________________
(५७)
रबार के, दूत आव्यो तिहां नूपनो ॥७॥ आणीने दो रायने दियो लेख के,राय उघाडी वांचीयो ।महे लखिया हो वे बोल अमोल के,जेहथी टाढो दुवे दि यो॥ ए ॥ स्वस्तिश्री हो प्रणमी जगदीश के, वाणा रसीथी मन रसे ॥ मकरध्वज हो लिखितं माहाराय के, उत्तमचरित्र कुमर दिसें ॥ १० ॥ आलिंगे दो हरखें सस्नेह के, कुशल खेम वरतुं इहां ॥ तुमकेरा हो वां सुखखेम के, कागल दीयो बो जिहां ॥११॥ जिण दिनथी हो तुं चाल्यो परदेश के,खबर करावी में घणी॥दोडाव्या हो के. अस्वार के,निरत न पामी तुम तणी ॥१शा चाल्या केडे हो पुरपाटण गाम के,प वंत दीप नमंतडी ॥ किहां न सुपी हो वत्स ताहरी वात के,निशि दिन वाट जोवंतड़ां ॥१३॥ निःस्नेही होतुं तो थयो पुत्त के,मात पिताने अवगणी॥ मेल्ही ने हो गयो तु निरधार के, हियडे अनि दीधी घणी ॥ ॥ १४॥ गेरुने हो मन नांहिं दु:ख के, मात पिता कुःख करी मरे ॥ पूरी थइ हो चोवीशमी ढाल के, कही जिनहर्ष नली परें ॥ १५॥ सर्वगाथा॥ ४७३॥
॥दोहा॥ ॥ तथा अहं वाईक थयो, तुज विजोग न खमा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org