Book Title: Aagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 1901
________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [३१], वर्ग -], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१-२८], मूलं [८२९-८४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [८२९-८४१] व्याख्या प्रज्ञप्ति अभयदेवीया वृत्तिः२ ॥९४८॥ शा रायगिहे जाव एवं वयासी-कति णं भंते! खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता?, गोयमा! चत्तारि खुड्डा जुम्मा प० त०- ३१ शतके कडजुम्मे १ तेयोए २ दावरजुम्मे ३ कलिओए४, से केण?णं भंते । एवं बुच्चइ चत्तारि खुड्डा जुम्मा०प० उद्दे.१-२८ तं-कडजुम्मे जाव कलियोगे?, गोयमा! जे णं रासी चक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए से क्षुल्लकयु ग्मादीनाखुड्डागकडजुम्मे, जेणरासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए सेत्तं खुड्डागतेयोगे,जे णं रासी चउ IN मुत्पादः सू करणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए सेत्तं खुड्डागदावरजुम्मे, जेणं रासी चउकएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए से खुडागकलियोगें, से तेणद्वेणं जाव कलियोगे।खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उवव ज्नंति? किं नेरइएहिंतो उववज्जति ? तिरिक्ख० पुच्छा, गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववनंति एवं नेरइयाणं उबवाओ टू जहा चकतीए तहा भाणियचो । ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति ?, गोयमा! चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा सोलस वा संखेजा वा असंखेजा वा उववजंति । ते णं भंते! जीवा कहं उववज्जति ?, गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे अजझवसाण एवं जहा पंचविसतिमे सए अहमुद्देसए नेरइयाणं वत्तबया तहेव इहवि भाणियबा जाव आयप्पओगेणं उववज्जति नो परप्पयोगेणं उववजंति । रयणप्पभापुढवि- खुडागकडजुम्मनेरहया भंते! कओ उधवजंति?, एवं जहा ओहियनेरइयाणं बत्तबया सचेच रपणप्प ॥९४८॥ भाएवि भाणियबा जाय नो परप्पयोगेणं उववज्जति, एवं सकरप्पभाएवि जाव अहेसत्तमाए, एवं उववाओ || जहा वतीए, अस्सन्नी खलु पदम दोचं व सरीसवा तइय पक्खी। गाहाए जववाएयवा, सेसं तहेव । र दीप अनुक्रम [१००३-१०१५] | अत्र एकत्रिंशत्तमे शतके १-२८ उद्देशका: आरब्धा: ~ 1900 ~

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