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(५ए) य ॥ तुज विरहें व्याकुल थयो, दिवस दोहिलो जा य॥१॥ तुजने थमे न दूहव्यो, कुवचन न कह्यु को ॥ रीसावी नीकली गयो, ते परतावो होय ॥ ॥ २ ॥ राज धुरंधर तुं कुमर, तुज नपर सदु माम् ॥ निराधारां मूकी गयो, जलो गयो तुं मि॥३॥ लोक मुखें में सनिल्यो, मोटपल्ली वेलाकुल ॥ उत्तमचरित्र राजा थयो, नाग्य थयुं अनुकूल ॥ ४ ॥ गाढा र लीयायत थया, उनसीयां अम प्राण ॥ पण लेख दर्शणे बावजे, जेम थाये कल्याण ॥५॥ ढुं घरडो बूढो थयो, मुजथी न चालें राज ॥ राज देने तुज नए, दु सारु निज काज ॥६॥ ॥ ढाल पच्चीशमी॥ कलालणी तें माहारो राजन मो
हियो दो लाल ॥ ए देशी ॥ ॥ कुमरजी लेख वांची मन रंगशुं हो लाल, ढोल म करजे पुत्त ॥कु०॥पाणीथपीत पधारजो हो लाल, याव्यां रहेशे सूत ।। कु०॥ ॥ वेहेलो अहिंयां या वजे हो लाल ॥ कु॥ तुज विण शूनो देशडो होला ल, तुजविण शूनुं राज्य ॥ कुछ ॥ तुज विण सूनो दृग डो हो लाल, पाव्यां रहेशे लाज ॥ कु० ॥ २ ॥व० ॥ कु० ॥ राज धुरंधर तुं सही हो लाल, तुज विण के
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