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(३७) न्या देव तेहने, ढुंहवे रतुं निश्चित ॥ १ ॥ जोषी तुर त तेडावियो, नांखे एणि परें राय॥ परणे कुमरी त्रि लोचना, वासर लगन बताय ॥॥ जोई पुस्तक टी पणुं, लगन कियो निरधार ॥ एह दिवस निर्दोष , जोतां दिवस हजार॥३॥ घणे महोत्सवयं नृपति, वर कन्या परणावि॥ दीधो राज्यनंमार सहू,करमोच न प्रस्ताव॥४॥कुमरी काज करावियो,सतनूमियो थावा स ॥राय दियोरहेवा नणी,तिहां नोगवे विलास ॥५॥
॥ ढाल शोलमी ॥ पंथीडानी देशी ॥ ॥ दासीने कहे हवे मदालसा रे, प्रीतमनी कांच न थासार रे॥ सायर मां बडयो ते सही रे,दवे हुँ जी शे अधार रे ॥ १ ॥दा॥ दान दीयो में दी न ऊखीनणी रे, साते दे वावयुं वित्त रे॥ श्रावक धर्म यथाशक्तं करे रे, जिनवरपूजा चोखे चित्त रे ॥ ॥ २ ॥ दा॥ हवे मुज बहेनी कुमरी त्रिलोचना रे, तेदने देश पंच रतन्न रे॥दोदा लेश ढुं जिनवरतणी रे, पालिश संयम करिय जतन्न रे ॥३॥ दा० ॥ दासी क हे सांजल तुं स्वामिनी रे, म कर म कर मनमांहे वि पाद रे॥ कोइ परदेशी वखो त्रिलोचना रे, जेहनो सदु बोले यशवाद रे ॥ ४ ॥ दा० ॥ रूपकला गुण
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