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णि मूली मदुरा बहु पाण्या,कीधा कोडि नपाय जी॥ पण समाधि थायनहीं किमही, किमहीविष नवि जाय जी॥ ६ ॥पू॥ नगरमांहे पडहो फेराव्यो, जे को वि द्यावंत जी ॥ रायतणी कन्या जीवाडे, ते पसाय लहं त जी ॥ ७॥पू० ॥ अर्ध राज कुमरी नृप थापे,कुम र मुल्यो विरतंत जी॥ पडह बन्यो ततहण यावीने, उपगारी गुणवंत जी ॥॥पू०॥ उत्तम रायसमी श्राव्यो, तेहिज नर ए होय जी॥धादर देईपासें बेसा यो,स्वारथ मीठो होय जी ॥ ए॥ पू० ॥ एक स्वार्थ ने वली गुण माहे, थादर लहे अपार जी॥ कन्या था पी तिहां उपाडी, कुमर करे उपगार जी ॥ १० ॥ ॥ पू० ॥ मंत्र गणी पाणीशं बांटी, कुमरी थइ सचेत जी॥ कर जोडी राजा गुण गावे,धन्य धन्य तुं कुलके त जी॥११॥ पूातें उपगार कियो मुज मोहोटो, दीधुं जीवितदान जी॥ मुज कन्याने तें जीवाडी, विद्या तणा निधान जी॥१॥ पू० ॥ तुजने शो नपगार क
हूँ, करुणावंत कृपाल जी॥ए जिनहर्ष कन्या तुज दीधी, परणो पन्नरमी ढाल जी ॥१३॥पूण॥३०॥
॥दोहा॥ ॥ राय विचारे चित्तमा,ए नर ने कुलवंत ॥राज्य क
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