Book Title: Aagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1929
________________ आगम (०५) “भगवती”- अंगसूत्र-५ ( मूलं + वृत्ति:) शतक [३४], वर्ग [-], अंतर् शतक [१,२-१२], उद्देशक [२-११], मूलं [८५२-८५४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः व्याख्या गडीओ पन्नत्ताओ एवं जहा एर्गिदियसएस अनंतरोबवन्नगउद्देसए तहेव पन्नत्ताओ तहेव बंघंति तहेव प्रज्ञप्तिः वेदेति जाव अनंतशेववन्नगा वायरवणस्सइकाइया । अणंतरोववन्नगएगिंदिया णं भंते! कओ उववजंति ? अभयदेवी- ४ जहेव ओहिए उद्देसओ भणिओ तहेब । अनंतशेववन्नगएगिंदियाणं भंते! कति समुग्धाया पन्नत्ता ?, गोपया वृत्तिः २ मा! दोन्नि समुग्धाया प० सं० - वेदणासमुग्धा य कसायसमुग्धा य । अनंतशेववन्नगएगिंदियाणं ॥ ९६२ ॥ भंते । किं तुल्लद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति ? पुच्छा तहेव, गोयमा ! अत्थेगइया तुलहितीया तुल विसेसाहियं कम्मं पकरेंति अत्येगइया तुल्लहितीया बेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, से केणद्वेणं जाव वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति ?, गोयमा ! अणंतरोववन्नगा एगिंदिया दुविहा प० सं०-अत्थेगइया समाज्या समोववन्नगा अत्येगइया समाज्या विसमोववन्नगा तत्थ णं जे ते समाज्या समोववन्नगा ते णं तुछद्वितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति तत्थ णं जे ते समाज्या विसमोववन्नगा ते णं तुल्लद्वितीया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, से तेणद्वेणं जाव वैमायविसेसाहियं० पकरेंति । सेवं भंते! २ति ॥ (सूत्रं ८५२ ) ॥ ३४२ ॥ कइविहा णं भंते । परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नता ?, गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिंदिया प०, तं०पुढविकाइया भेदो चक्कओ जाव वणस्सइकाइयन्ति । परंपरोवचन्नग अपज्जत्तसुमपुढविकाइए णं भंते ! | इमीसे रयणप्पभाए पुढबीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए २ जे भविए हमीसे रयणप्पभाए पुढबीए जाव पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपज्ज समुहुमपुढविकाइयत्ताए उबव० एवं एएवं अभिलावेणं जहेब पढमो उद्देसओ Education International For Parts Only ~ 1928~ ३४ शतके एकेन्द्रिय| शतानि १२ उद्दे०११सू ८५२०८५४ ॥ ९६२ ॥

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