Book Title: Aagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 1874
________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [८१५] दीप अनुक्रम [९८१] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्ति:) शतक [२६], वर्ग [-], अंतर् शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [८१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः बितिया भंगा। सलेस्से णं भंते ! अणंतरोवबन्नए नेरइए पार्व कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा ! पढमवितिया भंगा, एवं खलु सवत्थ पदमवितिया भंगा, नवरं सम्मामिच्छत्तं मणजोगो वइजोगो य न पुच्छार, एवं जाव थणियकुमाराणं, बेइंदियतेइंदिय चउरिंदियाणं वयजोगो न भन्नइ, पंचिदियतिरिक्खजोणियाणंपि | सम्मामिच्छतं ओहिनाणं विभंगनाणं मणजोगो वयजोगो एयाणि पंच पदाणि णभन्नंति । मणुस्साणं अलेस्ससम्मामिच्छत्तमणपल्लवणाणकेवलनाणविभंगनाणनोसन्नोव उत्तअवेद्गअकसायीमणजोगवयजोगअजोगिएयाणि एकारस पंदाणि ण भन्नंति, वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरयाणं तहेब ते तिन्निन भन्नंति सबेसिं, जाणि सेसाणि ठाणाणि सवत्थ पढमवितिया भंगा, एगिंदियाणं सङ्घत्थ पढमवितिया भंगा, जहा पावे एवं नाणावरणिज्जेणवि दंडओ, एवं आउयवजेसु जाव अंतराइए दंडओ ॥ अनंतरोववन्नए णं भंते ! नेरइए आउयं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा ! बंधी न बंध बंधिस्सइ । सलेस्से णं भंते ! अनंतरोववन्नए नेरहए आउयं कम्मं किं बंधी ?, एवं चैव ततिओ भंगो, एवं जाव अणागारोवडत्ते, सवत्थवि ततिओ भंगो, एवं मणुस्सवज्जं जाव वैमाणियाणं, मणुस्साणं सवत्थ ततियचउत्था भंगा, नवरं कण्हपक्खिसु ततिओ भंगो, सबेसि नाणत्ताई ताई चैव । सेवं भंते । २ ति ॥ ( सूत्रं ८१५ ) ॥ बंधिसयस्स पितिओ ।। २६-२ ॥ 'अतरोवचन्नए णमित्यादि, इहाद्यावेव भङ्गौ अनन्तरोपपन्ननारकस्य मोहलक्षण पापकर्म्माबन्धकत्वासम्भवात्, तद्धि Education Internation नारक- आदिनाम् पाप-कर्मन: आदि बन्ध: For Parata Use Only ~ 1873 ~

Loading...

Page Navigation
1 ... 1872 1873 1874 1875 1876 1877 1878 1879 1880 1881 1882 1883 1884 1885 1886 1887 1888 1889 1890 1891 1892 1893 1894 1895 1896 1897 1898 1899 1900 1901 1902 1903 1904 1905 1906 1907 1908 1909 1910 1911 1912 1913 1914 1915 1916 1917 1918 1919 1920 1921 1922 1923 1924 1925 1926 1927 1928 1929 1930 1931 1932 1933 1934 1935 1936 1937 1938 1939 1940 1941 1942 1943 1944 1945 1946 1947 1948 1949 1950 1951 1952 1953 1954 1955 1956 1957 1958 1959 1960 1961 1962 1963 1964 1965 1966 1967