________________
( ३१ )
ए बारमी, जिनदर्ष कहे तुं जोय ॥ १५॥२०॥ स ० ॥ २४णा ॥ दोहा ॥
॥ वयण सुणी ते शेठना, कुमरी कीध विचार ॥ ए पापी मुज नांजों, शीनरयण शणगार ॥१॥ कूड कपट करी राख, शील यमूलक एह || चिंतवे ए म मदालसा, वयण कहे सुसनेह ॥ २ ॥ सुयो शेव साहिब तुमें, वयण कयुं सुप्रमाण || मरण थयुं प्री तम तपुं, दशदिन तेहनी काण ॥ ३ ॥ तुमने गम शे तेम होशे, चडी तुमारे हाथ || परमेशर मेल्यो हवे, ताह माहरो साथ ॥ ४ ॥ उतावला सो बा वरा, धीरें सब कबु होय ॥ सिंच सो घडा, रुतु थावे फल होय ॥ ५॥ किणहोक नगरें जाइयें, मास दिवसने बेह ॥ पुरपतिनी लेइ यागना, यावीश ता हरे गेह ॥ ६ ॥ नाम म लेइश माहरु, डुं बुं ताहरी नार ॥ शेठ नली कीधो खुशी, कुमरी बुद्धिविचार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल तेरमी ॥ कपूर होये घति उजलो रे ॥ए देश ॥
॥ वृद्ध कहे कुमरी जणी रे, करियें शील जतन्न ॥ त्रिभुवनमांहे दोहेलुं रे, लहेतां एह रतन्न रे ॥१॥ व हेनी, सांजल माहारी बात || शीलें यरि करो केशरी रे, न करे कोई घात रे ॥ ब० ॥ ए यांकणी ॥ वायु
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International