Book Title: Uttam Charitra Kumar Ras
Author(s): Jinharshsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jai DEL Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *^^^^^^^^^^^^^^ उत्तम चरित्र कुमारनो रास. श्रीजिनहर्ष सूरिकृत वस्त्रदान फल महात्म्य रूप. आ माहाप्रतापि पुरुषनो चरित्र सज्जनोंने अवश्य वांचवा योग्य जाणीने श्रावक जीमसिंह माणकें श्री मुंबा नगरी मध्ये निर्णय सागर मुद्रायंत्रमां मुद्रित कराव्यो संवत् १९४२. 2000 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अथ ॥ ॥ वस्त्रदानोपरि श्री उत्तमचारत्रं कुमाररासः प्रारभ्यते ॥ ॥ दोहा॥ ॥ चरम जिणेसर चित्त धरूं,करूं सदा गुणग्राम॥ नाव नाजे नवतणी, लीजंते जस नास ॥१॥ मन वच काया शुरू करी,जो कीजें जिन जाय ॥ उज्ज्व ल थाये आतमा, जाये उःख संताप ॥ ॥ जेहने नामें संपजे, वंडित सुख सुविशाल ॥ कष्ट निवारे करि कृपा, सेवक जन प्रतिपाल ॥३॥ समरूं सर स्वती सामिनी, सुमती तणी दातार ॥ वीणा पुस्तक धारिणी, कवियण जण आधार ॥ ४ ॥ हंसासरा हं सागमणी, त्रिनुवन रूप अनूप ॥ मोह्या इंद नारद सदु, नलहे को सरूप ॥ ५॥ जो माता सुप्रसन्न दुवे, आपे अनुपम झान ॥ झानथकी दर्शन दुवे, दर्शनमोद विमान ॥ ६ ॥ जिन मुख पंकज वा सिनी, समरी शारद माय ॥ कहूँ कथा उत्तम चरि त्र, साननजो चित्त लाय ॥ ७ ॥ नृपसुतें दीधुं नाव ___ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) युं, वस्त्रदान मुनिराय ॥ सुख पाम्या दाम्या थरि, दान तणे सुपसाय ॥ ७॥ सरस कथा संबधबे, सु एजो सदु नर नार ॥ बालस उंघ प्रमाद तजी, ध रजो चित्त मजार ॥ ए॥ ॥ ढाल पहेली॥ चोपानी देशी ॥ ॥णहीज जंबुदीप मजार, दक्षिण भरतक्षेत्र सुविचार ॥ नयरी अनुपम वाणारसी, त्रिजुवनमा नही अलका इसी ॥१॥ विशमो गढने विशमी पोल, जलके रविकोशीसा उल ॥ उंचा घर मंदिर कैलास, सप्तनूमिया जिहां आवास ॥२॥ जिन मंदिर शिव मं दिर जिहां, साधु साधवी विचरे तिहां ॥ वारु चा रे वर्ण त्यां बसे, धर्मकरण सदु को ननसे ॥३॥ लो क सुखी तिहां धनद समान, घर घर दीजें वंबित दो न॥ दीन दुःखीनी करे संनाल, जीव सदुना जे प्रति पाल ॥४॥न करे कोइ केहनी कांई तांत, जेहथी थाये कलि उत्पात ॥ न करे पर निंदा परोह, एह वा लोक वसे कृत सोह॥ ५ ॥ तिण नगरी मकरध्व जनप,यनिनव मकरध्वज अनुरूप ॥ न्यायवंत गुण वंत कृपाल, थरियणने लागे जेम काल ॥ ६ ॥ चमो लोकपाल पाल, देखी हरखे बालगोपाल ॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) हय गय रथ पायक जंमार, विजव तपो लाने नह । पार ॥ ७ ॥ राणी जेहने लह्मोवती, बुद्धिमंत जा ऐ सरस्वती ॥ रूपें जीती जेणें अपठरा, नमणी ख मणी जाणें धरा ॥ ८ ॥ चनसह नारी कलानिधि जाण, हंस हरायो गति पिक वा ॥ जेहनुं वपु दे ख। उल्लस्या, उत्तम गुण यावीन वस्या || || जोगव तां सुख लीजविलास, शुभ मुहूरत सुत खायो ता स ॥ उत्तम गुण देखी अनिराम, उत्तमचरित्र दियं तस नाम ॥ १० ॥ बीज चंदनी परें कुमार, दिन दि न वाधे कलाविस्तार || दीवो सदुनें खावे दाय, पूरव पुण्य तणे सुपसाय ॥। ११ ॥ बालपणे पण दया वि शाल, न करे केदने हरबर मार ॥ सत्यवादी मुख ख मृतवाण, न्यायवंत बहु गुरानो खाण ॥ १२ ॥ श स्त्र शास्त्रनी शीखी कला, धर्मशास्त्र शीख्यां निर्मला ॥ न लीये जेह यदत्तादान, परस्त्री जाणे बेहेन समा न ॥ १३ ॥ जगति करे जिनवरनी घणी, गुरुनी नग ति करे सुख जणी ॥ एहवो कुमर गुणें सुकमान कहे जिनदर्ष प्रथम यर ढाल ॥ १४ ॥ सर्वगाथा ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ कना बहोंतेर जे एया, पंमितनाम धराय ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ) धर्मकला भावी नहिं, तो मूरखना राय ॥१॥धव र सर्व विकला कला, धर्मकला शिरदार ॥ धर्मकला विण मानवी, पशुतणे अवतार ॥ ५ ॥ रात दिवस धर्म रमे, उत्तमचरित्र कुमार ॥ सुखदायी सदु लो कम, यश विस्तया अपार ॥३॥ एक दिन मनमा चिंतवे,, हवे थयो जुवान ॥ बाप तणुं धन नोग, एम तो न लढुं मान ॥ ४ ॥ बापतगुं धन बालप ए, खाता खोट न कां ॥ तरुणपणे जो नोगवे, तो पुरुषातन जाय ॥ ५ ॥ सोल वरस वोल्यां पडे, न करे जो अमास ॥ बाप तणीपाशा करे,धिक जनमा रो तास ॥ ६ ॥ सिंह सिंचाणो शा पुरुष, न करे प रनी आश ॥ निज जुज खाट्युं खायें,तो लहियें जश वास ॥ ७ ॥ जण न कहायो जगतमां, बालपणे य शवास ॥ पशु दूधा ते बापडा, पडिया खावे घास ॥ ७ ॥ करुं परीक्षा कर्मनी, जोनं देश विदेश ॥ ख डले निशि चालियो, धरतो हरख विशेष ॥ ५ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ माझं मन मोह्यु रे वप्रानंदा रे॥ ए देशी॥ ॥ कर्म परिक्षा रे करण कुमर चल्यो रे, धरतो म नमा उत्साह ॥ साथें लीधो रे नाग्यसखायीयो रे, Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) धीरजवंत गजगाह ॥ १ ॥ क० ॥ रणवनवासी गा म नगर फरे रे, जोतो ख्याल यपार ॥ जमतो न मतो चित्रकूट यावियो रे, एकनडो शिरदार ॥ २ ॥ क० ॥ महिसेन राजारे तेणे पुर राजियो रे, देश जे हनो मेदपाट || जेहने पोतरें बाएं लख मालवो रे, मरु मंगल करणाट ॥३॥ क० ॥ देशघणाना रे नरपति उलंगे रे, पुहवी प्रबल प्रताप ॥ निशदिन लोणोरे र हे जिन धर्मशुं रे, जाणे राज्य संताप ॥४॥क० ॥ पु त्र नहीं रे राजधुरा घरें रे, केहने यापुं राज ॥ योग्य नही रे कोइ राज्य पालवा रे, बोडंतां पण लाज ॥ ५ ॥ क० ॥ उत्तम कोइ रे जो पुण्यवंत मिले रे, तो तेहने देनं नार ॥ नियत करूं रे छातम साधना रे, लेन लेवं संजम नार ॥ ६ ॥ क० ॥ एक दिन रा जारे रमवा निसखो रे, साधें बहु परिवार ॥ नव व य वारुरे लक्षण सुंदरू रे, थइ घोडे असवार ॥ ७ ॥ क० ॥ नवल वढेरो रे चंचल गति नहीं रे, पूढे मं त्रीने नूप ॥ कहो केम मंदगति ए अश्वनी रे, कोइ न जाणे स्वरूप ॥ ८ ॥ क० ॥ वली वली पूढे रे कोइ बोले नही रे, कोइ न जाखे विचार ॥ राय स मीपें रे अश्व निहाजीने रे, श्राव्यो उत्तम कुमार Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) ॥ ए ॥ क० ॥ कुमर पयंपे रे सुणो माहारायजी रे, एणे पियुं महिषीनुं दूध || मंदगति य रे तेणे ए कि शोरनी रे, नहीं गति चंचल शुद्ध ॥ १० ॥ क० ॥ प य महिषीनुं रे याये वायडुं रे, वायें गति जारे होय ॥ तुं केम जाणे रे वत्स राजा कहे रे, ज्ञानी चतुर कोय ॥ ११ ॥ क० ॥ यश्वपरीक्षा रे जाणुं राय जी रे, उत्तमचरित्र कहे ताम ॥ राय कहे रे साधुं तें क्युं रे, लघुवय विद्याधाम ॥ १२ ॥ क० ॥ बाल पणाथी रे एहनी मा मुइ रे, बालक कोइ न खाय ॥ महिषी दूधें रे एह उबेरियो रे, तें नाख्युं ते न्याय ॥ १३ ॥ ०॥ गुण देखीने रे उत्तमकुंमारना रे, हर्षि त थयो रे नपाल || बीजी पूरी रे थइ ने एटले रे, कहे जिन हर्ष ए ढाल ॥ १४ ॥ क० ॥ सर्वगाथा ॥ ४ ६ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ कुमरता गुण देखोने, रोज्यो चित्त नरेश ॥ रा जकुमर ने ए सही, निकलियो परदेश ॥ १ ॥ जोतां ए जुगतो मिल्यो, राजकाज समरब || एहने राज्य दे 5 करी, साधुं हुं परमब ॥ २ ॥ सांचल हो तुं शा पु रूप, लइयें माहारुं राज | हुं दीक्षा जेइश हवे, सारि शाम काज ॥ ३ ॥ नाग्य संजोगें मुज नणी, Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) तुं मलियो गुणवंत ॥ ए लखियो ने ताहरे, वखतें राज्य महंत ॥४॥ जेहने जेहबु जोग्यता, तेहने तेह बुं होय ॥ कानें कुंमल रयणमय,नयणे काजल जोयए ___॥ ढाल त्रीजी॥नेम लालन मोरे मन वस्यो ॥ ए देशी ॥ ॥ कुमरकहे सुणतातजी, तुझे कयुं ते प्रमाणो रे ॥ पण मुज बागल जाय, करवा काम कल्यायो रे ॥ १ ॥ कु० ॥ काम करीने धावगुं, वलतुं कर्तुं क रेशुं रे ॥ जे देश्यो सुप्रसन्न थ, ते ततहण ढुंखेश्यु रे॥॥ कु० ॥ एम कही राय चरण नमी, की, कुमर प्रयालो रे ॥ पुहवी अचरिज जोवतो, जोतो विविध विनाणो रे ॥३॥ कु॥ नमतो नमतो थ नुक्रमें, नस्यब नयरें बायो रे ॥ पुरनी शोना जोव तो, हैडे हर्षित थायो रे ॥४॥कु०॥ श्रीमुनिसुव्रत देहरे, जइ प्रणम्या जिनराजो रे ।। नाव नक्ति स्तव ना करे,धन्य दिवस मुज बाजो रे ॥५॥॥ मूरति प्रतु मनमोहिनी, धार्त्ति जगत समावे रे ॥ जनमन यानंदकारिणी, दीठा स्वामी सुहावे रे ॥ ६ ॥कु०॥ वंडित दान कलपलता,नवःख सायर नावो रे ॥ मू रति अमृतस्पंदिनी, जागे समकित नावो रे ॥ ७ ॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कु० ॥ तुं जगबंधव जगधणी, तुं जग दीन दया लो रे ॥ तुं जगतारक जगपति, करुणावंत कृपालो रे॥७॥ कु० ॥ श्री जिनराज जुहारीने, थायो साय र तोरो रे ॥ एणे अवसर व्यवहारियो, कुबेरदत्त स धीरो रे ॥ ए ॥ कु०॥ नूरि वाहण तेणें पूरियां, म गधदीप नणी बायो रे ॥ अष्टादश जोजन सयां,लें सुनट सखायो रे ॥१० ॥ कु० ॥ कुमर नमरप ए कौतुकी, कुबेरदत्त संघातो रे ॥ वाहण बेगे जो यवा, वारिधि ख्याल विख्यातो रे ॥११॥कु॥ वाह ए चाल्यां शुन दिने, शकुन ले श्रीकारो रे । केट लेक दिवसें गये, खूटयो वारि विचारो रे ॥१२॥ ॥ कु० ॥ शून्य होप जलकारणे, लोकें वाहण ढोयां रे ॥ सहु उतरिया जहाजथी,जलनां स्थानक जोयां रे ॥ १३ ॥ कु० ॥ लोक संग्रह जलनो करे, हवे ते ऐ दीप मजारो रे ॥ भ्रमरकेतु रादस रहे, निर्दय क्रूर अपारो रे ॥ १४ ॥ कु० ॥ सहससेंती परिव खो, याव्यो तिहां कृतांतो रे ॥ जाव्या लोक सहू तेणे, थया मनमां नयनांतो रे ॥ १५ ॥ कु०॥ के नर जाल्या काखमां, केश नर जाल्या हाथो रे ॥ केश पगमांहे चांपी रह्यो, नाग के अनाथो रे ॥ १६ ॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कु०॥ के वाहण चडी चालिया, कुमर एकाकी वीरो रे॥ सत्त्ववंत उपगारियो,सदु मूकाव्या सधारो रे॥ १७॥ कुणा राहलयुं यु मामियु, उत्तम चरित्र कुमार रे॥ कहे जिनहर्ष कुमर लड्यो, त्रीजी ढा ल महारो रे ॥ १७ ॥ कुछ ॥ सर्वगाथा ॥ ६ ॥ ॥दोहा ॥ ॥ यु६ करतां जीत्यो कुमर,हायो असुर पलाद ॥ सैन्य सहित नासी गयो, ऐ ऐ पुस्य प्रसाद ॥ १॥कु मर सिंधुतट बावियो,खेडी गया जिहाज ॥ चतुर चि त्तमां चिंतवे, लोकमांहे नहीं लाज ॥२॥ में बोडा व्या सदु नणी,कीधो में उपकार ॥ सदुने राख्या जी वता, कृतघ्नी थया अपार ॥ ३ ॥ मुजने मूकीने ग या, जरदरिया मकार ॥ सदुको आपसवारथी,खोटो ए संसार ॥ ॥ मुख मीठा जूठा हिये, रखे पतिजो कोय॥ जसु कीजें नपगारडो,सो फरी वैरी होय ॥५॥ ॥ ढाल चोथा ॥ अलबेलानी देशी॥ ॥ कुमर विचारे चित्तमां रे लाल, लोक तणो श्यो दोष ॥ नपगारीरे॥जय व्याकुल न खमी शक्या रेलाल, राक्षस केरो रोष॥ नपगारी रे॥१॥॥ज न्मांतर कीयां होशे रे लाल, में केश विरुषां पाप ॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) ॥ ॥ तेह कर्म याव्या नदे रे लाल, पाम्या एह संताप ॥ १० ॥ २॥ कु० ॥ एहवू चिंतवी चित्त मां रे लाल, ध्वज बांधी एक हद ॥ न॥ वन फल खातो तिहां रेहे रे लाल, साहसवंत सुदद ॥३०॥ ॥३॥ कु०॥ दीप तणी अधिवासिनी रे लाल, देवीय दोगे ताम ॥ १०॥ कुमर रूप रज़ियामणुं रे लाल, जाणे अनिनव काम ॥ १० ॥ ४ ॥ कु० ॥ कामराग व्यापत घरेलाल, निपट कमरनी पास ॥ न० ॥ यावीने एणि परें कहे रे लाल, वारु वच न विलास ॥ ज०॥५॥ कु० ॥ सांजल हो नर सा हसी रे लाल, हुँ देवी एवंदीप ।। उ०॥ रूपें मो ही ताहरे रे लाल, यावी तुज समीप ॥ ३० ॥६॥ ॥ कु० ॥ ए तो पुण्ये पामियें रे लाल, सुरनारी संयो ग ॥ १० ॥ तुं प्रीतम ढुं पदामिणी रे लाल, मुजयं जोगव नोग ॥ १० ॥ ७॥ कु०॥ तुजने मलवा मा हरूं रे लाल, हियडु धरे नन्नास ॥ ॥ ल्यो लाहो जोबन तणो रेलाल, पूरो मुज मन आश ॥ २०॥ ॥॥ कु० ॥ रूप निहाली ताहरु रे लाल, गुण देखी सुविलास ॥ १० ॥ मन चंचल तुज वाले थयुं रेलाल, क्षण मेलहे नहीं पात ॥ ३० ॥ ए ॥ कु०॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) मन याये में व्याकुखं रे लाल, ढील न खमणी जाय ॥ न० ॥ काया मेलो दे हवे रे लाल, घणे को गुं थाय ॥ १० ॥ १७ ॥ कु० ॥ कुमर कहे देवी सुयो रेलाल, म कहीश एहवी वात ॥न ॥ किहां देवी किन्हां मानवी रेलाल, सरिखी न मले धात ॥१०॥ ॥ ११ ॥ कु० ॥ परनारी मुज बहेनडी रे लान, पर नारी मुज मात ॥न॥ बंधव परनारोनो रे लाल, साची मानो वात ॥ 7 ॥ १२॥ कु०॥ परनारी जे जोगवे रे लाल, नलो न नाखे कोय ॥ १० ॥ एणे जव अपजश तेहy रेलाल, परनव उर्गति हो य।। न० ॥ १३ ॥ कु० ॥ ढुं बोरु बु तहरो रेला ल, तुं ने माहारी माय न॥ शरणे याव्यो ताहरे रे लाल, कर रदा सुपसाय ॥ न० ॥ १४ ॥ कु० ॥ रीशाणी देवी कहे रे लाल, कां रे मूढ गमार ॥3॥ माय बहेन मुजने कहे रे लाल,सगपण किशो विचार ॥३०॥ १५ ॥ कु० ॥ कयुं करीश नही माहरुं रे लाल,देश तुजने दुःख ॥१०॥जो जाणे ढुं जीवतो रे लाल, मुजफ्युं नोगव सुख ॥ ७० ॥ १६ ॥ कु० ॥ ढुं तूती तुजने दियुं रे लाल, अरथ गरथ नंमार ॥ ॥ ज०॥ रूठी तो हुं तुज नणी रे लाल, मारीश खड Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) ग प्रहार ॥ ० ॥ १७ ॥ कुणी कुमर जणी बीही व राववा रे लाल, रूप कीधुं विकराल ॥ ० ॥ कहे जिन हर्ष सुणो हवे रे जाल, ए चोथी यइ ढाल ॥ उ० ॥ || कु० ॥ १८ ॥ सर्वगाथा ॥ ९२ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ काढी खड़ कहे सुरी, कांरे मरे निटोल ॥ हितका रण तुजने कहुं, मान मान सुज बोल ॥ १ ॥ मुत्रा मां कां नथी, जीवंतां कल्याण ॥ शुं जाये वे ताहरु, करेज खांचाता ॥ २ ॥ कुमर कहे कर जोडिने, सां जल मोरी माय ॥ मुजथी एवं नवि होवे, क्यारें ए अन्याय || ३ || सुधापानथी जो मरे, चं पडे थं गार ॥ तो पण हुं परनारीने, न करूं अंगीकार ॥ ४ जो जाऐ तो मार तुं, जो जाये तो तार ॥ बागल पाउल सहु जणी, मरतुं वे एकवार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ बहेनी रही न सकी तिसेंजी ॥ ए देशी ॥ ॥ साहस देखी तेहनुं जी, देखी शील उदार ॥ व तमगुण देखी करी जी, देवी कहे तेणि वार ॥ १ ॥ सनूणा ॥ धन धन तुज अवतार ॥ तुज सरीखो कोइ नहीं जी, जोतां एणे संसार ॥ स० ॥ ध० ॥ ए यां Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) कणी॥ तुज दरिमण देखीकरी जी, पवित्र थया मुज नेण ॥श्रवण सफल थया माहरा जी, सांजली ताह रविण ॥ २ ॥स० ॥ प्रापथकी पण तुज नणी जी, वाल्डं लाग्युं रे शील ॥ चित्त चूक्युं नहीं ताहरूं जी, शीलें पामोश लील ॥३॥ स० ॥ खुशी थर देवी करे जी, स्तवना बे कर जोड ॥ धागलें मूकी कनकनी जी, रयणनी दादश कोड ॥४॥ स० ॥ पाय प्रण मी देवी गई जी, समुदत्त तिहां शेठ ॥ शेठ कहे मु ज वाहणे जी, यावी बेसो निचिंत ॥ ॥ स ॥ध न जेइ प्रवहण चढ्यो जी, चाल्या समुइ मजार ॥ जरदरिया विचे चालतां जी, खूटयो वाहण वारि ॥ ॥ ६ ॥ स ॥ निगरण सुका लोकनां जी, जलविण सकारे होठ ॥धाकुल व्याकुल सदु थयां जी, मर वानी थर गोठ ॥ ७ ॥ स० ॥ हा हा धिक जलचरय की जी,अमें थया सत्त्व हीन ॥ जलचर जल पाखें मरेजी, अमें जलमांहे दोन ॥ ७ ॥ स० ॥ दीन व चन विलवे सहू जी, झुं थाशे जगदीश ॥ जल वि ण प्राण रहे नहीं जी, मर विशवा वीश ॥ ए॥ ॥ स० ॥ शास्त्र नीहालीने कहे जी, निर्यामक तेणि वार ॥ वेल उतरशे नीरनी जी,हमणा एनिरधार ॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) १० ॥ सा ॥ प्रगट होशे जलकांतमय जो, पर्वत जलअस्टष्ट ॥ कूप ले तेनी नपरें जी, स्वावंत जल मिष्ट ॥ ११ ॥ स० ॥ परंपरायें सांजव्युं जी,वली में शास्त्र सकार ॥ यानपात्र थापी करी जी, तिहां जा लीजें वारि ॥ १२ ॥ स० ॥ नियमिक वाणी सुगी जी, खुशी थया सदु लोक ॥ कहे जिन हरख कह्यु युं जी, पांचमी ढाल विलोक ॥ १३ ॥ स० ॥ स वेगाथा ॥ १११॥ ॥ दोहा॥ ॥ पण एक महानय ने इहां, नमरकेतु इणे ना म॥ राक्षस रहे ने दीपमा, तेहनुं जे ए गम ॥ १॥ सहस ब लय कोणप रहे, रात दिवस ते पास ॥मा दामांस नदण करे, क्रूर अधिक नत्रास ॥ २ ॥स मुदेवता तेहने,शपथ कराव्यो एह ॥ तेतो तीर्ण न क्षण करे,प्रवहण तजवा तेह ॥३॥ निज इनायें ते रहे, वचन सुम्यां श्रवणेह ॥ वात करंतो एटले, प वंत प्रगटयो तेह ॥ ४ ॥ लोकें कूप निहालियो, प ण राक्षसनी नीति ॥ तरण्या पण बेसी रह्या, वाह एमां चलचित्त ॥ ५॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (34) ॥ ढाल बही ॥ इमर थांबा थांबली रे ॥ ए देशी ॥ ॥ कुमर कहे जल कां न त्यो रे, बेसी रह्या त मे केम ॥ चालो या उतावला रे, जनविण तूटे मे म ॥ १ ॥ कुमरजी | जल केम खाएयुं जाय, एतो रा इसनो नय थाय ॥ एतो वात विषम कहेवाय, ए तो फोगट मरण उपाय || २ || कुणी करुणा या णी लोकनी रे, उपगारी मतिमंत ॥ बाण बाण लेइ करी रे, बोजे एम बलवंत ॥ ३ ॥ कु० ॥ वाह थी हवे कतरो रे, मत बीदो मन मांहि ॥ हुं र क बुं तुम तो रे, राखुं राक्षस साहि ॥ ४ ॥ || कु० ॥ मुज घागल ए बापडो रे, एहनुं गुं बे जोर || सुर सुरपति पण माहरी, रे चांपी न शके को र ॥ ५ ॥ कु० ॥ रात्रिचरनी नाएशुं रे, सुपनाम पण नीति || यानपात्रथी उतस्यो रे, राजवियांनी रीति ॥ ६ ॥ कु० ॥ कुमर बाण खेंची करी रे, जो कूवा तीर ॥ लोक जाजन लइ खावियां रे, नरवा नि मेल नोर ॥ ७ ॥ कु० ॥ नाजन बांधी रांढवे रे, मू क्युं कूप मकार ॥ कूवाथी नवि निसरे रे, एक च पण वारि ॥ ८ ॥ कु०॥ जलनृतजल नवि नोसरे रे, इहां कारण वे कोय ॥ पण कोइ खबर करे नहीं रे, रा Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) सनो जय होय ॥ ५ ॥ कु० ॥ एहवो कोई बलवं त रे, पेशी कूवामांहे ॥ नीर करे कोई मोकलुं रे, सदुने करे उत्साह ॥ १०॥ कु०॥ केणही वचन न मानियुं रे,कुमर थयो दुशीयार ॥ वारे शेव कुमारने रे, ताहरो आधार ॥ ११ ॥ कु० ॥ कूवामां पेशी क री रे, ढुं करूं मुगतुं नीर ॥ लोकतृषाकुल सदु म रे रे, तेणें मुज मन दिलगोर ॥ १२ ॥ कुछ ॥ रकु विलंबी उतस्यो रे, कूवामांहे कुमार ॥ सात्विक चक्र वर्ति सारिखो रे, लोक तणो अाधार ॥ १३॥ कु०॥ पण कंचननी जातिका रे, नपर ले धनिराम ॥जा॥ विमाथी जल जयुं रे, दीतुं नयणे ताम ॥१४॥कुछ चतुर विचारे चित्तमा रे, उत्तमचरित्र कुमार ॥ कहे जिनहर्ष थयु इयु रे, बही ढाल मकार ॥ १५ ॥ ॥ कु०॥ सर्वगाथा॥ १३ ॥ ॥दोहा॥ ॥ अहो अहो अचरिज इश्यु, किणें निपायुं एह। कनक कंबानी जालिका, देखी ननसे देह ॥१॥न रि परि कीधी कुमर, जाली कंबा तेह ॥ जल भारग कीयो प्रगट, लोकां नणी कहेह ॥ २ ॥ जल काढो गाढा थइ, म करो हवे विलंब ॥ तृषामांहे अमृत Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) लह्यो, फल्यो थकालें अंब ॥ ३ ॥ जल काढी नाजन नखां, हवे कुमर तेणि वार ॥ कूपनीतमां बार', म णि सोपानुं दार ॥ ४ ॥ देखी मनमां चिंतवे, नाग्य परीक्षा काज ॥ हूँ परदेशे निसखो, बोडी घरनुं राज ॥५॥ चित्रकूट स्वामी तगुं, ते पण न लियुं राज ॥ मूकाव्या राक्सथकी, लोकांतणा समाज ॥ ६ ॥ पा पी में की, प्रगट,सांप्रत कूप मजार ॥ तृषा गमाव। लोकनी, कोधो ए उपकार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ माहाविदेह क्षेत्र सो हामणुं ॥ ए देशी॥ ॥ कौतुक जोवा कौतुकी, चाल्यो चतुर सुजाण लाल रे ॥ वाट बांधी रे वारु चोरसें, कोजें कहां व खाण लाल रे॥१॥ कौ ॥ मणिसोपान सोहाम णां, कंचनमय प्रासाद लाल रे ॥ पागल कुमर नि हालियुं, देखी थयो आल्हाद लाल रे ॥ ॥को॥ बेनी पहेली भूमिका, वृदा नारी एक लाल रे॥ जइ ने तिहां ननो रह्यो, बोली घाणी विवेक लाल रे॥ ॥ ३ ॥ कौ० ॥ कां रे मूरख मानवी, होणपुण्य बुद्धि हीण लाल रे ॥ नूलो याव्यो जमघरें, धाक थडे कोण लाल रे ॥ ४ ॥ कौ० ॥ कानेही नवि सा Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) जल्यो, चमरकेतु किनास लाल रे ॥ कुमर कहे हुं उ लखु, में जीत्यो बे तास लाल रे ॥ ५ ॥ कौ० ॥ पूढं तुजने मावडी, केहनो ए प्रासाद लाल रें ॥ तुं कोण केम बेठी इहां, कहे मूकी विखवा द लाल रे ॥ ६ ॥ कौ० ॥ वचन सुणी बलवंतनां, वृक्ष कहे सुण वीर लाल रे ॥ तुं सत्यवंत शिरोम पि, दीसे गुणगंजीर लाल रे ॥ ७ ॥ कौ० ॥ राक्षस द्वीप इहां टूकडो, लंका नयरी ईस लाल रे ॥ जमर केतु राक्षस बजी, राज्य करे अवनीश लाल रे ॥ ८ ॥ ॥ कौ० ॥ कन्या तास मदालसा, सयल कलानी जाण लाल रे || लक्षण अंगें शोनतां, रूपें रति पिकवाय लाल रे ॥ ए ॥ कौ० ॥ देवकुमरीने सारिखी, एहवी नहिं कोई अन्य लाल रे ॥ राय जणी वाल्ही घणुं, पोतें पुष्य अगस्य लाल रे ॥ १० ॥ कौ० ॥ भ्रमर के तु नृप एकदा, नैमित्तिक पूबेह लाल रे ॥ मुज कन्या वर कोण होशे, कहे विचारी तेह लाल रे ॥ ११ ॥ 11 कौ० ॥ एहने वर नूचर होशे, कृत्रिय राजकुमा र लाल रे ॥ हिमवंत सीमा राज्यनी, दक्षिणलंका धार लाल रे लाल रे ॥ १२ ॥ कौ० ॥ महाराजाधि राजा होशे, दल बल जास पार लाल रे ॥ विद्या Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१ ) धर नर राजवी, सेवा करशे तास लाल रे ॥ १३ ॥ ॥ कौ० ॥ वयण सुणीने तेहनां, खेद लह्यो नूपाल लाल रे ॥ कहे जिनहर्ष किश्युं दुश्ये, हाहा सात मी ढाल लाल रे ॥ १४ ॥ कौ०॥सर्वगाथा ॥१५॥ ॥दोहा॥ ॥ नूचरपुत्री परणशे, कन्या देवकुमार ॥ खेचर इयुं खूटी गया, एहवो करी विचार ॥ १ ॥ समुहमा हे पर्वत शिखर, कूपमाहे करी बार ॥ मोहोटो महे ल रच्यो इहां, कोई न जाणे सार ॥ २ ॥ कन्याने राखो इहां,राखी मुज रखवाल॥ पंचरतन कुमरीनणी, दीधां नूपाल ॥३॥ दुं दासी बु तेहना, चमरके तु लंकेश ॥ धनधान्यादिक मोकले, कूपवाट सुविशे ष॥ ४ ॥ कूषामांहे पडण नय, जाली कनक बणा य ॥ जतन करी राखी शहां,नूचर केम परणाय॥५॥ ॥ ढाल ठमी॥ जोहो मिथिला नगरीनो राजियो॥ ॥ए देशी। ॥ जोहो एकदिन अपर निमित्तीयो, जोहो पूजे रा दत तास ॥ जीहो कहेने मुज कन्या तणो, जोहो कोण वर थाशे नास ॥१॥संकापति पूजे तास विचार ॥ ए बांकए। ॥ जोहो पूरवली परें तेणें का, Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) जीदो चढियो क्रोध थपार ॥ ॥ लं० ॥ जोहो न मरकेतु नाखे वली,जोहो केम जाणीजें तेह ॥जीहो नाखे ताम निमित्तियो, जीहो सोनल नृप सुसनेह ॥३॥ तं ॥ जोहो जांत्रिक जन नखवा नणी, जी हो तुं गयो दीपमजार ॥ जोहो तुजने जीत्यो एकले, जोहो ते नर तुं अवधार ॥॥॥ जीहो मास एक थयो तेहने, जोहो सांजली चडियो क्रोध ॥ जीहो रा सदल मेली करी, जोहो दणवा गयो ते जोध ॥५ ॥ ॥ जोहो आगल युं थाशे हवे, जीहो ते जा णे जगदीश ॥ जीहो कुमर विचारे ते सही,जीहो रा दस तणो अधीश ॥ ६ ॥ ॥ जोहो एतो में जा एयो हवे, जीहो मुज वैरीनुं गम ॥ जीहो घाट वाट रोकी रह्यो,जीहो मुज मारेवा काम ॥७॥ ॥जीहो कूड कपट मायावीनी,जीहो ए रादतनी जात ॥ जी हो जतन करी रहेवू इहां, जोहो प्रगट न करवी वा त ॥॥ २० ॥ जोहो कुम। ताम मदालसा, जीहो रूप कला नंमार ॥ जीहो देवजुवनथी उतरी, जोहो जाणे देवकुमारि ॥ालं॥जीहो कुमररूप देखी क रो,जीहो मोही कुमरी ताम॥ जोहो वदन कमल जो रही, जोहो जेम दालिसी दाम ॥ १०॥ ॥जी Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) हो रायकुमर पण तेहy,जोहो मोह्यो देखी रूप ॥जी हो चपल नयण चोटी गयो, जीहो जाग्यो प्रेम श्र नूप ॥११॥॥ जीहो बेदुनो राग जो करी, जी हो वृक्षा नारी ताम ॥ जोहो गंधर्व विवाह क। ति हां, जीहो परणाव्यां तेणे ठाम ॥ १२॥ लं० ॥ जी हो पृथिव्यादिक चारे नलां, जीहो पांच, रतन था काश ॥ जीहो प्रानाविक पांचे जलां, जीहो देवाधि ष्ठित खास ॥ १३ ॥ लं० ॥ जीहो पांच रतन मदा लसा,जीहो ले वृक्षा रे नारि ॥ जीहो याव्यो कुमर उतावलो, जीहो तेणिहिज कूप मजार ॥ १४ ॥ जीदो समुदत्तना आदमी,जीहो जल काढे तिणीवा र॥ जोहो कहे जिन हर्षे युं हवे, जोहो उत्तम चरि त्रकुमार ॥ १५ ॥ ॥ सर्वगाया ॥१७॥ ॥दोहा॥ ॥ बाहिर काढो मुज नणी, नाखे एम कुमार॥ रकु प्रयोगें निसयां, त्रणे जण तेणि वार ॥ १॥स घले विस्मय पामियो,अचरिज थयुं अपार ॥ जलदेवी के किन्नरी,के अपनर अवतार ॥२॥ कुमरनणी पूले सद सुर कन्या कोण एह ॥ सदु वृत्तांत सुणी इश्यु, हरख्या सदु नर तेह ॥ ३ ॥ प्रवहण चढीने चालि Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या,धरता मन पाणंद॥ वलि दिवस केटले गए,जल खूटयु नही बुंद ॥॥ लोक सदु थाकुल थया, लूट एए लाग्यां प्राण ॥ मरण मान सदुको थया, सदुनी थाशे हाण ॥ ५ ॥ ॥ ढाल नवमी ॥ पारधीयानी देशी ॥ ॥ नांखे एम मदालसा रे, विनय करीने नेह रे ॥प्रीतमजी॥ मरशे सदु ए मानवी रे,पाणी पाखें एह रे ॥१॥प्रीतमजी ॥ तुमें मारा थातमजी, तमने कहूं जेम तेमजी ॥ जल मलशे कहो केमजी के ॥ करवो करवो रे उपाय कोइ तेह रे ॥ २॥ प्रीत ॥ ए यां कणी ॥ कुमर कहे जल केम मले रे,खारा समुश्मका र रे ॥ प्री० ॥ दीपकूप कोई नहीं रे, सुणी सुकुलि णी नार रे ॥प्रो० ॥ ३ ॥ मुज थानरण करंमियो रे, स्वामी उघाडो एह रे ॥ प्री० ॥ पांच रतन एमां हे ने रे, गुण सांजल तुं तेह रे ॥ ४ ॥ प्रो॥ नूदेवा धिष्ठित ने रे, पूजी मागे पास रे ॥प्री०॥ थाल क चोला कनकनां रे, विविध नाजन दे खास रे ॥५॥ ॥प्रीत ॥ शयनासन धादिक जला रे, मग गोधूम सुशालि रे ॥प्री० ॥जूषण मणिकंचन तणां रे, प्रग ट दुवे ततकाल रे ॥६॥प्री०॥ नाररतन नन मूकीय Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) रे, वंबित जलनी वृष्टि रे ॥जी॥ शालि दाल सदु सु खडी रे, तेज रतनें सुरष्टि रे ॥ ७॥ प्री० ॥ वायुर तन गगने धस्यं रे, मृअनुकूल समीर रे ॥प्री० ॥ गगन रतन पटकुल दे रे, देव दुष्यादिक चीर रे ॥६॥ ॥प्रीत ॥ करुणा करी प्रीतम तुमें रे, खिया लोक निदाल रे॥प्री०॥ पांच रतन ले करी रे,नीर तषा तुं टाल रेणाप्री०॥ नदी न निज पाणीपीये रे,निजफल वृक्ष न खाय रे ॥प्री०॥मेह न मागे सर नरे रे,परत पगारें थाय रे ॥१॥प्री०॥ जे अविलंबे वेलीयां रे, थापद दे आधार रे ॥प्री० ॥ शरणे राखे मारतां रे, ते मोहोटा संसार रे ॥११॥प्रीत०॥ नपगारी तम सारिखा रे, जग सरज्या किरतार रे ॥प्रीत ॥ पर नां दुःख नाजन नणी रे, वली करवा उपगार रे॥ ॥१२॥ प्रीत ॥ नारी वचन एहवां मुणी रे, द र्षित थयो कुमार रे ॥प्रीत ॥ धन्य ए नारी सुलद एी रे, धन्य एदनो अवतार रे ॥ १३॥ प्रीत०॥रा दस कुलें ए उपनी रे, एहवी दीनदयाल रे॥प्रीत॥ कहे जिनहर्ष सोहागणी रे, ए थ नवमी ढाल रे ॥१४॥प्रीत ॥ सर्व गाथा ॥ १० ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) ॥ दोहा॥ ॥ नारी वयण सुणी करी, प्रमुदित थ कुमार ॥ कूयार्थनें बांधियु, नीररतन तेणि वार ॥१॥ मेघट ष्टि दुश् तुरत, सद जयां जलपात्र लोक खुशी सदु को थयां, शीतल कीयां गात्र ॥॥ पांचे रतन प्र नावथी, विविध किया उपगार ॥ लोक सदु सेवा क रे, गुण मोहोटो संसार ॥ ३ ॥ गुण पूजाए लोक मां, गुणने सादर थाय ॥राजा परजा गुणथकी, स दुको लागे पाय ॥ ४॥ समुदत्त दीती नयण, नारी रतन एक दीस ॥ कामें व्यामोहित थयो, ऐऐ रू पजगदीश ॥ ५॥ ॥ ढाल दशमी॥ करम परीदा करण कुमर चल्यो रे ॥ ए देशी॥ ॥मनमांहे पापी रे शेत एम चिंतवे रे, एहनी ना रीरे होय ॥ तो हुँ जाणुं रे नव सफलो थयो रे,मु ज सरिखो नहीं कोय ॥ १ ॥ मनमां० ॥ एहवी ना री रे पुरयें पामियें रे, के तूठे जगदीश ॥ पुण्यविण न मिले रे एहवी गोरडी रे, जाणुं विशवावीश ॥ ॥ ॥ म ॥ दाय उपायें रे ए लेवी सही रे, ए वि ण रझुं न जाय ॥ एहवी नारी रे जो दुं नोगतुं रे, Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) तो वंडित सुख थाय ॥ ३ ॥ म० ॥ थावो यावो जाइ रे नेला बेसीयें रेरें, उत्तमचरित्र कुमार ॥ पा लोवल मनें रे तुजविण नवि गमे रे, जीवन प्राण थाधार ॥ ४ ॥ म० ॥ मननी वातो रे बेसी कीजि ये रे, सुख दुःखनी एकांत ॥ गुणवंत पाखें रे केही गोवडी रे, गुणवंत गुं नीरांत ॥ ५ ॥ म० ॥ तुं न पगारी रे नांजे पर डुःखडां रे, तुज समोनर नहीं कोय ॥ तुज मुख दीवां रे तन मन उल्लसे रे, हीयडुं दर्षित होय ॥ ६ ॥ ० ॥ मोहनगारा रे तें मुज म न हसुं रे, तुज विष रह्युं रे न जाय ॥ मोहनी लगाइ रे तें कांइ प्रेमनी रे, तुज पांखे न सुहाय ॥ ७ ॥ ॥ म० ॥ दिन तो कीजें रे तुज मन गोठडी रे, दिव स संहेलो रे जाय ॥ रात्रें जाजे रे ताहरें स्थानकें रे, शेठ कहे चित्त जाय ॥ ८ ॥ म० ॥ अरज करूं बुं रे तुजने एटली रे, अरज सफल कर मित्त ॥ पर उप गारी रे कर उपगारडो रे, चतुर खुशी कर चित्त ॥ ॥ ए ॥ म० ॥ जे आपणने रे वांबे वालहा रे, तेहने न दीजें पूंठ ॥ तन मन दीजें रे तेहने याप पुं रे, चादर दीजें नक्कि ॥ १० ॥ म० ॥ वचन न लोपे रे उत्तम कुल तयो रे, बेद दीये केम तेह || Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) जेम तेम जोडे रे प्रात सोहामणी रे,निगुण न पाले तेह ॥ ११॥ म० ॥ घणुं घणुं तुजनेरे कही करयुं रे, तुं दीनदयाल ॥कहे जिन हा विचारो वानहा रे, ए थ दशमी ढाल ॥१शाम॥ सर्वगाथा॥२०७ ॥दोहा॥ कमरीकडे मदालसा.सांनल कंत मजाण॥शेत तणी एप्रोतडी, हानि जाण निज प्राण ॥ १ ॥ कंत मरा चे एहद्यु, ए में कपटी दीत ॥ कालाशिरनो यादमी, होये उष्ट मुहामि ॥ ॥ अति विश्वास न कीजिये, कंत कहूं कर जोडि ॥ एक कनक अरु कामिनी,एहथी अनरथ कोडि ॥३॥ यतः॥ पुष्पं दृष्ट्वा फलं दृष्ट्वा दृष्ट्वा, च नव यौवनं ॥ इविणं पतितं दृष्ट्वा, कस्य नो चलते मनः ॥१॥ कुमर कहे सांनल प्रिये,ए उपगारी शेत॥ थापण ऊपर एहनी, सुनजर शीतल दृष्ट ॥ ४ ॥ मुह मीठा जूग हिये, दुं न पतीजुंताय ॥ मीठा बोलो मो रियो, साप सपूतो खाय ॥ ५॥ धूता होय सनद पा, कुसती होय सलऊ ॥ खारा पाणी सीयला,ब दुफल होय अखऊ॥६॥ वयण नारीनां अवगणी, निशिवासर रहे पास ॥ अवसर देखी नाखियो, सा यरमांहे तास ॥ ७ ॥ कोलाहल करी उठियो, प Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ) डियो समुड्मकार || मित्र सनेही माहरो, उत्तमच रित्र कुमार || || जाएंयुं तुरत मदालसा, ए पापीनां काम ॥ नाख्यो जलमां मुज पति, रोवण लागी ताम॥ए ॥ ढाल ग्यारमी ॥ जावननी देशी ॥ ॥ परम सनेही वालम माहरो रे, यातमनो या धार ॥ मुज प्रबलाने मूकी एकली रे, सायरमा निर धार ॥ १ ॥ प० ॥ हुं कंता कहती इस नीचनो रे, म करीश तुं विश्वास ॥ माहरूं कह्युं न मान्युं नाह ला रे, तो फल पाम्यां तास ॥ २ ॥ प० ॥ तें न‍ कनोले जाएंयुं सद्दुरे, धवलुं तेटलुं दूध ॥ पण कप टीनुं कपट उख्युं नहीं रे, हियडुं जास अशु६ ॥ ३ ॥ प० ॥ धूतारा तो मुह मीठा होये रे, पण हियडामां पाप । जुंनूं करतां ते बीहे नहीं रे, उप जावे संताप ॥ ५ ॥ प० ॥ मुख दीवाली होली हि यडले रे, एहवा दुर्जन होय || पग पग नाखे पापी पासला रे, रखे पतीजो कोय ॥ ५ ॥ प० ॥ याशा बेदी माहरी पापीयें रें, कीधी निपट निराश ॥ जीवन विष हुं जीवं केहि परें रे, नाखे प्रबल निःश्वास ॥ ६ ॥ ॥ प० ॥ जाणे पावसजलधर वल्लस्यो रे, नयणन खं धार ॥ पियु पि चातक ज्युं प्रमदा करे रे, जा Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) ग्यो विरह अपार ॥ ७ ॥१०॥रोवे कण जो वे दश दिशे रे, प ण थाये चेत ॥ फूरे यूथ ट ली मृगली परें रे, पियु तोडयुं कांइ हेत ॥ ७ ॥ प० ॥ प्राण दोशे माहरां दवे प्रादुणां रे, तुजविण सुगुणा नाह ॥ ए दुःख में खमणुं जाये नहीं रे, विरह लगायो दाह ॥ ए ॥ ५० ॥ में चिंतामणि रत न लडं हतुं रे, राख्युं करी जतन ॥ पण बाजे नहीं पुण्य विदण्डा रे, रांकां घरे रतन ॥ १० ॥ १० ॥ किश्युं करूं सनिल साहेलडी रे, हियडे दुःख न समा यहीयहूं फाटे रत्नतलावगुं रे, केम जी मोरीमा य॥ ११ ॥ १०॥ प्राणसनेही जलनिधिमां पडयो रे,मने मलवानीबाश ॥ऊपापात करूं जो नीरमा रे, तो पोहोचं पियु पास ॥१२॥ १० ॥ हवे जीव्यानो स्वाद नहीं किश्यो रे, वर बोडीजे जीप्राण ॥ ढाल थ पूरी अग्यारमी रे, कहे जिनहर्ष सुजाण ॥ १३ ॥ ॥ १० ॥सर्वगाथा ॥ २२ए। ॥दोहा॥ ॥ प्रोतमविण जी नही, बंमिश पापी प्राण ॥ निशदिन वींधे मुज नणी, पंचबाण सपराण ॥ १ ॥ काया पावक संग्रहो, जीव ग्रहो जमराण ॥ रूप रसा ___ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५) तल संग्रहो, गुण था पाषाण ॥॥ मरवाने उ द्यत थई, वृक्षा कहे तेणि वार ॥ म मर म मर मूरख म मर,सांनल कहुँ विचार ॥ ३ ॥ फांसी विष जहण करे, पाणी अग्निप्रवेश ॥ गिरितरुवरथीप डी मरे, कुमरण कहियें एस ॥४॥ एह मरणथी नवो नवें, लहिये मरण यह ॥ पुण्ये मलशे जी वतो, तुज प्रीतम सुसनेह ॥ ५ ॥ ॥ ढाल बारमी ॥ नणदल हे मोहन मुदरी ले ग यो।ए देशी ॥ ॥शेठ कहे यावी करी,रूडां वयण रसाल ॥हे व निता सुण वातडी,तुंम पड न पडःखजान ॥१॥रम णीहे मान वयण तुं माहरूं,महिलं वयण तुं पाल पर ॥एमांकणी॥ मित्र अमूलक माहरो, उत्तमचरित्र कु मार ॥ ते मुजने नवि वीतरे हो,साले हियडा मकार ॥शार॥ पुण्य दुवे तो पामियें, मन मान्या मित्त ॥ नयणवयण रलियामणा हो,पाले अविहड प्रीत ॥३ पर॥ खाणां पीणां खेलणां,न गमे मीठा नाद॥वात विगत गुणगोठडी दो, लागे सह निःस्वाद ॥धार॥ दुःख म कर तुं गोरडी, फुःख कीधे थाय ॥ मूते जीवे नही हो, जो बरसां सो थाय ॥ ५॥ २० ॥ ___ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) चतुर नारी तुज सारिखी, अवर न दीवी कांय ॥ सु ख जोगव संसारनाहो, मुजशुं प्रीत बनाय ॥ ६ ॥ ॥ २० ॥ राणी धणीयाणी करूं, मारुं घर तुज हाथ ॥ जीवंतां विरतूं नही हो, मुज तुज अविचल साथ ॥ ७ ॥ २० ॥ तेतो परदेशी हतो, जाति वंश नहीं शुद्ध ॥ गुंफूरे बे तेढ़ने, तुंही कुलवंत मुद्ध ॥ ८ ॥ ॥ २० ॥ पानफूल विचें राखणुं, दुहविश नहीं कि वात ॥ चाकरनी परें चाकरी हो, करचं तुज दिन रात ॥णार ॥ ले लाहो जोबन तणो, सफलो कर अवतार ॥ तन धन जोबन प्रादुणो हो, जातां न ला गे वार ॥ १० ॥ २० ॥ तुजचं लागी प्रीतडी, तुज विष्ण रह्युं न जाय ॥ तुज मलवा मन जल्लसे हो, यव र न कोई सुहाय ॥ ११ ॥ २०॥ ते माटे तुजने कहुं, समऊ समऊ गुणवंत ॥ हठ बोडी हितगुं मलो हो, तुं कामिनी हुं कंत ॥ १२ ॥ २० ॥ तुजनुं मुजगुं प्री तडी, सरजी सरजणहार || नावि न मटे केहथी हो, जो करे लाख प्रकार ॥ १३ ॥ २० ॥ तुं को हुं को ए किदांथकी, यावी मनियो संच ॥ विधिनो ल । खियो दूतो हो, तुज मुज प्रेम प्रपंच ॥ १४ ॥ २० ॥ कोण करावे कोण करे, करता करेशुं होय ॥ ढाल थ‍ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) ए बारमी, जिनदर्ष कहे तुं जोय ॥ १५॥२०॥ स ० ॥ २४णा ॥ दोहा ॥ ॥ वयण सुणी ते शेठना, कुमरी कीध विचार ॥ ए पापी मुज नांजों, शीनरयण शणगार ॥१॥ कूड कपट करी राख, शील यमूलक एह || चिंतवे ए म मदालसा, वयण कहे सुसनेह ॥ २ ॥ सुयो शेव साहिब तुमें, वयण कयुं सुप्रमाण || मरण थयुं प्री तम तपुं, दशदिन तेहनी काण ॥ ३ ॥ तुमने गम शे तेम होशे, चडी तुमारे हाथ || परमेशर मेल्यो हवे, ताह माहरो साथ ॥ ४ ॥ उतावला सो बा वरा, धीरें सब कबु होय ॥ सिंच सो घडा, रुतु थावे फल होय ॥ ५॥ किणहोक नगरें जाइयें, मास दिवसने बेह ॥ पुरपतिनी लेइ यागना, यावीश ता हरे गेह ॥ ६ ॥ नाम म लेइश माहरु, डुं बुं ताहरी नार ॥ शेठ नली कीधो खुशी, कुमरी बुद्धिविचार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल तेरमी ॥ कपूर होये घति उजलो रे ॥ए देश ॥ ॥ वृद्ध कहे कुमरी जणी रे, करियें शील जतन्न ॥ त्रिभुवनमांहे दोहेलुं रे, लहेतां एह रतन्न रे ॥१॥ व हेनी, सांजल माहारी बात || शीलें यरि करो केशरी रे, न करे कोई घात रे ॥ ब० ॥ ए यांकणी ॥ वायु Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) स्तन सुप्रसादथी रे,तट लहियें कुशजेह ॥ तिहां जो मुज प्रातम मले रे,तो रही निज गेह रे ॥॥॥ न मलें तो यापण बेदुरे,लेगुं संजम नार ॥ वयण मुणी कुमरी इस्यां जी,हरखो चित्त मकार रे ॥३॥ ॥ ब० ॥ मानी वात मदालसा रे, कीg अंगीकार ॥ कुमर तो हवे सोनलो रे,जेह थयो अधिकार रे॥ ॥४॥ब०॥ जलनिधिमांहे कुमर पडयो रे, मकर ग्रह्यो ततकाल ॥ सायर तट ते थावियो रे, धीवर नाख्यो जाल रे ॥ ५॥ब० ॥ महामकर घरे थाणि यो रे, कोधो तास विनाश ॥ मत्स्यानदरी नीतस्यो रे, जीवित माना ॥ ६॥ ब० ॥ देखी धीवर चिंतवे रे, मोहोटो नर ने एह ॥ सेवा खिजमत सद्ध करे रे, कुमर रहे तस गेह रे ॥ ७॥ ब० ॥ हवे स मुदत्त शेतना रे, वाहण चाल्यां जाय ॥ वायुरतन पूजा करी रे, यास्या बे दिनमांय रे ॥ ७॥ बा ॥ तिहां अजाण्यां धावियां रे, मोटपल्ली वेलाकुल ॥रा जा नरवर्मा तिहां रे, जिनधर्मगुं अनुकूल रे ॥ ५॥ ॥ब० ॥ समुदत्त लेइ नेटणुं रे, लेइ कुमरी साथ ॥ रायसनायें धावियो रे, नेटयो अवनीनाथ रे॥१०॥ ॥ ब० ॥ आदर नृपें बहु थापियुं रे, पूज्यो कुशल Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) लाप ॥ ए कोण नारी शेवजी रे,सुरकन्या गुण व्याप रे ॥ ११॥ब० ॥ शेठ कहे स्वामी सुणो रे, चंकी सही एह ॥ नारी एहनी स्वामिनी रे, सुंदर सुगुण सनेह रे ॥ १२॥ब० ॥तुम यादेशे माहरी रे,थाये एद कलत्र ॥ बोली तास मदालसा रे, नाखे किश्यु अखत्र रे ॥१३॥ब० ॥राजा आगल पापीयो रे, नांखे एह अलीक ॥ राजा जो न्यायो दुवे रे, तो तु जलावे नीक रे॥१४॥ब० ॥ निर्लज गुंताजे न ही रे, जपतो बालपंपाल ॥ कहे जिनहर्ष पूरी थई रे,तेरमी ढाल रसाल रे ॥१५॥बासर्वगाथा॥२७॥ ॥ दोहा ॥ ॥ लाज करी कुमरी कहे, वयण राय अवधार ॥ मुज पतिने एवं पापीयें, नारख्यो समुश्मजार ॥ १ ॥ राय सुणी कोपें चड्यो, घाल्यो कारागार ॥ माल पां च सय पोतनो, मूक्यो निजनंमार ॥ २ ॥ सानल पुत्री नृप कहे, रहे तुं मुज आवास ॥ पुत्री मुज ति लोत्तमा, रहे तुं तेहनी पास ॥३॥ बेहेन तेह नेता हरे, सखी तणे परिवार ॥ सुखें समाधे रहे सदा, चिंता दूर निवार ॥ ४ ॥ दीन नणी तुं दान दे, डोडि ___ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) सयल फुःखदाह ॥ किणही तट लागो होशे, तो निर त करशे तुज नाह ॥ ५॥ ॥ ढाल चनदमी॥ हो मतवाले साजनां ॥ ए देशी॥ ॥सुखें रहे कुमरी तिहां, मननी बीक सदु नागी रे॥ राय मानी पुत्री करी, पुण्यदशा तस जागी रे॥ ॥१॥ सु० ॥ पंच रतन सुपसायथी, तिहां दान नि रंतर यापेरे॥ श्रीजिनधर्म करें सदा,सदुने जिनधर्म थापे रे ॥ २ ॥ सु०॥ सतीजनोचित कन्यका, ले नि यम मले नहिं सांवरेत्यां सुधी नूयें सुयq,स्नानादिक न करवू कां रे ॥३॥९॥ नारे वस्त्र न पहेरवां,प हेरुं नहीं फूलसुगंधो रे ॥ अंगविलेपण नवि करूं, तं बोल तजुं प्रतिबंधो रे ॥ ४ ॥॥ स्वादिम में तज, सही,नीलां फल जदए नवि करवां रे ॥ नियम ली यो सदु शाकनो, दूध दहीं मही परिहरवां रे ॥ ५॥ ॥सु० ॥ सूस सहूं सुखडी तणुं, साकर गुड खांकन खावे रे॥ पायस सरस न जीम, जिमवा काजें न वि जावे रे॥६॥९॥ एक जुक्त नित्य जमीवु,कारण वि ण किहांये न जावू रे ॥ गोखें पण नवि बेसबु, लोक स्थिति चित्त न लावू रे॥७॥सु०॥ सरस कथा करवी नहीं, गाथा काव्य श्लोक सरागी रे ॥ कानें ___ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५ ) पण सुणवां नहीं, करवी तो कथा वैरागो रे ॥ ७॥ ॥ सु०॥ वात न करवी पुरुषगुं, चित्राम पुरुष न विलोकुं रे॥ नाटक ख्याल जोन नहीं, जातुं चंचल चित्त रोकुं रे ॥ ए ॥ सु०॥ एहवी ए लीधी बाखडी, पियु न मले तिहां लगें पालुं रे ॥ ध्यान करुं नव कार, पूजा करी पाप पखालुं रे ॥ १०॥ सु०॥ अन्य दिवस धीवर सहू, साथै करि उत्तम कुमारो रे॥ कांहिक काम वशे मती, थाव्या मोटपढ्नी पा रो रे॥ ११॥ सु०॥ नरवर्मराय मंमावियो, पुत्री कारण धावासो रे॥ अति मनोहर सात नूमियो, दीनां होय नन्नासो रे ॥ १२ ॥ सु॥ पुरनी शोना जोवतो, तिहां थाव्यो कुमर सुजाण रे॥ कामका रोगर तिहां करे, निजशास्त्र सहूना जाण रे ॥१३॥ ॥ सु० ॥ गम गम ते वीसरे, खोटां घर किहां च गावे रे ॥ ढाल थइ ए चादमी, जिनहर्ष कुमार शीखावे रे ॥ १४ ॥ सु० ॥ सर्वगाथा ॥ १० ॥ ॥दोहा॥ ॥ कुमर वास्तुविद्या विष,पण न मले अहंकार॥ सूत्रधारने शीखवे, सघलोही अधिकार ॥ १ ॥ चम त्कार चित्त पामिया,चिंते सद्ध सूत्रधार ॥ ए नर दीसे Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) बे सदी, विश्वकर्मा अवतार ॥ २ ॥ नक्ति करे सहु कुमरनी, पासें राख्यो तास ॥ पुर खोल्यो सहु धीव रें, न जह्यो थया उदास ॥ ३ ॥ इहां घावी खोयुं रतन, यमनें पड्यो धिक्कार ॥ एम निज खातम निंदता, सड्डु गया तेणि वार ॥ ४ ॥ रायकुमरनी सान्निध्यें, पूरो थयो यावास ॥ सप्तभूमि सुरगृह जीश्यो, माहा ज्योति सुप्रकाश ॥ ५ ॥ ॥ ढाल पन्नरमी ॥ खादर जीव कुमागुण चादर ॥ ॥ ए देशी ॥ ॥ पूरु थयुं मंदिर कुमरीनु, जोवा श्राव्यो राय जी ॥ देखीने रलियायत हुनु, कीधो बहुत पसाय जी ॥ १ ॥ उत्तम चरित्र कुमार निहाल्यो, रूपकला गुणजोइ जी ॥ राजा नरवर्म चित्त विचारे, वे राजनपुत्र कोइ जी ॥ २ ॥ पू० ॥ एदवुं नृप चिंतवीने वलियो, कु मरी रमवा काज जी ॥ वनवाडीमांहे संचरियां, सइयर तणे समाजजी ॥ ३ ॥ ५० ॥ मशीयो जुयंग क्रीडा क रंतां, ततक्षण यइ यचेत जी ॥ उपाडीने मंदिर खाणी, नयण धवन थयां श्वत जी ॥ ४ ॥ पू० ॥ अंगो अं ग महाविष व्याप्युं, गारुडविद्या जाण जी ॥ ते सहु ते डाव्या राजवीएं, जे कुंमरी प्राणजी ॥ ५॥ पूणा म Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णि मूली मदुरा बहु पाण्या,कीधा कोडि नपाय जी॥ पण समाधि थायनहीं किमही, किमहीविष नवि जाय जी॥ ६ ॥पू॥ नगरमांहे पडहो फेराव्यो, जे को वि द्यावंत जी ॥ रायतणी कन्या जीवाडे, ते पसाय लहं त जी ॥ ७॥पू० ॥ अर्ध राज कुमरी नृप थापे,कुम र मुल्यो विरतंत जी॥ पडह बन्यो ततहण यावीने, उपगारी गुणवंत जी ॥॥पू०॥ उत्तम रायसमी श्राव्यो, तेहिज नर ए होय जी॥धादर देईपासें बेसा यो,स्वारथ मीठो होय जी ॥ ए॥ पू० ॥ एक स्वार्थ ने वली गुण माहे, थादर लहे अपार जी॥ कन्या था पी तिहां उपाडी, कुमर करे उपगार जी ॥ १० ॥ ॥ पू० ॥ मंत्र गणी पाणीशं बांटी, कुमरी थइ सचेत जी॥ कर जोडी राजा गुण गावे,धन्य धन्य तुं कुलके त जी॥११॥ पूातें उपगार कियो मुज मोहोटो, दीधुं जीवितदान जी॥ मुज कन्याने तें जीवाडी, विद्या तणा निधान जी॥१॥ पू० ॥ तुजने शो नपगार क हूँ, करुणावंत कृपाल जी॥ए जिनहर्ष कन्या तुज दीधी, परणो पन्नरमी ढाल जी ॥१३॥पूण॥३०॥ ॥दोहा॥ ॥ राय विचारे चित्तमा,ए नर ने कुलवंत ॥राज्य क Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) न्या देव तेहने, ढुंहवे रतुं निश्चित ॥ १ ॥ जोषी तुर त तेडावियो, नांखे एणि परें राय॥ परणे कुमरी त्रि लोचना, वासर लगन बताय ॥॥ जोई पुस्तक टी पणुं, लगन कियो निरधार ॥ एह दिवस निर्दोष , जोतां दिवस हजार॥३॥ घणे महोत्सवयं नृपति, वर कन्या परणावि॥ दीधो राज्यनंमार सहू,करमोच न प्रस्ताव॥४॥कुमरी काज करावियो,सतनूमियो थावा स ॥राय दियोरहेवा नणी,तिहां नोगवे विलास ॥५॥ ॥ ढाल शोलमी ॥ पंथीडानी देशी ॥ ॥ दासीने कहे हवे मदालसा रे, प्रीतमनी कांच न थासार रे॥ सायर मां बडयो ते सही रे,दवे हुँ जी शे अधार रे ॥ १ ॥दा॥ दान दीयो में दी न ऊखीनणी रे, साते दे वावयुं वित्त रे॥ श्रावक धर्म यथाशक्तं करे रे, जिनवरपूजा चोखे चित्त रे ॥ ॥ २ ॥ दा॥ हवे मुज बहेनी कुमरी त्रिलोचना रे, तेदने देश पंच रतन्न रे॥दोदा लेश ढुं जिनवरतणी रे, पालिश संयम करिय जतन्न रे ॥३॥ दा० ॥ दासी क हे सांजल तुं स्वामिनी रे, म कर म कर मनमांहे वि पाद रे॥ कोइ परदेशी वखो त्रिलोचना रे, जेहनो सदु बोले यशवाद रे ॥ ४ ॥ दा० ॥ रूपकला गुण Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) जेहमांहे घणारे,सांजलीयें बीए जेहनी ख्यात रे॥खबर करूं जो दे तुं धागन्या रे, कुमरी कहे तो जो मोरी मात रे॥ ५॥ दा० ॥ यावी कुमरी घर उतावली रे, दोगे उत्तमचरित्र कुमार रे॥ गुप्ताकति देखी नविन लख्यो रे, दोतो सुंदररूप आकार रे॥ ६ ॥ दा० ॥ क्षण एक वात करी दासी वली रे,यावी निजकुमरी नी पास रे॥ सोनल माहारी वात मदालसा रे, दीगे पुरुष जश् आवास रे ॥ ७ ॥ दा० ॥ रूपें तो तुज जरतार सारिखो रे,पण कांक याकतिमा फेर रे॥सां जली जाग्यो प्रेम मदालसा रे, वली मन लीधो पालो घेर रे ॥ ७ ॥ दा०॥ फट रे पापी मन झुं कियुं रे, किण उपर तें धारयो राग रे,प्राणसनेही इहां आवी रहे रे. ऐहदूं किहांथी ताहरूं नाग्य रे ॥ ए ॥ दा०॥ मिला उक्कड दीधो मदालसा रे,हवे कुमरें पूड़ी निज नारि रे॥ ए कोण वृक्षा इहां आवी दुतारे, कुमरी क हे सांनल जरतार रे ॥ १० ॥दा० ॥ वयण बोलावी बहेन मदालसा रे, परदेशिणी तेहनीले दासो रे॥ कुमर चिंते ते तो माहारी प्रिया रे,जाग्यो राग थयो उनासीरे ॥११॥ दा॥ रोमांचित काया मन उ ___ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४० ) लस्युं रे, नाम सुणी हरख्यो ततकाल रे || पुण्य तो ते मुजने मले रे, ए जिनदर्ष शोलमी ढाल रे ॥ १ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ वली मनमांहे चिंतवे में फोगट धरयो राग ॥ कि हां ते नारी मदालसा, रूपकला सोनाग ॥ १ ॥ समु इदत्त लेइ गयो, पापी मुजने नाखि ॥ जिहां होये ति दां जइ मलुं, पण दैव न दोधी पांख ॥ २ ॥ ए सु ख लीलासाहेबी, ए नारी ए राज ॥ पण नही ना री मदालसा, तो ए सुख कि काज ॥ ३ ॥ दश्डामां ह मदालसा, मुख न जणावे वात ॥ माणे नारी त्रिलो चना, सुख विलसे दिन रात ॥ ४॥ सुख दुःख न क हे केहने, जे नर उत्तम होय ॥ संगतें नरम गमाय वो, वाट न लेवे कोय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ श्रेणिकमन चरिज ययुं ॥ए देशी ॥ ॥ एए अवसर तिहां सांनलो, घागल जे उपगारो रे ॥ मध्यान्हें जिन पूजवा, जिनगृढ़ गयो कुमारो ॥ १ ॥ ० ॥ करे विचार त्रिलोचना, वार घणी थर खाजो रे ॥ प्रीतम हजीयन यावियो, किशें विल व्या काजो रे || २ || दासी मूकी देहरे, प्रीतम नरति लहाय रे ॥ सधजे दो जोयुं फरी, पण लाघो Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) ॥ नहिं किहांय रे ॥ ३ ॥ ए॥ करे विलाप त्रिलोचना, पियु पाखें न सुहावे रे || उबे जल जेम माबली, तडफि तड फि दुःख पावे रे ॥ ४॥ ए॥ राजा पण चिंता करे, सुद्धि किहां नवि थाये रे ॥ दुःख सद्दु कोइ करी रह्या, चिंतामां दिन जाये रे || ५|| ए | तेण पुरमांदे धनी रहे, महेश्वरदत्त मनाय रे ॥ बप्पन कोडि कनकनी, निधि व्याजें व्यवसाय रे ॥ ६ ॥ एय० ॥ वाहण ज लवट पांचों, शकट पांचों वदेतां रे ॥ गृह विपण प पांचों, पांचशे वखार समहिता रे ॥ ७ ॥ एए ॥ गोकु ल जेदने पांचरों, पांचों गज मदमाता रे || घोडा जा स विलायती, पांचों चंचल ताता रे ॥ ॥एण ० ॥ पांचरों सुंदर पालखी, पांच लाख नृत्य जेहने रे ॥ सुनट पांचरों नलगे, पुत्री नही पण तेहने रे ॥ ए ॥ एल० ॥ केटले एक दिने दीकरी, एक थइ गुणवंती रे शव नारिकला जणी, सुंदररूप सोहंती रे ॥ १० ॥ ॥ एय० ॥ सहस्रकला नामें जली, मनमां शेठ विचा रे ॥ ए संसार असारता, पापें करी जीव नारे रे ॥ ११ ॥ एए ॥ कन्या सारिखो वर मजे, तो तेह ने परणा रे ॥ घरनो नार देई करी, संपद तास न लावुं रे ॥ १२॥ ए० ॥ हुं दीक्षा जेनं जैननी, था ॥ चो Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ २ ) तमने हितकारी रे | यातन तारुं श्रापणो, मनमां वात विचारी रे ॥ १३ ॥ एए॥ वरनी करे गवेषणा, पण न मले मन गमतो रे ॥ कहे जिनहर्ष पूरी थइ, स त्तरमी ढालें नमतो रे ॥ १४ ॥ ए॥ ० ॥ सर्वगाथा ॥ ३४४ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ पूग्यु शेव निमित्तियो, कोण कन्या वरदाख ॥ ज्ञान प्रयुंजी ते कहे, साची माने जाख ॥ १ ॥ महारा जावर एहने, मलशे एकण मास ॥ सामग्री विवाहनी, करो सगाई खास || २ || महेश्वरदत्त खुशी थयो, करें महोत्सव नूरि ॥ लगन लीयो एक मासनो, वाजे मंग लतूर ॥ ३ ॥ स्वजन तेडावे दूरथी, मंगल अनुपम कीध || मोहोटां तोरण बांधियां, नगरमांहे यश ली ध ॥ ४ ॥ धवल मल्हावे गोरडी, वरने देवा काज ॥ गज तुरंग वस्त्राचरण, करि राखे सहु साज ॥ ५ ॥ ॥ ढाल खढारमी ॥ राजा जो मिले । ए देशी ॥ ॥ पुरम िथइ सघले वात, महेश्वरदत्त विवाह विख्यात ॥ पुष्यें पामियें || एतो मन मान्या सुखशा त ॥ ० ॥ सांजली राय सनायें राय, मनमांहे वि स्मय वली थाय ॥ १ ॥ ० ॥ पहेले ममयो बे विवाह, वरनी वात न दीसे कांहि || पु०॥ कोण मा Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) हाराजा इहां यावशे, पुत्री जेहने परणावशे ॥ ५॥ ॥ पु॥ राय विचारे एह चित्त, धन्य धन्य एह महे श्वरदत्त ॥ पु० ॥ एहवी लक्ष्मीनो जे धणी, वैराग्ये ते हने अवगणी॥३॥ पु० ॥ दे जमाइने घर सार, पोतें लेशे संजम जार ॥ पु० ॥ हुँ पण त्रिलोचना जरतार, शुरू करी द्यं राजनंमार ॥४॥पु०॥ दीदा ले धातमकाज, सारूं जेम पामुं शिवराज ॥ पु० ॥ महेश्वरदत्तगुं कियो विचार, पापण थारां दीक्षा धार ॥ ५ ॥ पु० ॥ पडदो नगर फेराव्यो राय, परदे शीसें देशी थाय॥पु०॥ त्रिलोचनावर निरति कहे, म दालसा विरतंत जे लहे॥६॥पु॥ तेहने राजा थापे राज, सहस्रकला कन्या शिरताज ॥पु०॥ पडहो नगर निरंतर फरे, एहवां वचन मुखें उच्चरे ॥ ७॥ पु० ॥ मास एक दु जेटते, पडह बन्यो पोपट तेटले ॥ ॥ पु० ॥ सूडो कहे वचन तेणि वार, नो नो राज पुरुष अवधार ॥ ७ ॥ पु० ॥ लेजा मुज राज उवा र, राय जमा कहुँ विचार ।। पु० ॥ मदालसा पति नी कहुं शुद्धि,पूर्व वृत्तांत कहूँ मुज बुदि॥ ए॥ पु०॥ तुमने वात कहुँ हुँयाज, कन्या सहस्रकला लडं रा ज ॥ पु० ॥ पंखानु पण जाग्युं नाग्य, नहीतो मुज Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( RR ) ए किहांथी लाग ॥ १० ॥ पु० ॥ तेण पुरुष कौतुक ने काज, राय कन्हें आल्यो शुकराज ॥ पु० ॥ रायस ना पूराणी घणुं, लोक सदु धाव्यं पुरतपुं ॥ ११ ॥ ॥ पु० ॥ मदालसा घाणी इहां राय, त्रिलोचना प रियचमां वाय ॥ ० ॥ हुं ज्ञानी सघले विख्यात, तीन कालनी जाएं वात ॥ १२ ॥ पु० ॥ राजा तिम हिज कीधुं सडु, नगर लोक मलियां तिहां बहु ॥ ॥ पु० ॥ बेठो सिंहासन नूपाल, कहे जिनदर्ष घढार मी ढाल ॥ १३ ॥ पु० ॥ सर्व गाथा ॥ ३६२ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ जूत नविष्यत कालनी, केम कदेशे ए वात ॥ ज्ञा न किहांथी एहमां, पशु तणी ए जात ॥ १ ॥ राजा कोने थाप, पंखीने केम राज, राज्यपशु केम पाल शे, यचरिज थाशे धाज || २ || कोइक वे ए देवता, कीधुं बे ए रूप ॥ नहीं तो पोपट पंखियो, जाणे कि स्वरूप ॥३॥ पहेली नारी मदालसा, तेहनोकहुं प्रबंध || सावधान थइ सांनलो, सकल कटुंसंबंध ॥ ४ ॥ ॥ ढाल उगणीशमी ॥ वात मका ढो दो व्रत तणी ॥ ए देशी ॥ ॥ वारु नगर वाणारसी, मकरध्वज नूपालो रे ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५ ) तास कुमर रलियामणो, उत्तम चरित्र दयालो रे ॥१॥ ॥ वा० ॥ रीसावीने नीकल्यो, जमतो जरुव यायो रे ॥ प्रवहण बेसी चालियो, धरतो दर्ष सवायो रे ॥ २ ॥ वा० ॥ गिरिजलकांत समुड् विचें, तिहां कूपकजल जरियो रे ॥ जलकारण मांदे गयो, बारी मां उतरियो रे ॥ ३ ॥ वा० ॥ देवभुवन देखी क री, पेठो मांही कुमारो रे ॥ लंकापति रावणी, पुत्री रति अवतारो रे ॥ ४ ॥ वा० ॥ निरुपम नाम मदा लसा, परणी बाहेर यायो रे ॥ समुइदत्त वाढण चढ्यो, जलविण सदु दुःख पायो रे ॥ ५ ॥ वा० ॥ पंच रत्त सुप्रसादथी, जन जोजन सुख प्राप्यां रे ॥ पर उपगारी एहवो, सदुनां संकट काप्यां रे ॥ ६ ॥ ॥ वा० ॥ स्त्री धन देखी चित्त चयुं, कुलमर्यादा बांकी रे || समुइदत्त व्यवहारियें, नाख्यो जलधि न पाडी रे ॥ ७ ॥ वा० ॥ तिमिंगल तट जइ रह्यो, मै निक तास विदारयो रे || निकलीयो ते जीवतो, मा बी चित्त विचारयो रे ॥ ८ ॥ वा० ॥ ए कोई उत्तम नर अबे, राख्यो तेहने पासें रे । एक दिन पुर जोवा जणी, घाव्या मली उल्लासें रे |||वा ॥ पुत्री राय त्रि लोचना, साप मशी जीवाडी रे ॥ परणी तिहां सुख जो Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) गवे, प्रीति परस्पर जाडी रे॥ १० ॥ वा० ॥ एक दिवस जिन पूजवा, कुमर गयो मध्यान्हें रे ॥ जिन पूजा विधिलं करी,एक चित्तें एक ध्याने रे॥ ११ ॥ ॥ वा० ॥ पुष्पमध्य दीली तिहां, मदनमुक्ति मुख नलिका रे॥ उघाडी तंबोलीएं, सर्प मशी अंगुलिका रे ॥ १२॥ वा० ॥ थ अचेत पडयो तिहां, उत्तम कुमर नतकालो रे ॥ कहे जिनहर्ष पूरी थइ, उग गीशमी ए ढालो रे ॥१३॥वा॥ सर्वगाथा ॥३७॥ ॥दोहा ॥ ॥ तुजने नारी मदालसा,तणी कथा कही एह ॥ तु ज कुमरी जरतारनी,सुधि कही में तेह ॥१॥ सत्य प्रति ज्ञा ताहरी, दे मुजने हवे राज ॥ सहस्रकला कन्या सहित, माहरे एहशुं काज ॥२॥ हुँ तिर्यंचसुख जो गईं, राज्य तणुं निशदीस ॥ सहस्रकला परणावजो, तुजने युं याशीष ॥३॥ राय कहे पंखी नणी, केम देवराए राजा कीर कहे उत्तम नगी, वचन तणीले लाज ॥४॥ दश तो लेइशखरो, नहींतो जश्श मुज वगण ॥ वृत्ति करीश फल फूलनी, था तुज कल्याण ॥ ५ ॥ मायावी माणस दूये, कीर कहे सुण राय ।। काम करी पोतात', मुकर जाये ए माय ॥ ६ ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४७ ) न घटे मुज रहेतुं इहां, तुं तो काढे इंद ॥ काम सखां दुःख वीसयां, वैरी हा वैद ॥ ७ ॥ एम कही सू डो उठियो नृप राख्यो कर सादि ॥ धीरोथा तुज खापी शुं, यति म घर मनमांहि ॥ ८ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ तुंतो मारावालम रे गुज रातीरा ॥ ए देशी ॥ ॥ तुंतो माहारा वादला रे पंखी सूवटा, तुने विन ति करूं कर जोडी रें ॥ जीवे बे कुमर के नहीं, कांदि गांव हैयानी बोडी रे ॥१ ॥ तुं० ॥ वलतुं शुक नांखे रे राजवी, मुजमांहे नहीं कां कूड रे ॥ तुज आागल प्रथम कथा कही, तो न्याय पडी मुख धूड रें ॥ २ ॥ तुं० ॥ एटली जो कथा कह्यांथकां, मुजने तें नाप्युं राज रे ॥ तो धागल कहे गुं थाशे सही, शुं थाशे माहारां काज रे ॥ ३ ॥ तुं० ॥ कुमरी कहे ताम मदालसा, तुज पाये पहुं हुं कीर रे || मुज न पर महेर घरी करी, कर नीवेडो खीर नीर रे ॥ ४ ॥ ॥ राजन कुमरी तुमें सांजलो, कहुं सापें मश्यो कुमार रे ॥ धरणी पडियो नहीं चेतना, विष व्याप्युं अंग अपार रे ॥ ५ ॥ तुं० ॥ नामें अनंगसेना गणिका न पी, जाणे अनंगसेना साक्षात रे ॥ सद्र नरनां रे मा Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) न मोडयां जिणे, तेहनी शी कहियें वात रे ॥ ६ ॥ तुं॥रू तोरें जीती अपरा, रति जाती नारी गरे॥नागकुमरी रे जीती पातालनी, कोश् मांझी न शके जंग रे ॥ ७॥ तुं० ॥ ते गणिका भावी किए कारणे, तेणें दोगे पडयो कुमार रे ॥ उपाडीने नि जघर ले गइ, एतो मशियो जे विषधार रे ॥॥ तुं॥ विष अपहारीमणि थाणीने, जलमांहे पखाली तेह रे॥ते जला रे सींचे कुमरने, निर्विष थयो ततक्षण देह रे॥ए॥ तुं० ॥ हुँतो तूम्यो रे गणिका तुज न पी, माग माग रूचे तुज जेह रे ॥ माग्यो यो जो मुज साहिबा, सुख विलासो धरीय सनेह रे॥१०॥ ॥ तुं०॥ तेणे वेश्या रे मंदिर राखियो,चोथी नई जि हा चित्रशाल रे॥ ते साथ रे सुख संनोगना, नोगवे दिन रात रसाल रे ॥ ११॥ तुं० ॥ तेणे गणिका रे तेहने गुण कोयो, गुण मान्यो दीधो मान रे ॥ तुजने संनलावी सङ कथा,मुज नापे तुं राजदान रे ॥१॥ तु०॥तुजथी तो रे तेह कुमर नलो वेश्यागुं मांमधो घरवास रे॥ निजवच निष्फल की, नहीं,धन्य धन्य तेहने साबाश रे॥१३॥तुं० ॥ निज वाचा रे जे पाले न हीं, ते माणस नही पण ढोर रे ॥ जिनहर्ष थइ ढा Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ल वाशमी, शुक बोल्यो एणिपोरें जर रे॥१॥ तुं॥ सर्वगाथा ॥४१॥ ॥दोहा॥ ॥ स्वस्ति दून महाराज तुज, में पाम्युं सदु राज।। निरपराध मुज जाण दे, नहीं राज्यगुं काज॥ १ ॥ लान थयो इहां एटलो, गलशोषण जे काय ॥ पोंक न खाधो कर बव्या, घरना चूक्या घाय ॥२॥ वैद्य नणी कल्याण दुर, दाक्षिम्य मूको जेय ॥ पहिला ध न लेइ पढ़ें, गोली औषध देय ॥३॥ दादिम्य मेल्ही नवि शक्यो, हुँ मूरख शिरताज ॥ सर्व कथा कहीने प में, मागण लाग्यो राज ॥ ४ ॥ सोनल शुक राजा कहे, पूरण रोग न जाय ॥ वैद्य कर्तुं धन नविल हे, तुं केम राज लहाय ॥ ५॥ तें अरधी कही वार ता, पूरो न कह्यो नेद ॥ मूढ नतावल कां करे, था शे सफल नमेद ॥ ६॥ अनंगसेना गृह जाइने, कुमर निहाली बाज ॥ कथा सुणी सदु धागली, तुजने देश राज ॥ ७ ॥ चनु जेवार यावियुं, जमानी नांगी यारा ॥ तेम तुज वचन प्रतीत डे, बेसो दण यावास ॥७॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) ॥ ढाल एकवीशमी ॥ वैरागी थयो॥ ए देशी॥ ॥राये चाकर मोकल्या रे, जोवा गणिकारे गेह ॥ जजोजो घर तेहनुं रे, कुमर न दोतो तेहो रे ॥ ॥१॥ए युं शुक कह्यु, वेश्या घर केम जायो रे, उत्तम नरथकी, एतो काम न थायो रे॥॥ ए॥ ताहरा घरमां सांजल्यो रे, उत्तम चरित्र कुमार ॥ तें राख्यो ले कहे किव्हां रे, साचं बोल गमार रे ॥३॥ ॥ ए॥ गुंजाणुं रे नाश्यो रे, कुमर तणी ढुं सार ॥ राय जमाई माहरे रे, शेावे आगारो रे॥४॥ए॥ घर खोली जोवो तुमें रे, शो नम राखो रे आम ॥ हाथ तणा कांकण नणी रे,शारीसो झुं काम रे ॥ ॥ ५ ॥ ए० ॥ जो पाना बाविया रे, नृपने कर्यु त तांत ॥ कुमर नहीं गणिका घरें रे, राजा थयो सचिं तरे॥ ६॥ ए॥ गहन वीत नवि जाणियें रे, ने को देव चरित्र ॥राय कहे शुकरायने रे, किशुं पजा वे मित्तरे ॥ ७॥ ए॥ तुजविण निरत न का पडे रे, कहे किहां मुज जामात ॥ किस्युं गुमानी थइ रह्यो रे, कहेने साची वातो रे ॥ ७॥ ए० ॥ सूडो कहे राजन सुणो रे, धूरत जाण्यो रे तुज ॥ बालक जेम नोलावियो रे, तेम नोलाव्यो मुज रे ॥ ए ॥ ए॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) उत्तम ते उत्तम दुवे रे, मध्यम कदिय न हूंत ॥ अग र दहे तन थापणुं रे, परिमल जग पसरंत रे ॥१॥ ॥ ए० ॥ तुं उरसिया सारिखो रे, ढुंतो सुखड सार ॥ घासंतां घासे नहीं रे, धिक् तेहनो अवतारो रे ॥ ॥११॥ए ॥ तुजयी फल पाम्युं नही रे, फोकट कियो रे प्रयास ॥ सांजल हवे तुं सदु कहुँ रे, सदुने थाये नन्नास रे ॥ १२॥ ए ॥ धनंगसेना मन चिं तव्युं रे, अनुपम रूप सौनाग्य ॥ राय जमा पण सही रे, मलियो माहरे नाग्य रे ॥१३॥ ए० ॥ज नम लगे ए माहरे रे,थाये जो नरतार॥ मानव नव सुकतारथो रे, नोगवू नोग अपारो रे ॥१४॥ ए॥ मुज घरथी जाये नही रे, करिये तेह उपाय ॥ दोरो मंत्री सूत्रनो रे, बांध्यो तेहने पाय रे॥ १५॥ ए॥ तेहनो कीयो सुवटोरे,नारी चरित्र विशाल । एम जि नहर्ष राख्यो घरें रे, एकवीशमी ए ढालो रे॥१६॥ ॥ ए॥सर्वगाथा ॥२५॥ ॥दोहा॥ ॥ पोपट घाव्यो पांजरे, रात्रे दोरो बोड ॥ पुरुष करी सुख जोगवे, सफल करे मन कोड ॥१॥ दि वसें वत्ती पोपट करे, निशि दिन एम करत ॥ सूडो Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) मनमां चिंतवे, ए झुं थयुं वृत्तंत ॥ २ ॥ मनुष्य थकी तिर्यंच थयो, में श्यां कीयां पाप ॥या नव तो नवि सांगरे, शे पाम्या संताप ॥३॥ हा हा जाम्यं में हवे, पिता अदीधी नार ॥ परणी कुमरी मदाल सा, पांच रतन ग्रह्यां सार ॥ ४ ॥ए बे पाप कियां इहां, तेथी मश्यो जुयंग ॥ वली आव्यो वेश्याघरे, नरथी थयो विहंग ॥ ५॥ एतो पाप तणा कुसुम, फल पागमशुं प्रमाण ॥ तो नरकें पडवं सही, ए मनिंदे अप्पाण ॥६॥ ॥ ढाल बावीशमी ॥ साधुजी जलें पधा स्या बाज ॥ ए देशी॥ ॥ अनंगसेनाना रागथी जी, रह्यो तिहां एक मा स॥ मेल्ही उघाडं पांजलं जी, गई किण काज विमा स॥ १॥ नरेशर सांजल एह विचार ॥ अचरिजनो अधिकार, सुणतां हर्ष अपार ॥ न० ॥ पडहतणी उदघोषणाजी, सांगली नगर मोकार ॥ तिहाथी न डी यावियो जी, पडह बन्यो तेणि वार ॥॥न॥ ते राजन ढुं सूवटो जी, में सदु कह्यो विचार ॥ रा जा एवं सांजली जी, हर्षित थयो अपार ॥३॥ ॥न ॥ पगथी दोरो बोडियो जी, कुमर थयो तत Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) काल॥ सदुने अचरिज उपन्यु जी, थयो प्रमोद विशा ल ॥४॥ न० ॥ दरखी कुमरी मदालसा जी, नय ऐ नाह निहाल ॥पाम्यो हर्ष त्रिलोचना जी, विर हामि ख टाल ॥ ५॥ न० ॥ परणावी बहु प्रेम शुं जी, शेतमहेश्वरदत्त,सहस्रकला निज कन्यका जी॥ खरची बदुखं वित्त ॥ ६॥ न० ॥ तीन नारी पुण्ये म लीजी,सुरकन्या अवतार ॥अनंगसेना चोथी थइ जी, रूपतणो नंमार ॥ ७ ॥ न ॥राजा तेडी धारामिकी जी,तेहने दीधी मार ॥ फूलमांहि नलिका धस्यो जी,पू यो सर्प विचार ॥॥ न० ॥ मालिनी कहे राजन सु णो जी,तुम पागल कहुं साच॥समुदत्त व्यवहारियो जी, खोटो जेहवो काच ॥ ए ॥ न०॥ तेणें पापी मु जने कह्यु जी,देश तुज दीनार ॥ परखीने तुज पांच शें जी, कुमर नणी तुं मार ॥ १० ॥न ॥ लोने मुज सदए गयां जी, में की, ए काज ॥ पानी मति दुवे नारिने जी, केहनी नाणे लाज ॥११॥ न० ॥ राजा रोषातुर थयो जी,मारो पापी तेह ॥मालीप ए मारो जजी, दुकुम दियो नृप एह ॥१२॥नाते लेइ मारण निसयाजी, केहनी नाणे लाज ॥ करे राय ने विनति जी, मकरध्वजनो पूत ॥ १३॥ न॥ होण Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५४ ) दार निवें दुवे जी, एहोनो शो दोष ॥ कहे जिनह बावीशमी जी, ढालें नृप मनरोष ॥ १४ ॥ न० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मूकुं नहीं ए जीवता, एहनी करवी घात ॥ जाल्यो नहीं एणें एटलो, रायतणो जामात ॥ १ ॥ एक घर माकण परिहरे, न करे तास विनाश ॥ मु ज घरथी ए नवि टयां, बेनो करवो नाश ॥ २ ॥ वि नय करी नृपने कहे, उत्तमचरित्र कुमार ॥ महा राय जवितव्यता, करवो एह विचार ॥ ३ ॥ वांक न कां शेठनो, मालिसी नहीं कां वांक ॥ टले नही जे विधि लख्या, सुख दुःखना शिर यांक ॥ ४ ॥ इं 5 चंद नागेंड् नर, मोहोटा जेह मुलिंद ॥ कियां कर्म सदु जोगवे, बूटे नही नरिंद ॥ ५ ॥ किशुं कीजें श्रमणो, किशुं कीजें रोष || केहनो दोष न का ढियें, कर्मतणो ए दोष ॥ ६ ॥ ॥ ढाल त्रेवीशमी || मोरियाना गीतनी ॥ देश ॥ राये राणा रमे रंकुखा ॥ ए देशी ॥ ॥ पाय पडी नृप तणे रे कुमार, विनति करीय समजाविया जी ॥ एहनुं कीधुं पामशे एद, शेठ मा aण वे मेल्हावियां जी ॥ १ ॥ शेठनुं सहु धन Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५५ ) लोध, मालणी काढचा निज देशथीजी ॥ पहेलां पण नृप मनमां वैराग्य, राज्य ग्राहक सुत पण नथी जी ॥२॥ देइ जमाइने राज्यनंमार, राय चारित्र शुन याद यो जी ॥ महेश्वरदत्त पण रुद्धि समृद्धि, सहु देइ शुद्ध संजम धरयो जी ॥ ३ ॥ महेश्वरदत्त नृप कियो विहार, संजम पाले निज निर्मलो जी || शास्त्र सिद्धां त नया गुरु पास, जेहनो यश ययो नऊलो जी ॥ ॥ ४ ॥ समुइ पर्यंत थयुं नृप राज्य, चुन हिमवं त लगें यागन्या जी ॥ उत्तमचरित्र थयो मा हाराज, जेहने चार घरणी धन्या जी ॥ ५ ॥ नमरके तुनी सांगलो वास, पष्ठित राक्षसनो धणी जी ॥ तेणे नैमित्तिक पूढिया ताम, किहां मुज घरि नाखुं नखणीजी ॥ ६ ॥ ते कहे सांनन राक्षस नाथ, पुत्री तुज परणी मदालसा जी ॥ पंच रतन तुज सार जंमा र, तेह लइ गयो गुन दिशा जी ॥ ७॥ मोहोट पहनी नामें वेलाकुल, सकलतट तणो स्वामी थयो जी॥राय विद्याधर सहु नम्या पाय, पुष्यथी राज्य मोहोटो नह्यो जी॥ ८ ॥ सांगली राक्षस एह विचार, चिंतवे चितमां एहवं जी ॥ देखो अलंघ्यनवितव्यता एह, विधिल Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) ख्यु ते थयुं तेहबु जी ॥ए। समुश्मां शैलस्थितकूप 5 वार, देवता पण जश् नवि शकेजी ॥ गहन पाताल नुवनें तिहां जइ,परणीमुज कुमरीजूचरथके जी॥१०॥ पंचरत्न मुज जीवित प्राय, ले गयो हवे किश्युं कि जियें जी॥ ज्ञान नैमित्तकतणुं प्रमाण,नाग्य नूचरस लहीजीयें जी॥११॥एकलो शून्य दीपें हतो एह,तिहां पण मनें जीत्यो एणे जी ॥ कहे जिनहर्ष पुण्य फली याश,ढालवीशमीए कहीज॥१शासर्वगाथाश६३॥ ॥ दोहा।। ॥हवे तो ए राजा थयो, पंचरतन सुप्रनाव ॥ह य गय पायक नट कटक, माहारो नलागे दाव ॥१॥ हवे जीपी हुं केम शकुं, केहनो राखुं शोष ॥ जे कि रतारें वडा किया, तेहj केहो रोष ॥ २॥ प्राणें जा स न पोहोंचियें, तेजु किश्यो संग्राम ॥ तेहने नमियें जाने, तो विणसे नहीं काम ॥ ३ ॥ काज विचारी जे करे, तेहनुं सोफे काम ॥ अविचायुं धांधल पडे, घटे महत्वने माम॥ ४ ॥ हवे जमाइ ए थयो, क सहतएं नहीं नाम ॥ हसतां रोतां प्राहुणो, राखं किस्यो विराम ॥ ५॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) ॥ ढाल चोवीशमी॥ मोरा साहिब दो श्री शीतल नाथ के ॥ ए देशी॥ ॥ एहवं चिंतवी हो ते मूकी संग्राम के,रासपति याव्यो तिहां ॥करी प्रणिपत हो नृपने तजी मान के, स्नेह सहित मलिया इहां ॥ १॥ पुण्याइ हो य धिकी संसार के, उत्तमचरित्र तुमारडी॥ मुज पुत्री हो थपबर अवतार के, विधियें तुज कारण घडी ॥२॥ जोरावर हो सुर असुर नरिंद के, नावि धागल को नहीं ॥ फोकटनो हो वही मन गर्व के, महारो न में नाग्यो सही ॥३॥ तुं माहारी हो पुत्रीनो कंत के, थयो जमाश्माहरो॥तुज साथै हो माहरेहवे प्रीत के, रूडो वांबु ताहरो॥ ॥ मन केरी हो नागी सदु जी ति के, ससरो जमा बेहु मल्या॥ मुज पुत्री दो सरि खो वर एह के, मुह माग्या पासा ढव्या ॥ ५॥ पु त्रीने दो जइ मलियो बाप के, बाप संघातें पुत्री म ली॥ हियडागुं हो नीडी हेत थाणी के, पुत्रीनी पू गी रली ॥६॥ शिर धारी हो याणा लंकेश के,उत्तम चरित्र नरेशनी ॥ लंकानुं हो देश्ने राज्य के, देन लामण देशनी॥ ७॥ मोकलीयो हो रासपति रा य के,सहुने आणंद उपनुं । एक दिवसें हो बेग द Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) रबार के, दूत आव्यो तिहां नूपनो ॥७॥ आणीने दो रायने दियो लेख के,राय उघाडी वांचीयो ।महे लखिया हो वे बोल अमोल के,जेहथी टाढो दुवे दि यो॥ ए ॥ स्वस्तिश्री हो प्रणमी जगदीश के, वाणा रसीथी मन रसे ॥ मकरध्वज हो लिखितं माहाराय के, उत्तमचरित्र कुमर दिसें ॥ १० ॥ आलिंगे दो हरखें सस्नेह के, कुशल खेम वरतुं इहां ॥ तुमकेरा हो वां सुखखेम के, कागल दीयो बो जिहां ॥११॥ जिण दिनथी हो तुं चाल्यो परदेश के,खबर करावी में घणी॥दोडाव्या हो के. अस्वार के,निरत न पामी तुम तणी ॥१शा चाल्या केडे हो पुरपाटण गाम के,प वंत दीप नमंतडी ॥ किहां न सुपी हो वत्स ताहरी वात के,निशि दिन वाट जोवंतड़ां ॥१३॥ निःस्नेही होतुं तो थयो पुत्त के,मात पिताने अवगणी॥ मेल्ही ने हो गयो तु निरधार के, हियडे अनि दीधी घणी ॥ ॥ १४॥ गेरुने हो मन नांहिं दु:ख के, मात पिता कुःख करी मरे ॥ पूरी थइ हो चोवीशमी ढाल के, कही जिनहर्ष नली परें ॥ १५॥ सर्वगाथा॥ ४७३॥ ॥दोहा॥ ॥ तथा अहं वाईक थयो, तुज विजोग न खमा Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५ए) य ॥ तुज विरहें व्याकुल थयो, दिवस दोहिलो जा य॥१॥ तुजने थमे न दूहव्यो, कुवचन न कह्यु को ॥ रीसावी नीकली गयो, ते परतावो होय ॥ ॥ २ ॥ राज धुरंधर तुं कुमर, तुज नपर सदु माम् ॥ निराधारां मूकी गयो, जलो गयो तुं मि॥३॥ लोक मुखें में सनिल्यो, मोटपल्ली वेलाकुल ॥ उत्तमचरित्र राजा थयो, नाग्य थयुं अनुकूल ॥ ४ ॥ गाढा र लीयायत थया, उनसीयां अम प्राण ॥ पण लेख दर्शणे बावजे, जेम थाये कल्याण ॥५॥ ढुं घरडो बूढो थयो, मुजथी न चालें राज ॥ राज देने तुज नए, दु सारु निज काज ॥६॥ ॥ ढाल पच्चीशमी॥ कलालणी तें माहारो राजन मो हियो दो लाल ॥ ए देशी ॥ ॥ कुमरजी लेख वांची मन रंगशुं हो लाल, ढोल म करजे पुत्त ॥कु०॥पाणीथपीत पधारजो हो लाल, याव्यां रहेशे सूत ।। कु०॥ ॥ वेहेलो अहिंयां या वजे हो लाल ॥ कु॥ तुज विण शूनो देशडो होला ल, तुजविण शूनुं राज्य ॥ कुछ ॥ तुज विण सूनो दृग डो हो लाल, पाव्यां रहेशे लाज ॥ कु० ॥ २ ॥व० ॥ कु० ॥ राज धुरंधर तुं सही हो लाल, तुज विण के Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) बुं राजकु॥ तुंकुलदीपक सेहरो हो लाल,तुं सहुनो शिरताज॥कु० ॥३॥वण॥ ॥ जो चाहे सुख मो न णी हो लाल, वांछे मुज कल्याण ॥ कु० ॥ तो वहे लो थावे यहां हो लाल,टाढां होय मुज प्राण ॥कुछ ॥३॥व०॥कु० ॥ नाग्यवंत तुं दीकरो हो लाल, पिन यवंत गुणवंत ॥ कु० ॥ मावित्रांने मूकीने हो लाल, बेठो जश्य निचिंत ॥ कु० ॥ ५ ॥व० ॥ कु० ॥रा ज्य सयुं अमें सांजल्युं हो लाल,मोटपल्ली वेलाकुल ॥ कु०॥ मनमा रलियायत थ हो लाल, नाग्य थ { अनुकूल ॥ कु० ॥ ६ ॥ व ॥ कु० ॥ तुजने झुं लखियें घणुं हो लाल, तुं सदु वार्ते जाण ॥ कु० ॥ थोडामां समजे घणुं हो लाल, याव्या तणां वखा ए ॥ कु० ॥ ७॥ व०॥ कु० ॥ हैयुं नराणुं हरख गुं हो लाल, वांची सदु समाचार ॥ कु० ॥ ततद ए बूटी लोयरों हो लाल, यांसू केरी धार । कु० ॥ ॥ ॥ व० ॥ कु० ॥ बाप नणी मुःख में दियो हो लाल, हुं थयो पुत्त कपुत्त ॥ कु॥ खाये हियडुं फो लोने हो लाल, माय तणो जिम लूत्त ॥ कुछ ॥ ए ॥ व०॥कु॥मंत्रीसर परधानने हो लाल,राय नलावी रा ज।कुणानारी चार निज सैन्यगुं हो लाल,चाल्यो स Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) हु ले साज ॥ कु० ॥ १० ॥ २०॥ कु० ॥ वाणार सी नयरी तणी हो लाल, लशकर साथे अखूट ॥ कु० ॥ अखंम प्रयाणे वाटमा हो लाल, चलि आव्यो चित्रकूट ॥ कु० ॥ ११ ॥ २० ॥ कु । म हासेन राजा सांजल्यो हो लाल, उत्तम चरित्र नरिं द ॥ कु० ॥ श्राव्यो डे सामो जय हो लाल,मलिये मन धानंद ॥कु॥१२॥व० ॥ कु० ॥ कटक सुनट शुं जय मल्यो हो लाल, थाव्या नगर मकार ॥ कुछ ॥ ढाल था पञ्चवीशमी हो लाल, कहे जिनहर्ष वि चार ॥ कु० ॥ १३ ॥ व ॥ सर्वगाथा ॥ ५० ॥ ॥दोहा॥ ॥ माहासेन देतयं मल्यो, कर जोडी कहे एम ॥ मित्र नलें पान धारिया, वर्ते ने सुख खेम ॥१॥ तुम सुपसायें कुशल , आव्यो मलवा काज ॥क पाकर मुज नपरें, माहाराजा ल्यो राज ॥ ॥ मेह तणी परें ताहरी,निश दिन जोतो वाट ॥ मुज पुरस्में तुं यावियो, बाज थया गहगाट ॥ ३ ॥ उत्तमचरित्र नरिंदने, राजा दे राज ॥ पोतें संयम थादस्यो,सा खां धातमकाज ॥ ४ ॥ केटला एक दिन तिहां र ह्यो, मलवाने मेदपाट ॥ आण मनावी अापणी, Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) लाट नोट करणाट ॥ ५॥ कामदार पोता तणा, में ल्ही चल्यो नेपाल ॥ थाव्यो गोपाचनगिरें, केवी के रो काल ॥ ६ ॥ वीरसेन राजा थयो, कटकतणी सु गोशात॥ चार पदोयणी सैन्यगुं,परवरियो सुप्रनात ॥ ७॥ सीमा यावी उतस्यो, मूक्यो सन्मुख दूत ॥दू त कयुं मत बावजे, जो थाये रजपूत ॥ ॥ जो कांकल करवा मते,राखे जो रजवट्ट॥तो वहेलो थवा वजे, थाशे बहु खलखट्ट॥ ए॥ ॥ ढाल बबीशमी ॥ मुज लाज वधारो रे, तो राज प धारो रे॥ ए देशी ॥ ॥सुणि वयण विचित्रो रे,ए तो थयो शत्रो रे,हवे उत्तमचरित्रो,यु६ करण चढ्यो रे ॥ बे लशकर मती या रे, मांहो मांहे थडियां रे, सदु सुनट आफलि या, कांकल कपडयो रे ॥ १ ॥रण घोर मंमाणुं रे, जाय न बंमाणुं रे, उखाणो खोजा पाडा, जैसा था थडे रे ॥ शर चिढुं दिशि लूटे रे, बगतर कस तूटे रे, वचे नाल वढूटे, धरती धडहडे रे ॥ २॥ हथनाल हवाइ रे, थावाज मचा रे, बचें यावी बरबीना घा व,लागे घणारे॥सूरा एक फूफे रे,गयघड आलू रे, रवि सूफे नही, अंधारूं बिहामणुं रे ॥ ३॥ घणा रो Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) पें मारे रे,तीखी तरवारें रे, जे हारे ते जायो नही, र जपूतणीरे ॥दाको दाक वाजे रे, गयवीर जेम गाजे रे, रखे लाजे सात,परियागत पापणी रे ॥४॥खल खंभे विहं रे, पग एक न मेरे, वली यावी मं रे, साहामा थरि हैये रे॥ देखीने कोपे रे, नया को धा टोपें रे, नवि लोपे रणवट, पग पाबा नवि दिये रे ॥ ५॥ जूजे एम शूरा रे, हथियारे पूरा रे, बलवं त सनूरा, घाव सादामा लीये रे। राणीना जाया रे,ह एवाने धाया रे, तेम धाया रे राया, जयहाथा दीये रे॥ ६ ॥ निशाणे घाय रे, वाजे शरणाय रे, सिंधूडे मचारे, वेढ बिहामणी रे ॥ तरवारें त्राने रे, नानं तापाने रे, तेम शूरा ले ते जूजे, साम्हे थणी रे॥ ॥७॥ उलटया वरसाला रे, वहे लोही खाला रे, म बराला मतवाला,हत मेल्हे नही रे ॥घायें घूमंता रे,के इधड जूऊंता रे,रुंम मुंफ हसंता,नयकारी सही रे ।। ॥ ॥ माटीनुं घाय रे, हथियारसबाह रे, मुज सा मो बाय रे, जो बलवंत ने स्वामी बपुकारे रे.तुं वै री संहारे रे, शूरोशिरदार रे, तुं सम कोण बजे रे॥ ॥ए॥ लखगाने लडाया रे, लखगाने लडिया रे, र डवडीया रे, तुंम घणां सुनटो तणारे॥कांकल देखेवा ___ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) रे, जोगिणोबल देवा रे,तेम करण बल लेवा रे, नूत फरे घणां रे॥ १०॥ एम महायु६ मातो रे, वारे न हीं थातो रे,संसरातो रे,पालो कोश्न उसरे रे॥ पुण्याइ जोरें रे, ते अधिके तोरें रे, निज पराकम फोरे रे, चिंते तेम करे रे ॥ ११ ॥ नृप उत्तमचरित्रो रे, बद्ध पुस्यविचित्रो रे, निजशत्रु रे बांध्यो, काली जीवतो रे ॥ वीरसेन लजाणो रे,मुजथी सपडाणो रे, मुजली धो घाणो रे, जे सबलो हतो रे ॥१२॥ निज आण मनायो रे, बोडयो ते रायो रे,वैराग्य आयो रे, मन वीरसेनने रे॥ बबीशमी ढालें रे, जिनहर्ष निहाले रे,स दु टाले रे,देषने निज मने रे॥१३॥ सर्वगाथा॥५२॥ ॥दोहा॥ ॥मान मलिन थयुं माहरूं, जो रह्यो राजमका र ॥ सुखकारण जे जाणियें, ते सदु :ख दातार ॥१॥ संपदमा आपद वसे, सुखमांहे उख वास ॥ रोग वसे निज नोगमा, देह मरण पावास ॥२॥ ए संसारी जीवने,बधन ने धन दार ॥ मूरख माने सुख करी, मधुलेपी खजधार ॥ ३॥ मान रहे नहीं केहy एणे संसार मजार ॥ जीती कोण जाइ शके, एम नृ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) प करे विचार ॥४॥ पहेले ९ चेत्यो नहीं,धर्म नखे व्योदाव॥तो आवी उत्तमचरित्र,नेजे दीयो घाव॥५॥ ॥ ढाल सत्तावीशमी ॥ चतुर सनेही मोदनां ॥ ए देशी॥ ॥ए कारण वैराग्यनो, रायतणे मन बायो रे ॥ राज्यशदि बोडी करी, करे धर्मउपायो रे॥१॥ ए॥ पुस्यवंत नर एह ,एनर अनमीनामें रे।तो माहारी प्रचता हवे, एहिज नूपति पामे रे॥२॥ ए॥ वी रसेन नृप एहवो, मनमां करिय विचारो रे ॥ उत्तमच रित्र नणी कहे, ए ल्यो राज मारो रे ॥३॥ए॥ढुं दीक्षा लेइश हवे, बोडी राज्यनंमारो रे ॥ एह लख्यु तज नाग्यमां, संग्रह्य तं हितकारो रे ॥माएकाउत्तम चरित्र नरिंदने, देश राज्यविख्यातो रे ॥ वीरसेन संय म लियो, सहस्रपुरुष संघातो रे ॥ ५ ॥ ए॥ केट लाएक दिन तिहां रही, देश मनावी थाणो रे ॥ पुस्यतणे सुपसाउले,पग पग लहे निरवायो रे ॥६॥ ए० ॥ चतुर राय तिहाथी चल्यो,पोताने पुर आयो रे ॥ बापें बहु महोत्सव करी, पुरप्रवेश करायो रे ॥७॥ ए०॥ कुमर पिता पायें नम्यो, पुत्रपिता हेतें मलिया रे। जननी उरगंजीडियो,थाजमनोरथ फलियारे॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M (६६ ) ए॥ चार वहू पाये पडी, सासु देवाशीषो रे ॥ थ विचल जोडी तुम तणी, फलज्यो पाश जगीशोरे ॥ए ॥ ए०॥ मात पिता हर्षित थयां, हो सदु परिवारो रे ॥राय करे अनुमोदना,ऐ ऐ पुण्य अपारो रे॥१०॥ ए० ॥ पुत्र गयो थयो एकलो, ए दि संपद पामीरे ॥ नव निधि जिहां जावे तिहां, शा पुरुषा अनुगामी रे ॥ ११॥ ए०॥ उत्तम चरित्र कुमारने, गुन मूदूरत गुन दीसें रे ॥ मकरध्वज नृ पस्वहथे, दी) राज्य जगीरों रे॥१२॥ ए० ॥ रा ज्य करो सुत ए तुमें, धमें हवे संयम लीजें रे॥ चोथो आश्रम आवियो, बातम साधन कीजें रे ॥ १३ ॥ ए॥ लेई सदुनी थाझा, व्रत लोधुं नूपालो रे ॥ कहे जिनहर्ष उत्साह, सत्तावीशमी ढालो रे॥१४॥ ए॥ सर्वगाथा ॥ ५५३॥ ॥दोहा॥ ॥ चारे राज्य स्वामी थयो, उत्तमचरित्र नरि द ॥ प्रव पुण्य पसाचलें, दिन दिन थधिक आणं द ॥ १ ॥ चारे अपर सारिखी, चारे चतुर सुजा ण ॥ चारे नार पतिव्रता, चारे माने थाण ॥ २॥ चालीश लद अश्व जेहनें, चालीश लद गजहोड ॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) चालीश सह रथ रूयडा, पायक चारे कोड ॥ ३॥ चालीश कोडि ग्रामाधिपति, शक्तिणो नहीं पा र ॥ चार राज्य सुख नोगवे, दिन दिन अधिक वि स्तार ॥ ४ ॥ जिन प्रासाद करावियां, कीधी तीरथ जात्र ॥ अकरा कर सदु मेलिया, पोष्या उत्तम पा त्र॥ ५ ॥ बिंब जराव्यां जिनतणां, पुस्तक नखां नं मारसाहमा वडल पण काया,परनपगारअपार॥६॥ ॥ ढाल अहावीशमी ॥ चूनडीनी ॥ अथवा ॥ प्राणी वाणी जिनती ॥ ए देशी॥ ॥ एम धर्म करंतां अन्यदा, थाव्या तिहां केवल धार रे ॥ वांदण काजें नृप चालियो, उलट धरि वि त अपार रे ॥ १ ॥ ए० ॥ पांचे अनिगम नृप सा चवी, वांदी बेता मुनि पास रे ॥ मुनिवर दे मीठो देशना, सांजलतां अंग उन्नास रे ॥२ ॥ ए० ॥ सं सारीजीव सुणोतुमो,जिन धर्म करो तुमें नायो रे॥सं सार सायरमां बूडतां, तरवानो एह उपायो रे ॥ ३॥ ॥ ए. ॥ संसार अनंत नमंतडा, मानवनव लायो एह रे ॥ दश दृष्टांतें करि दोहिलो, चिंतामणि स रिखो जेह रे ॥४॥ ए०॥ वली श्रुत सोनल दो हिवं, सुगतां उतरे मनकाट रे ॥ सांजलतां श्रत Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) ॥ दियडा तणां, उघडे ज्ञान कपाट रे ॥ ५ ॥ ए० ॥ सहहवा पण दोहिली, जीवने प्रावतां जाए रे ॥ जेम जल न रहे काचे घडे, तेम श्री जिनवरनी वाप रे ॥ ६ ॥ ० ॥ वीर्य फोरववुं दोहितुं, संजमने विषय सुजाण रे ॥ ए चार अंग बें दोहिलां, पामी ने करो प्रमाण रे ॥ ७ ॥ ए० ॥ एतो धर्मवेलाएं जीवने, खालस थावे बहु जांति रे || घारंन वेलायें जागतो, निशदिन करवानी खांति रे ॥ ८ ॥ ए० ॥ जे जीव हणे बोले मृषा, जे दत्त ब्रह्मशुं चित्त रे ॥ प रिग्रह मेले बहु जांतिनो दुर्गतिशुं तेहने प्रीत रे ॥ ॥ ए ॥ ए० || दूर करी तेरे काठिया, क्रोधादिक चार कषाय रे ॥ किंपी पाचें दिना जोगने, जिनधर्म सोहेलो थाय रे ॥ १० ॥ ए० ॥ कोण मात पिता केहनी सुता, केहना सुत केहनी नार रे ॥ दुर्गति जातां इस जीवने, कोई नही राखणहार रे ॥ ११ ॥ ९० ॥ सहु कोइ स्वारथनुं सगुं, स्वारथ पाले सहु नेह रे ॥ जबही स्वारथ पहों चे नही, तो तुरत दिखावे बेह रे ॥ १२ ॥ ए० ॥ मू रख कहे माहरो माहरो, ए धन ए घर परिवार रे ॥ प रजव जाये जीव एकलो, पण कोय न जाये लार रे ॥ १३ ॥ ० ॥ तो खोटी ममता मूकीने, करो धर्म Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) थइ वजमाल रे ॥ जिनदर्ष दीधी मुनिदेशना, ठा वीशमी ए ढाल रे ॥ १४॥ ए॥ सर्वगाथा ॥ ५६३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ दीधी एणि परें देशना, सांगली सहुको लोक ॥ परम प्रमोद थयो हवे, रवि दर्शन जेम कोक ॥ १ ॥ राजा पूढे मुनि प्रतें, विनय कर कर जोड | भगवन् के कर्मे करी, पामी संपद कोड ॥ २ ॥ सायर मां केम पढ्यो, मैनकघर रह्यो केम ॥ शुक थइ ग णिका घर रह्यो, कहो मुजने थयो जेम ॥ ३ ॥ केवल ज्ञानी मुनि कहे, सनिल राय सुजाण ॥ कीधां कर्म न बूटियें, जोगवियें निरवाण ॥ ४ ॥ जे जेहवां कीजें कर्म, तेथी फल प्रापत्त ॥ पूरवजव मुख्य ताहरो, ल हि संपत्त विपत्त ॥ ५ ॥ ॥ ढाल उगणत्रीशमी ॥ पास जिणंद जुहारियें || ए देशी ॥ ॥ सुण राजा केवली कहे, हिमवंत भूमि सुवि शालो रे || सुदत्तग्रामा नामें जलो, धनधान्य समृद्धि रसालो रे ॥ १ ॥ सु० ॥ धनदत्त कौटुंबिक वसे, ते चार वधू जरतारो रे || पहिलां इव्य हतुं घणुं, कालें गयो धनविस्तारो रे ॥ १ ॥ सु० || दारिनो पासो थ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) यो तिहां आव्या चार मुनीशो रे ॥ चोरें लूटयां क उपडां, टाढें 5जे निशि दोसो रे ॥३॥ सु०॥ धनद त्त नश्क नावियो, अनुकंपा मनमा आणी रे॥ वस्त्र प्रावरण पोता तणां, वहोराव्यां उत्तम प्राणी रे ॥३॥ ॥ सु०॥ चारे स्त्री अनुमोदना, कीधी प्रिय धन अव तारो रे ॥ धनदत्त तेणें पुण्य करी, तुं राय थयो शिर दारो रे॥५॥सु० ॥ चार राज्य पाम्या इहां, ते चारे वस्त्र प्रनावें रे॥पांच रत्न बहु धन लयां, व लि नारी चार सुहावे रे ॥ ६॥ सु० ॥ तेणे कम तुं मीननें,पेटें वसियो को कालो रे ॥ मैनिक घर प ण तुं रह्यो, ए कर्म तणी सदु चालो रे॥ ॥ सु० ॥ कोइएक जव तें मुनि जणी, मेहेलो देखी सूगाणो रे ॥ गंधाए मत्स्य सारिखो,ते कर्म तिहां बंधाणो रे ॥ ॥ ॥ सु०॥ सहस्रतमे पहिले नवें, तें पोपट पंजर घाल्यो रे ॥ ते पा पोपट थयो, तुज कमै एफ ल थाल्यो रे ॥ ए ॥ सु० ॥ धनंगसेना पूरव नवें, निज सहियर कत शणगारो रे ॥ श्रावो वेश्या बहेन डी, हांसी कीधी तेणिवारो रे ॥ १०॥ सु० ॥ तेणें कम वेश्या थर, राजादिक सुणी वृत्तांतो रे ॥ऐ ऐ कर्मविटंबना, पाम्यो वैराग्य महंतो रे॥ ११ ॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) सुण कारणकेवली कहे ॥ एयांकणी॥ राज्य दीयं निज पुत्रने, चारे नारि संघातें रे॥ इति राज्यादि क बोडिने, संयम लीधो मन खांतें रे॥ १२ ॥सु०॥ चारित्र पाली उऊटुं, तप करि कर्म खपायो रे ॥ तकाल असण कर, मुरलोक तणां सुख पायो रे ॥ १३ ॥ सु० ॥ महाविदेहें सीजशे, नृप उत्तमचरित्र कुमारो रे॥ वस्त्रदानथी सुख लह्यां, यो दान सुपी अधिकारो रे ॥ १४ ॥ सु० ॥ नूत वेद सायर शशी १७४५, श्राशो गुदी पंचमी दिवसें रे ॥ उत्तमचरि त्र कुमारनो, में रास रच्यो सुजगीशे रे ॥ १५॥९॥ श्री जिनवर सुप्रसादथी,श्रीपाटण नयर मजारो रे॥ गाथा सत्याशी पांचशे, उगणत्रीशमी ढाल उदा रो रे॥ १६ ॥ सु०॥ श्री खरतर गह गुण निलो, श्री जिनचंद सूरिंदो रे ॥ वाचक शांतिहर्ष गणि, जिन हर्ष सदा आणंदो रे ॥ १७॥ सु० ॥ स० ॥ ५५॥ H86666666666666666666666666666666666635 इति वस्त्रदानोपरि श्री उत्तम चरित्रकुमाररास संपूर्णः॥ ग्रंथा ग्रंथ ॥ ७०१ ॥ 50000000 RAKALAAAA Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- _