) शतक [३४], वर्ग [-], अंतर् शतक [१], उद्देशक [१], मूलं [८५१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः जित्तए से णं भंते! कसमहरणं विग्गणं उबवजंति ?, गोयमा ! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमहण वा विग्गहेणं उबवजंति, से केणट्टेणं भंते! एवं बुञ्चइ एगसमइएण वा जाव उचवजिज्जा ?, एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेटीओ प०, तंजहा-उज्जुभयता जाव अद्धचक्कवाला, उज्जुआययाए सेडीए उबवजमाणे एगसमहएणं विग्गणं उववज्जेज्जा एगओवंकाए सेटीए उबवजमाणे दुसमइएणं विग्गणं | उबवलेजा दुहओवंकाए सेडीए उववज्रमाणे जे भविए एगपयरंसि अणुसेदी उववल्लित्तए से णं तिसमइएणं विग्गणं उबवलेला जे भविए विसेदिं उबवजित्तए से णं च समइपुणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, से तेणद्वेणं जाव उववज्जेज्जा, एवं अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइओ लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहर २ लोगस्स पुरच्छिमिले चेष चरिमंते अपजत्तएस पात्तएसु य सुहुमपुढविकाइएस सुहुमभउकाइएस अपजन्तएसु पज्जतरसु सुहमतेडक्काइएस अपजत्तएस पलत्तएस य सुमवाउकाइएस अपलत्तए पत्तए वायरवाउकाइएस अपजतएस पात्तपसु सुहुमवणस्सइकाइएस अपजत्तएस पजत्तएस य बारससुवि ठाणेसु एएणं वेव कमेणं भाणियचो, सुहुमपुढ विकाइओ अपज्जत्तओ एवं चैव निरवसेसो बारससुवि ठाणेसु उबवायचो २४, एवं एएणं गमपूर्ण जाव सहमवणस्सइकाइओ पत्तओ सुमवणस्सइकाइए पत्तरसु चैव भाणियो | अपलत्तसुमपुढविकाइए णं भंते! लोगस्स पुरच्छिमिले चरिमंते समो० २ जे भविए लोगस्स | दाहिणिले चरिमंते अपजत्तसुमपुढविकाइएस उववज्जित्तए से णं भंते!, कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ?, Education International For Pernal Use On ~ 1920 ~ ३४ शतके उद्दे. १ अधः पृथ्व्यादी नामूर्ध्वा दादुत्पादः सू. ८५१ ।। ९५८ ।।

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